कोविड-19 का टीका बनाने वाले दो वैज्ञानिकों को मिला 2023 का नोबेल पुरस्कार, जानें सबकुछ

आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो mRNA टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है।

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COVID Vaccine Noble Prize 2023: फिजियोलॉजी या मेडिसिन में 2023 का नोबेल पुरस्कार कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को दिया गया है। न्यूक्लियोसाइड आधारित संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया है। उनकी खोजों ने कोविड-19 के खिलाफ प्रभावी एमआरएनए टीकों के विकास को सक्षम बनाया है।

नोबेल पुरस्कार जीतने वाले विजेताओं को एक डिप्लोमा, एक मेडल और 10 मिलियन स्वीडिश क्रोना ( आज के करीब 75764727 रुपये) की नकद राशि प्रदान की जाती है। एक श्रेणी में विजेता अगर एक से ज्यादा हों तो पुरस्कार की राशि उनमें बंट जाती है। ये पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि यानी 10 दिसंबर को विजेताओं को सौंपे जाते हैं।

क्या होती है mRNA टेक्नोलॉजी?
mRNA या मैसेंजर-RNA जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी सेल्स (कोशिकाओं) में प्रोटीन बनाती है। इसे आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो mRNA टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है।

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इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा जल्दी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत होती है।

mRNA टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले वैज्ञानिकों के बारे जानिए…

1. कैटलिन कारिकोः जिन्होंने mRNA टेक्नोलॉजी बनाई

कैटलिन कारिको का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को हंगरी में हुआ। कारिको ने कई सालों तक हंगरी की सेज्ड यूनिवर्सिटी में RNA पर काम किया। 1985 में उन्होंने अपनी कार ब्लैक मार्केट में 1200 डॉलर में बेच दी और अमेरिका आ गईं। यहां आकर उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में mRNA टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।

mRNA की खोज तो 1961 में हो गई थी, लेकिन अब भी वैज्ञानिक इसके जरिए ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इससे शरीर में प्रोटीन कैसे बन सकता है? कारिको इसी पर काम करना चाहती थीं, लेकिन उनके पास फंड की कमी थी। 1990 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कारिको के बॉस ने उनसे कहा कि आप या तो जॉब छोड़ दें या फिर डिमोट हो जाएं। कारिको का डिमोशन कर दिया गया। कारिको पुरानी बीमारियों की वैक्सीन और ड्रग्स बनाना चाहती थीं।

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उसी समय दुनियाभर में भी इस बात की रिसर्च चल रही थी कि क्या mRNA का इस्तेमाल वायरल से लड़ने के लिए खास एंटीबॉडी बनाने के लिए किया जा सकता है? 1997 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में ड्रू वीसमैन आए।

2. ड्रू वीसमैन ने फंडिंग कर सहारा दिया…

ड्रू मशहूर इम्युनोलॉजिस्ट हैं। ड्रू ने कारिको को फंडिंग की। बाद में दोनों ने पार्टनरशिप करके इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया। 2005 में ड्रू और कारिको ने एक रिसर्च पेपर छापा, जिसमें दावा किया कि मॉडिफाइड mRNA के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है, जिससे कई बीमारियों की दवा और वैक्सीन भी बन सकती है।

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हालांकि उनके इस रिसर्च पर कई सालों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड mRNA से वैक्सीन बनाने के लिए बायोटेक कंपनी मॉडर्ना खोली। 2013 में कारिको को जर्मन कंपनी बायोएनटेक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अपॉइंट किया गया था।

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