राजस्थान की ये नौ तरीके की होली भी है देशभर में प्रसिद्ध…

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लाइफस्टाइल डेस्क: इस साल 1 और 2 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा। 1 मार्च को होलिका दहन होगा और अगले दिन रंग खेला जाएगा। भारत में ऐसा कोई त्यौहार नहीं जो मशहूर ना हो। जैसे बात होली कि है तो सब जानते हैं ब्रज की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस होली को देखने दूर-दूर से लोग जाते हैं लेकिन आज बात केवल राजस्थान की करेंगे। जी हां राजस्थान में ऐसे तो कई प्रकार से होली मनाई जाती है लेकिन कुछ जिलों-गांवों की होली काफी प्रसिद्ध है।

राजस्थान में हर जगह होली का अलग ही रंग चढ़ता है। हर जगह के अलग तरीके, हर जगह के अलग रिवाज। यदि आप भी राजस्थान के इन शहरों में रह रहे हैं तो इन होली का लुफ्त जरूर उठाइए।

लट्ठमार होली (करौली व भरतपुर)
ब्रज के बरसाना गाँव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली ख़ास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहाँ की होली में मुख्यतः नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है

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पत्थरमार होली (बाड़मेर व डूंगरपुर)
राजस्थान में आदिवासी खेलते हैं पत्थरमार होली ढोल और चंग की आवाज जैसे-जैसे तेज होती है, वैसे-वैसे लोग दूसरी टीम को तेजी से पत्थर मारना शुरू कर देते हैं। बचने के लिए हल्की-फुल्की ढाल और सिर पर पगड़ी का इस्तेमाल होता है।

कोड़ामार होली (श्रीगंगानगर)
नये चलन में पुरानी परंपराएं बड़े-बुजुर्गों के स्मृतियों में कैद है। जनपद की कोड़ामार होली भी अब सिर्फ किस्से कहानियों तक सीमित होकर रह गयी है। ढोल की थाप और डंके की चोट पर जहां हुरियारों की टोली रंग-गुलाल उड़ाती निकलती थी। महिलाओं की मंडली किसी सूती वस्त्र को कोड़े की तरह लपेट कर रंग में भिगोकर इसे मारती हैं।

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चंग व गीदड़ (शेखावाटी)
चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता पहनकर कमर में कमरबंद और पाँवों में घुंघरू बाँधकर ‘होली’ के दिनों में किये जाने वाले चंग नृत्य के साथ होली के गीत भी गाये जाते हैं। प्रत्येक पुरुष चंग को अपने एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ से कटरवे का ठेका से व हाथ की थपकियों से बजाते हुए वृत्ताकार घेरे में सामूहिक नृत्य करते हैं ,साथ में बांसुरी व झांझ बजाते रहते है व पैरो में बंधे घुंघरुओं से रुनझुन की आवाज निकलती रहती है। भाग लेने वाले कलाकार पुरुष ही होते हैं, किंतु उनमें से एक या दो कलाकार महिला वेष धारण कर लेते हैं, जिन्हें ‘महरी’ कहा जाता है।

 गोटा गैर (भीनमाल)
गोटा गैर होली में वैसे तो कुछ खास नहीं होता लेकिन इसमें पुरूष मंडली समूह में हाथों डंडे लेकर नृत्य करते हैं। हालांकि अब इस परंपरा से नया चलन आ गया है।

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फूलों की होली (गोविंद देवजी मंदिर, जयपुर)
वैसे तो पूरे देश में यह त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है पर ब्रज की होली विश्वभर में मशहूर है। ऐसे ही जयपुर का गोविंद देवजी मंदिर भी राजस्थान में काफी माना जाता है। इसलिए यहां भी ब्रज की तर्ज पर फूल की लाल और पीली पंखुडि़यों के साथ होली खेली जाती है।

डोलची होली (बीकानेर)
बीकानेर होली एक अनूठे रूप में खेली जाती है। यहां दो गुटो में पानी डोलची होली खेली जाती है। जहां चमड़े की बनी डोलची में पानी भरकर एक-दूसरे गुटों पर डाला जाता है। इस होली में सैकड़ों लोग भाग लेते हैं।

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कंकड़मार होली (जैसलमेर)
यहां कंकड़मार का होली की बधाई दी जाती है। ये वैसे ही है जैसे पथ्तर मार होली होती है।

कंडों की राड़ (डूंगरपुर)
कहा जाता है ये होली गोबर कंडों की राख से खेली जाती है।

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