लगातार हिचकी आना हो सकता है टोरेट सिंड्रोम

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अगर लगातार हिचकी आती हैं, या फिर हिचकी जैसा अनुभव होता है तो ये कोई साधारण बात नहीं है, ये एक तरह की बीमारी है, जोकि लाखों में से किसी एक को हो सकती है। इस बीमारी को टोरेट सिंड्रोम कहा जाता है। इस बीमारी में नर्वस सिस्टम पर असर पड़ता है।

टोरेट सिंड्रोम होता क्या है
टोरेट एक तरह की दिमाग से जुड़ी बीमारी है, इसमें किसी भी बड़े या बच्चे को ये हिचकियां आने लगती है। ये बीमारी दो तरीके से हो सकती है, या तो पर्यावरण के कारण या फिर जेनेटिक कारणों से। ज्य़ादातर मौकों पर ये बीमारी 18 साल की उम्र से पहले अटैक करती है। इस बीमारी के बारे में एक और बड़ी बात ये है कि ये ज्य़ादातर पुरूषों में पाई जाती है। जोकि ताउम्र चल सकती है।

लक्षण को दो भागों में बांट सकते हैं
सिंपल टिक्सः इस तरह की टिक्स में थोड़े समय के लिए हिचकियां आती है। जिसमें आवाज भी कम होती है और सर, कंधों या गर्दन पर दबाव पड़ता है और इसमें अचानक मूवमेंट होने लगती है।

कॉम्पलेक्स टिक्स: लगातार हिचकियां आती रहती है और इसमें कई बार चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, जैसे की लकवे के दौरान होता है। साथ ही इसमें हिचकियों की आवाज भी काफी तेज़ होती है। कई बार भारी तनाव भी हो जाता है और अक्सर रात में भी ये हिचकियां बहुत परेशानी पैदा कर सकती है। इससे बचने के लिए ध्यान एक बेहतर उपाय है।

इस बीमारी के कारण क्या है
अभी तक इस बीमारी के सही कारणों का पता नहीं लग पाया है। हालांकि ज्य़ादातर मामलों में ये जेनेटिक ही होती है। लेकिन जरूरी नहीं कि अगर पेरेंट्स को ये बीमारी है तो बच्चों को भी ये बीमारी होगी। एक शोध के मुताबिक सिर्फ 5-15 प्रतिशत मामलों में ही ये पाया गया है कि पेरेंट्स से ये बीमारी बच्चों में गई हो।

बीमारी का पता कैसे चले
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर एक साल तक किसी व्यक्ति को लगातार हिचकियां आती रहे तो ये माना जा सकता है कि उसे ये बीमारी है। हालांकि किसी तरह के खून की जांच, किसी तरह की लेब्रोरटरी या फिर किसी अन्य जांच से ये पता नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि एमआरआई, क्प्यूटर टेपोग्राफी आदि से रेयर केसेज में इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

बीमारी का इलाज कैसे हो
दुर्भाग्यवश अभी तक हिचकियों की बीमारी का पूरा इलाज नहीं खोजा जा सका है। न ही इस बीमारी के लक्ष्णों को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है। हालांकि इस बीमारी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों का साइड इफैक्ट काफी पड़ता है। कई बार साइड इफैक्ट को कम करने के लिए दवाइयों का डोज कम करना एक बेहतर उपाय हो सकता है। इसके इलाज की दवाइयों के साइड इफैक्ट में कई बार वजन बढ़ना, आलस आना प्रमुख है।

इलाज में परेशनियां
इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के लिए स्वस्थ्य और बेहतर जीवन जीने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन कई बार इस व्यक्ति के लगातार हिचकियां लेने से सामाजिक तौर पर परेशानियां झेलनी पड़ सकती है।

कैसे ठीक हो सकती है बीमारी
जिस बच्चे या बड़े को ये बीमारी है, उसके साथ किसी तरह की एक्टिविटी में लगना चाहिए, जोकि उन्हें पसंद हो, चाहे वो स्पोर्टस हो या फिर संगीत हो, इस तरह की हॉबी हिचकियों में कमी लाने में सहायक होगी। पेरेंटस को चाहिए कि जिस व्यक्ति को ये बीमारी है, उसमें सेल्फ कॉफिडेंस को बढ़ाना बहुत जरूरी है। ताकि वो सामाजिक तौर पर अपने को मज़बूती से पेश कर सके।

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