पिछले दिनों में नीरव मोदी, मेहुल मोदी आदि बहुत चर्चा में रहे और विजय माल्या को कोई कैसे भूल सकता है? इन सब ने बैंक से लोन लिया और ना चुकाने की स्थिति में भाग गए । इन सब लोगों ने कानून का सहारा लेकर ही कानून की धज्जियां उड़ाई है। कानून ने हमेशा ग्राहकों को सुविधा देने के हिसाब से बहुत से ऐसे प्रावधान दिए है जो कर्जदारों के लिए बचने के लिए खिड़की खुली छोड़ देते है और कुछ इस खुली खिड़की का दुरूपयोग कर बैंकों को चुना लगा देते हैं। इस आलेख का मतलब यह कतई नहीं है कि हम बैंक को नुकसान पहुचाने के रास्ते बता रहे है, इस आलेख के माध्यम से सिर्फ सरकार द्वारा कर्जदारों को दिए गए अधिकारों की जानकारी उपलब्ध करवाना मात्र है ताकि कोई उन्हें जबरदस्ती परेशान नहीं कर सके ।
लोन या कर्ज लेना सिर्फ व्यापारियों या उद्योगपतियों का ही काम नहीं है,आम आदमी भी अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेता है या इस ऑनलाइन दुनिया में क्रेडिट कार्ड का बिल ना चुकाने की वजह से भी कर्जदार बन जाता हैं। आमतौर पर देश का किसान कर्ज लेकर ही फसल उगा पाता है क्योंकि भारतीय खेती मानसून का जुआ हैं। इसी तरह से क्रेडिट कार्ड की दुनिया ने युवाओं को तरह–तरह के ऑफर के माध्यम से खरीददारी की लत लगा कर कर्ज की तरफ धकेलने का काम किया है।
उसी तरह सहकारी सोसाइटी, प्राइवेट बैंक और फाइनेंस एजेंसी ने अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए ग्राहकों को सस्ते दर पर लोन उपलब्ध करवा कर अपना कर्जदार बना लिया हैं। विभिन्न परिस्थतियों में जब लोन लेने वाला कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो फिर इन संस्थानों और बैंक का एक नया दौर शुरू होता है जो कर्जदार को परेशान करने के लिए काफी होता है, जिस वजह से बहुत से लोग शर्मिंदगी में आत्महत्या तक कर लेते है क्योंकि उनको सरकार द्वारा दिए गए कानूनी अधिकारों की जानकारी नहीं होती हैं।
कर्जदारों के अधिकार
वर्तमान समय में सरकार ने सभी कर्जदारों को कई अधिकार दिए हैं, जिसके द्वारा वे अपने लोन और क्रेडिट कार्ड के बिल का भुगतान कुछ समय बाद भी कर सकते हैं। प्रमुख नियम इस प्रकार है –
- बैंक द्वारा नोटिस दिया जाना है जरूरी –
अगर किसी कर्जदार ने बैंक का लोन नहीं चुकाया है तो बैंक उसको सीधे गुनाहगार नहीं बना सकता, क्योंकि बकाया राशि वापिस पाने के लिए बैंक को उचित प्रक्रिया को फॉलो करना आवश्यक होता है अगर बैंक उस प्रकिया का पालन किए बगैर किसी को गुनाहगार नहीं बना सकती। इस प्रक्रिया को इस तरह से समझा जा सकता है –
यदि कर्जदार अपनी जनरल पेमेंट को 90 दिनों तक जमा नहीं कर पाते हैं तो ऐसे में बैंक उस कर्जदार को Non Performing Asset (NPF) में डाल देता है और उनको बैंक द्वारा 60 दिनों की अवधि वाला नोटिस जारी किया जायेगा। बैंक द्वारा यह 60 दिनों का समय हर डिफाल्टर को दिया जाना कानूनन रूप से आवश्यक है । इस तरह इस नियम की वजह से एक ग्राहक या कर्जदार को अपने कर्ज को चुकाने के लिए लगभग 5 माह का अतिरिक्त समय मिल जाता हैं ।इस समय के पश्चात् भी अगर बैंक को पैसा न मिले तो डिफाल्टर की प्रॉपर्टी को नीलाम कर सकता हैं ।
- अपनी बात को आगे रखने का अधिकार –
