72 दिन के बाद भारत के आगे झुका चीन, डोकलाम से सेना हटाने को हुआ तैयार

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इंटरनेशनल डेस्क: पिछले दो महीने से चल रहे डोकलाम विवाद को भूलते हुए भारत और चीन की सेना ने डोकलाम से पीछे हटने का फैसला लिया है। विदेश मंत्रालय के सोमवार को सामने आए बयान से यही संकेत मिले हैं। विदेश मंत्रालय ने कहा- हाल ही के हफ्तों में भारत-चीन ने डोकलाम मुद्दे पर डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन बनाए रखा। इस दौरान हमने एक-दूसरे की चिंताओं और आपसी हितों की बात की। इसी बुनियाद पर डोकलाम से जवानों का ‘डिसइंगेजमेंट’ करने पर रजामंदी बनी। यह प्रोसेस जारी है। माना जा रहा है कि 72 दिन बाद अब डोकलाम मसला हल हो चुका है।

क्या है डोकलाम विवाद?

गौरतलब है कि सिक्किम सीमा सेक्टर के पास डोकलाम में भारत और चीनी सेना दो महीने से भी ज्यादा समय से आमने-सामने है। यह गतिरोध तब शुरू हुआ जब इस इलाके में चीनी सेना द्वारा किए जाने वाले सड़क निर्माण कार्य को भारतीय सैनिकों ने रोक दिया। भारत की चिंता यह है कि अगर चीन डोकलाम में सड़क बनाने में कामयाब रहता है तो उसके लिए कभी भी उत्तर-पूर्व के हिस्से तक शेष भारत की पहुंच को रोक देना आसान हो जाएगा। डोकलाम इलाके को भूटान अपना मानता है, लेकिन चीन का दावा है कि यह उसके क्षेत्र में आता है।
बता दें असली विवाद की वजह 1890 का वह समझौता है, जो ब्रिटिश शासन ने चीन के चिंग राजवंश के साथ किया था। उसमें अलग-अलग जगहों पर बॉर्डर दिखाई गई थीं। उसके मुताबिक, एक बड़े हिस्से पर भूटान का कंट्रोल है, जहां भारत का उसे सपोर्ट और मिलिट्री कोऑपरेशन हासिल है। इसी समझौते के हिस्से में आने वाले डोकलाम के पठार पर भारत और चीन के जवान शून्य डिग्री से नीचे के तापमान में तैनात हैं। सिक्किम का मई 1975 में भारत में विलय हुआ था। चीन पहले तो सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार करता था। लेकिन 2003 में उसने सिक्किम को भारत के राज्य का दर्जा दे दिया। हालांकि, सिक्किम के कई इलाकों को वह अपना बताता रहा है।
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पीएम मोदी अगले सप्ताह चीन रवाना:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह ब्रिक्स समिट में शामिल होने के लिए चीन जाने वाले हैं। उनके दौरे से ठीक पहले यह भारत की बहुत बड़ी जीत है। मामले के जानकारों का भी मानना था कि खुद को ग्लोबल पावर बनाने की इच्छा रखने वाला चीन कभी नहीं चाहेगा कि उसकी मेजबानी में होने वाले ब्रिक्स समिट में डोकलाम विवाद की छाया पड़े, क्योंकि इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि पर बुरा असर पड़ता।

चीन मीडिया का आक्रामक रूख:
चीन की तरफ से अभी तक आफिशयल घोणषा नहीं की गई। वहीं चीन का सरकारी मीडिया आए दिन इसे लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए था। लेखों और संपादकीय के जरिए भारत के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन भारत ने संयम न खोते हुए अपनी तैयारियों पर ध्यान दिया और बातचीत की कोशिशें भी जारी रखीं। अंतरराष्ट्रीय जगत से भी भारत को इस मसले पर समर्थन हासिल होने लगा। जापान और अमेरिका जैसे बड़े देशों के समर्थन से भारत की स्थिति और मजबूत हुई।
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