‘टैरिफ’ के जाल में फंसे अमेरिका-भारत: कौन जीतेगा इस व्यापारिक जंग में?

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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों में हमेशा उतार-चढ़ाव रहे हैं। इन दोनों देशों के बीच कई मुद्दे हैं, जिनमें एक बड़ा मुद्दा है टैरिफ यानी आयात शुल्क। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ने PM मोदी से मुलाकात के 8 घंटे पहले भारत समेत सभी देशों पर जैसे को तैसा टैरिफ (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाने की बात कही है। रेसिप्रोकल टैरिफ यानी जो देश अमेरिकी सामान पर जितना टैरिफ लगाएगा, अमेरिका भी उस देश के सामान पर उतना ही टैरिफ लगाएगा।

भारत ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर जो टैरिफ लगाया है, वह व्यापारिक दृष्टि से दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, और इसे लेकर दोनों देशों के बीच कई बार विवाद भी हुआ है। भारत परंपरागत रूप से अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाता है, विशेष रूप से उच्च तकनीकी उत्पादों, कृषि वस्त्रों, और कुछ कंज्यूमर गुड्स पर। भारतीय सरकार ने अमेरिकी सामानों पर टैरिफ बढ़ाने के फैसले में यह तर्क दिया कि इससे घरेलू उद्योगों को सुरक्षा मिलेगी और भारतीय उत्पादकों के लिए बाजार खुलेंगे।

भारतीय टैरिफ की संरचना : भारत ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर जो टैरिफ लागू किया है, उनमें इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीनरी, और यांत्रिक उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा, कृषि उत्पादों जैसे आलू, प्याज, मूंगफली, और सोयाबीन का भी उच्च टैरिफ लगता है। अमेरिका से आयात होने वाले इन उत्पादों पर शुल्क 20 से 50 प्रतिशत तक हो सकता है। इन टैरिफ्स का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है, ताकि भारतीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिल सके।

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अमेरिका का टैरिफ : वहीं, अमेरिका ने भी भारत से आयात होने वाले कुछ सामानों पर टैरिफ बढ़ाए हैं। खासकर भारत से आयातित स्टील और एल्यूमीनियम पर अमेरिका ने 25 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया है। इसके अलावा, भारत के कृषि उत्पादों और कुछ सॉफ्टवेयर सेवाओं पर भी अमेरिका ने शुल्क बढ़ाए हैं। इसका असर उन भारतीय उत्पादकों पर पड़ा है, जो अमेरिका को अपनी वस्तुएं निर्यात करते हैं।

टैरिफ विवाद का प्रभाव: अमेरिका और भारत के बीच इस टैरिफ युद्ध का असर दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों पर पड़ा है। अमेरिका ने भारत पर आरोप लगाया है कि वह अपनी घरेलू इंडस्ट्री की रक्षा के लिए बहुत अधिक शुल्क लगा रहा है, जो व्यापारिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। वहीं, भारत का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क उनकी बाजारों के लिए नुकसानदायक हैं और इससे भारतीय उत्पादकों की कठिनाई बढ़ रही है।

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इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 1990-91 तक औसत टैरिफ 125% तक था। उदारीकरण के बाद यह कम होता चला गया। 2024 में भारत का एवरेज टैरिफ रेट 11.66 % था। ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भारत सरकार ने टैरिफ रेट में बदलाव किया। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने टैरिफ के 150%, 125% और 100% वाली दरों को समाप्त कर दिया है। अब भारत में सबसे ज्यादा टैरिफ रेट 70% है। भारत में लग्जरी कार पर 125% टैरिफ था, अब यह 70% कर दिया गया है। ऐसे में साल 2025 में भारत का एवरेज टैरिफ रेट घटकर 10.65% हो चुका है।

आमतौर पर सभी देश टैरिफ लगाते हैं। किसी देश में इसका रेट कम और किसी में ज्यादा हो सकता है। हालांकि, बाकी देशों से तुलना की जाए तो भारत सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक है।

समाधान की ओर: अमेरिका और भारत के व्यापारिक संबंधों को सुधारने के लिए दोनों देशों ने आपस में कई बार वार्ता की है। हालांकि, अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है। दोनों देशों की सरकारें एक दूसरे से समझौता करने के लिए तैयार हैं, लेकिन व्यापारिक नीतियों में बदलाव और टैरिफ में कटौती करने के लिए दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

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