साधक वही है जो अपनी इंद्रियों को वश में करे- साध्वी आनंदप्रभा

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संवाददाता भीलवाड़ा। हमारी आत्मा से जब तक राग द्वेष नही हटेगा तब तक शरीर इंद्रियों के माध्यम से घूमता रहेगा। साधक वो ही है जो अपनी पांचों इंद्रियों को वश में कर ले। आशा वह मंत्र है जो असफलता में सफलता का भविष्य दिखाती है। अपना आत्मविश्वास जगाइए, निराश मन को ऊर्जावान बनाकर फिर से अपने कदम बढ़ाइए। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनन्द प्रभा ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि जीवन मे सरलता, क्षमा, सहिष्णुता लावे ताकि जीवन आनंदमय बन सके। किसी भी सफलता को पाने के लिए पूरा समय लगाना जरूरी है। सफलता के लिए श्रद्धापूर्वक लक्ष्य बनाना जरूरी है।महान लक्ष्य ही सफ़लता का द्वार खोल सकता है। बीकानेर में जैन संतो का सबसे पहला बिगुल आचार्य जयमल जी महाराज ने बजाया। इसके लिए उन्हें उस समय काफी संघर्ष करना पड़ा था। साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा ने कहा कि वाणी पर सदैव संयम रखें। आपकीं वाणी ही आपको अच्छा व बुरा इंसान बना देती है। वाणी में जितनी मधुरता, अपनत्व होगा उतना लोग आपसे जुड़ेंगे। आज परिवारों में जो बिखराव देखने को मिल रहा है उसमें वाणी का बहुत बड़ा योगदान है। परिवार में आपस में बोलते समय कुछ शब्द ऐसे कह दिए जाते है जो विवाद का कारण खड़ा कर देते है जिससे परिवार बिखर जाता है। वाणी पर संयम का होना बहुत जरूरी है। आपकीं पहचान वाणी से होती है जिसकी भाषा कठोर होती है उसके पास कोई भी आगे होकर जाना नही चाहता है सभी उसे बोझ समझने लगते है। जिनकी मधुर वाणी होती है लोग उसे सदैव गले लगाते है। धर्मसभा मे नोखा मंडी से आये श्री संघ का माला व शॉल से स्वागत किया । इस अवसर पर तपस्वी बहिन श्रीमती मंजू सांड का श्री संघ ने माला व चूंदड़ से स्वागत किया। धर्म सभा में नवीन कुमार कांकरिया, निहारिका सांड ने अपनी गीतिका पेश की।

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