वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया वंश से आबाद हुआ शाहपुरा राजघराना

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शाहपुरा-शाहपुरा राज्य जिसने किसी युद्ध मे हार नहीं मानी।काबुल से लेकर दक्षिणी राज्यो तक युद्ध लड़े, राजा उम्मेद सिंह प्रथम,महापराक्रमी कुंवर अदोत सिंह,राजा भारत सिंह सरीखे वीरो से आबाद रहा राज घराना।
सिसोदिया वंश के राजा सुजान सिंह ने मुगल बादशाह शाहजहां से विक्रम संवत 1986,कार्तिक, कृष्णा 14,ईशा संवत 9 नवंबर 1630, रविवार को फुलिया परगने का पट्टा इनायत पाया और 14 दिसंबर 1631 को शाहपुरा राज्य की स्थापना की। इतिहास प्रसिद्ध धर्मतपुर का युद्ध, कंधार पर चढ़ाई,शिप्रा का युद्ध मे इस वंश ने वीरता और बलिदान की जग प्रसिद्ध मिशाल पेश की। शाहपुरा घराना प्रारंभ से ही मेवाड़ के सिंहासन व मेवाड़धिपति श्रीजी हुजूर श्री एकलिंगजी के प्रति वफादार व स्वामिभक्त रहा। उज्जैन,शिप्रा नदी की ऐतिहासिक लड़ाई में शाहपुरा के महापराक्रमी राजा उमेद सिंह प्रथम को उदयपुर महाराणा द्वारा युद्ध हेतु आमंत्रित किया गया तो वयोवृद्ध राजा उम्मेद सिंह ने सबसे पहले उदयपुर पहुंचकर राज महल में महाराणा के सम्मुख उपस्थित होकर मातृभूमि के लिए बलिदान की इच्छा जाहिर की। शुभ मुहूर्त देखकर मेवाड़ की संयुक्त सेना में कूच का नंगारा बजा कर युद्ध के लिये कूच किया। शिप्रा नदी के किनारे पर घनघोर युद्ध हुआ जिसमें मेवाड़ की संयुक्त सेना की जीत हुई जीत के मद में में राजपूतों ने उज्जैन पर भी विजय प्राप्त कर ली। थकी हारी सेना जब बैठी हुई थी तभी उन्हें हलकारो से सूचना मिली कि 40000 दक्षिणी की भारी फोज लेकर आ रहे हैं।महा पराक्रमी राजा उमेद सिंह से देवगढ़ के राजकुमार ने अर्ज मारुज कर उन्हें उदयपुर महाराणा की सेवा में वापस भेजने का निवेदन किया। शिप्रा नदी के किनारे पर बैठकर महा पराक्रमी राजा सिसोदिया उम्मेद सिंह ने अपनी फौज के सिपहसालार ओं को बुलाकर कहा कि उनका इरादा तो काम आने का है ऐसा अवसर अब कहां मिलेगा एक तो शिप्रा का किनारा और दूसरा अपने स्वामी की और मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान होना।

अगले दिन अल सुबह केसरिया साफे में तुलसी की पवित्र मंजरियां बांध कर राजा उमेद सिंह अपनी 5000 की फौज लेकर 40000 मराठों पर टूट पड़े उन्होंने अपने सिपहसालार से कहा कि मेरे पीछे काले खां पठान रहेगा उसके भाले पर मेरा रुमाल बंधा है आप लोग उसको देखते रहना तो आपको पता चलता रहेगा कि मैं युद्ध में किस स्थान पर लड़ रहा हूं इसी दौरान काले खा पठान ने धोखा दे दिया जिससे मेवाड़ की सेना में भगदड़ मच गई और एक मराठा सैनिक में राजा उमेद सिंह पर भाले से हमला करके नीचे गिरा दिया तभी मराठा सेनानायक श्री जी हुजूर से बोला कि तुम वही उमेद सिंह होना जो कहते हैं कि मेवाड़ को मेरी पगड़ी के नीचे रख कर सोता हूं तब श्रीजी हुजूर ने अपने शरीर पर बने घावों से बह रहे रुधिर से मृतिका पिंड बनाते हुए अंतिम समय में विजय मुस्कान के साथ उस मराठा सेनापति को कहां की हाँ में वही सिसोदिया वंश का राजा उमेद सिंह हूं जो मेवाड़ को अपनी पगड़ी में बांध कर सोता हु। इसी के साथ ही महान पराक्रमी राजा उमेद सिंह जी का वहीं पर ही स्वर्गारोहण हो गया तत्पश्चात मुट्ठी भर बचे सैनिकों ने शाहपुरा की व मेवाड़ की सेना के शवों का अंतिम संस्कार किया।

शिप्रा नदी के किनारे आज भी महान पराक्रमी राजा उमेद सिंह की समाधि बनी हुई है जहां पर दिन विशेष को पूजा होती है। इस युद्ध में राजपूतों में राठौड़, राणावत, जगमालोत,कानावत, परिहार सहित विभिन्न गोत्र के राजपूत योद्धाओं के साथ में अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए ब्राह्मण,धाबाई,हुजूरी सहित कई जातियों के पराक्रमी योद्धाओं ने जान न्योछावर की। यह युद्ध तलवार, चकदा, बरछी भाले सहित पारंपरिक हथियारों से लड़ा गया। कहते हैं कि मेवाड़ का महान पराक्रम इस युद्ध में था और इसके बाद इतना भयंकर युद्ध कहीं पर भी नहीं लड़ा गया। शाहपुरा के योद्धाओं ने महान शिप्रा नदी के किनारे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर किये। धन्य है मेरा शाहपुरा जहां पर एक से बढ़कर एक योद्धा,दानवीर, क्रांतिकारी देशभक्त ने जन्म लिया।

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