कर्जदार या डिफाल्टर नोटिस अवधि के दौरान अपनी बात को सक्षम आधिकारी के सामने रख सकता है और उस पर ऑब्जेक्शन भी उठा सकता है ।यदि कभी किसी कर्जदार द्वारा कोई ऑब्जेक्शन उठाया जाता है, तो अधिकारी को उसका जवाब 7 दिनों के भीतर देना अनिवार्य होता है । इस तरह से कर्जदार को अतिरिक्त समय मिल जाता है और साथ हीअगर उधार देने वाला कर्जदार के ऑब्जेक्शन को अस्वीकारता है और उसका वैध कारण नहीं बताता है, तो कर्जदार उसके खिलाफ शिकायत भी दर्ज करा सकता है। बैंक अधिकारियों द्वारा साथ ना मिलने पर कर्जदार बैंकिंग लोकपाल के पास भी जा सकता है ।
- प्रॉपर्टी को नीलाम करने का नोटिस एवं ऑब्जेक्शन का अधिकार
कर्जदार को पूरा समय देने के पश्चात् जब बैंक नीलामी का फैसला लेकर अपनी मर्जी से डिफाल्टर की संपत्ति को नीलाम नहीं कर सकती, इसके लिए भी एक प्रक्रिया है जिसका पालन किया जाना आवश्यक है । डिफाल्टर की प्रॉपर्टी को नीलाम करने से पहले बैंक को उसे 30 दिन पहले पब्लिक नोटिस देना आवश्यक है। बैंक के उस नोटिस में कर्जदार को उसके असेट के लिए बैंक द्वारा निकाली गई वैल्यू के बारे में जानकारी देना आवश्यक हैं । इसके साथ ही साथ उस नोटिस में नीलामी की तारीख, समय और रिजर्व प्राइज जैसी जरूरी जानकारियां भी दी जानी आवश्यक हैं ।
इस नोटिस के आधार पर अगर कर्जदार को उसकी प्रॉपर्टी के लिए बैंक द्वारा निकाली गई वैल्यू कम लगती है, तो ऐसे में वो ऑब्जेक्शन भी उठा सकता है । कर्जदार बैंक से अच्छा ऑफर लाकर वह अपनी बात को सबके सामने रख सकता है और बैंक के फैसले को बदलवा सकता है।
इस तरह की परिस्थति में कर्जदार अपने ऑब्जेक्शन के माध्यम से नीलामी पर स्टे ऑर्डर ले सकता हैं और खुद अपनी प्रॉपर्टी का सौदा कर सकता है। इस सौदे की मदद से अच्छे दाम में उसको बेच कर बैंक का कर्जा चुका सकता हैं । इस तरह से एक कर्जदार अपने स्वयं के हिसाब से अपने लिए सम्मान, समय और धन बचा सकता है ।
- बकाया राशि वापस पाने का अधिकार –
कर्जदार की संपत्ति को नीलाम कर के बैंक मुनाफा नहीं कमा सकता ।कर्जदार द्वारा बैंक को जितना पैसा देना है और बैंक द्वारा नीलामी में जो खर्च हुआ है उन दोनों अमाउंट लेने के बाद बैंक को बकाया राशि कर्जदार को वापस देनी होती है बैंक द्वारा बकाया राशि कर्जदार के अकाउंट में तुरंत ट्रान्सफर करना जरूरी होता है। आजकल नीलामी ऑनलाइन की जाती है ताकि पैसों की कोई गड़बड़ी ना हो और दोनों पक्षों को इसकी जानकारी हो। इस अधिकार के तहत सम्पति की नीलामी के साथ ही ग्राहक बची हुई राशि से अपना आगे का काम जारी रख सकता हैं ।
- सम्मान पाने का अधिकार –
कर्जदार ने लोन लिया था तो उधार देने वाले ने भी अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए लोन दिया था इसलिए यदि कोई कर्जदार लोन का सही समय पर भुगतान नहीं कर पाता है, तो ऐसे में बैंक एजेंट उससे किसी भी तरह की बदतमीजी नहीं कर सकता है क्योंकि बैंक को कर्जदार की प्राइवेसी को मेन्टेन करना होता है ।
- सुरक्षा और बेवक्त परेशान ना करने का अधिकार
किसी भी बैंक के एजेंट रात के समय किसी कर्जदार के घर नहीं जा सकते चाहे लोन की राशि कितनी भी बड़ी क्यों ना हो। आधिकारिक रूप से कोई भी बैंक एजेंट कर्जदार/डिफाल्टर से केवल सुबह 7 बजे से लेकर शाम 7 बजे के बीच में ही मिल सकता है। इसके अलावा कोई भी बैंक एजेंट किसी भी कर्जदार को या उसके परिवार वालों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता है ।इसके बावजूद भी यदि कोई बैंक एजेंट ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी करवाई होना तय है क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके लिए गाइडलाइन जारी की है जिसके तहत इन सब को अपराध माना गया हैं । इस तरह की कोई भी शिकायत डिफाल्टर कर अपने और अपने परिवार के सदस्यों के लिए राहत प्राप्त कर सकता हैं ।
