संत आत्मा को जागृत करने के लिए आते है- साध्वी आनन्दप्रभा

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संवाददाता भीलवाड़ा। आसींद व्यक्ति भौतिक कार्य के साथ जिनवाणी नही सुनेगा, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, त्याग, दान नही करेगा तो उसको कभी भी मोक्ष मिलने वाला नही है। संत आपके मध्य आत्मा को जागृत करने के लिए आते है। आलस्य हमारे जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है, जिस पर आलस्य का भूत सवार हो जाता है वह न खुद आगे बढ़ पाता है, न दूसरों को आगे बढ़ने देता है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनन्दप्रभा ने महावीर भवन में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि धर्म के कार्य मे कभी भी प्रमाद नही करे। जो व्यक्ति धर्म का कार्य कर रहा है उसे कभी रोके नही। जीवन कभी बूढ़ा नही होता है बल्कि शरीर बूढ़ा होता है। आत्मा अजर अमर है यह कभी नही मरती है, यह एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर मे प्रवेश कर जाती है। मोक्ष में जाने के बहुत मेहनत और त्याग करना पड़ता है जब तक शरीर को तप त्याग स्वाध्याय से तपायेंगे नही तब तक मोक्ष मिलने वाला नही है। साध्वी चंदनबाला ने कहा कि गृहस्थ जीवन मे रहते हुए 5 अणुव्रतों का पालन करे, सदशिक्षा को व्यवहार एवं आचरण में लावे, समभाव में जावे, सामायिक करे जिससे कर्मो की निर्जरा होगी। कोई भी संत द्वार पर आता है तो वो अतिथि है। जिस द्वार पर अतिथि नही आता है वो द्वार नही है। अतिथि का मतलब जिसकी तिथि निश्चित नही है। प्रतिदिन भावना भावे की अतिथि अपने द्वार आवे, उनका सदैव सम्मान करो, आदर करो। आज जिन घरों में अतिथि नही आते है अक्सर उन घरों में सगाई संबंध नही होते है। अतिथि भाग्य से आते है। 4 सितम्बर से पर्यूषण पर्व का आगाज हो रहा है। इस दौरान अधिक से अधिक तप त्याग करने की सभी भावना रखे। तपस्वी बहिन श्रीमती भावना मेहता ने आज 8 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। बाहर से आये आगन्तुको का संघ की और से स्वागत किया गया।

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