अमृतसर: आजादी के इतिहास में जलियांवाला बाग नरसंहार अहम मोड़ है। ब्रिगेडियर जनरल रेजिनॉल्ड डायर ने बैसाखी के दिन बाग में जुटे लोगों पर गोलियां चलवाई थीं। जांच आयोग के प्रमुख लॉर्ड हंटर ने जब डायर से पूछा कि लोगों को रोकने के लिए पहरा क्यों नहीं लगाया, तो डायर का जवाब था- ‘मैंने सबको मारने की ठान ली थी।’ एक रिपोर्ट के मुताबिक तब बाग में 10 मिनट में 1650 राउंड फायरिंग हुई थी। 1500 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश भारत के इतिहास का काला अध्याय है। आज से 99 साल पहले 13 अप्रैल, 1919 को अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार को अंजाम दिया था। ये घटना इतिहास में याद रखी जाएगी..आज जलियांवाला बाग अपने 100 वें साल में प्रवेश कर चुका है। आइए जानते है इससे जुड़ी कुछ खास बातें…
1- खुशी को बदला मातम में-
अमृतसर के प्रसिद्ध् स्वर्ण मंदिर, यानी गोल्डन टेंपल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी। उस दिन बैसाखी भी थी। जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला भी लगता था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग वहां पहुंचे थे।
तब उस समय की ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। सैनिकों ने बाग को घेरकर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। वहां मौजूद लोगों ने बाहर निकलने की कोशिश भी की, लेकिन रास्ता बहुत संकरा था, और डायर के फौजी उसे रोककर खड़े थे। इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे।
3- भगत सिंह जलियांवाला बाग की मिट्टी बोतल में भरकर ले गए थे
1919 में जलियांवाला बाग डंपिंग ग्राउंड होता था। यह जमीन हरमीत सिंह जल्ला वालियां की मिल्कियत थी। 1951 में यहां शहीदी लाट का उद्धाटन किया गया और इसका नाम बदलकर जलियांवाला बाग कर दिया गया। जलियांवाला बाग कांड के 15 दिन बाद भगत सिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे थे। और खून से सनी मिट्टी बोतल में भरकर ले गए थे। बताया जाता है वह 19 किलोमीटर पैदल चलकर यहां आए थे। सिंह को इस घटना ने काफी प्रभावित किया था।
4-क्या है शहीदी कुंआ
कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है. यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का शिकार हो गए थे।
5-गोलियां खत्म होने पर रुकीं फायरिंग, 1650 खोखे मिले
1964 में डायर के साथ रहे सार्जेंट एंडरसन का एक पत्र आया। एक अफसर ने डायर से फायरिंग रोकने के लिए पूछा। कहा, हमने भीड़ को सबक सिखा दिया है। पर डायर ने फायरिंग नहीं रोकी। गोलियां खत्म होने के बाद फायरिंग रूक गई।
6- दुनिया भर में आलोचना
हत्याकांड की पूरी दुनिया में आलोचना हुई। आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।
8. डायर का इस्तीफा
हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। बाद में दबाव में ब्रिटिश सकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया. 1920 में डायर को इस्तीफा देना पड़ा।
9. लंदन में मारा डायर को
हत्याकांड में मारे गए लोगों का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए। वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया। उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
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