कर्ज चुकाने के लिए डेब्ट कंसोलिडेशन
वो कहते है ना की जितनी चादर लम्बी हो उतने ही पाव फैलाने चाहिए पर “आज नकद कल उधार’ की धारणा के ठीक उलट लोगों ने उधारी को अपनी आदत बना लिया है। देश में उधार लेने का चलन जितनी तेजी से बढ़ा है उतनी जल्दी वे उधार चुका नहीं पा रहे हैं। उधारी के गर्त में सिक्योर्ड लोन और उसके बाद पर्सनल लोन के जाल में फंसे हुए लोगों के लिए है डिफाल्टर कंसोलिडेशन।
डेब्ट कंसोलिडेशन के तहत कर्ज में डूबे लोगों को भले ही इससे मुक्ति नहीं मिलती परन्तु न चुकाए गए लोन और क्रेडिट कार्ड के भुगतान में सहूलियत जरूर मिल जाती है । इसके तहत सभी लोन का एकीकरण किया जाता है चाहे वो आपका सिक्योर्ड लोन हो या पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड का बिल भुगतान, इस कंसोलिडेशन के तहत सभी लोनों के एकीकरण से कर्ज चुकाने का एक नया रास्ता मिल जाता है। यदि किसी ने होम लोन लिया और उसकी ईएमआई समय पर नहीं चुकाने की वजह से उसे चुकाने के लिए पर्सनल लोन भी ले तथा क्रेडिट कार्ड का भुगतान भी करना हो तो डेब्ट कंसोलिडेशन की मदद से इन सभी लोनों का एकीकरण किया जा सकता हैं।
इस सुविधा को लेने के लिए ग्राहक को कंसोलिडेशन देने वाले किसी एक बैंक की मदद लेनी होगी। अब अलग-अलग ईएमआई की तारीख याद रखने की जरूरत नहीं है, यह बैंक ग्राहक के सारे दायित्व खुद पर ले लेगा और ग्राहक सिर्फ एक ईएमआई भरकर भी अलग अलग ईएमआई की तारिख याद रखने के झंझट से मुक्ति पा सकते हैं। इससे संपत्ति की नीलामी का खतरा भी कुछ समय के लिए टल जाता है और एक ईएमआई होने से उसका भुगतान भी कई ईएमआई की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक तरह से किया जा सकता है।
डेब्ट कंसोलिडेशन का फायदा हर वह व्यक्ति उठा सकता है जिसने कई बैंकों से उधार ले रखा हो। इसमें अगर कुछ पैसा क्रेडिट कार्ड का हो तो यह सुविधा जल्दी मिलती है। इससे आपके जीवन में न सिर्फ तनाव कम होता है बल्कि आप उधार पर लगने वाले ब्याज को कम कर पैसा भी बचा सकते हैं और उधार को चुकाने के लिए ज्यादा समय लेकर पैसे की व्यवस्था भी आसानी से कर सकते हैं।
हमारे 52% किसान कर्ज में फंसे
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल 9.02 करोड़ किसान परिवार में से 52% परिवार औपचारिक या अनौपचारिक रूप से ऋण ग्रस्त हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक कृषक परिवार पर औसतन 47000 रूपये का कर्जा बाकि है। हालांकि यह डाटा पुराना है परन्तु चिंताजनक है । इस कर्ज के बोझ में दबे किसान अपने सम्मान और जरुरत की खातिर आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं ।
राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो की माने तो औसतन हर वर्ष 12 हजार किसान या कृषि श्रमिक आत्महत्या कर रहे हैं जो भारत में कुल आत्महत्या करने वालों का लगभग 9.4 % हैं। पिछले एक दशक में हजारों किसानों ने आत्महत्या करी है जिनमे अधिकतर किसानों ने कीटनाशक पीकर तो कुछ ने फांसी खाकर अपनी जान दे दी । किसानो पर सबसे ज्यादा मार बेमौसम बरसात और सूखे से पड़ती है साथ ही कई बार उचित दाम ना मिलने की वजह से कमाई पर असर पड़ता है और वाह कर्ज के भार में दब जाता हैं ।
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