अब आपका स्मार्टफोन दिलाएगा डेंगू जैसी महामारी से निजात, जानिए कैसे

डेंगू के प्रमाणित मामले मिलने पर वह उनमें स्थान और समय दर्ज करते थे। डेंगू लार्वा पाए जाने पर वह फोन ही उसे लाल रंग से ग्रस्त दिखा देते थे। हर केस के साथ समय और स्थान जरूर दर्ज किया जाता था।

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डेंगू की महामारी से निपटने के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब की राजधानी लाहौर शहर ने एक नया तरीका ईजाद किया है। चार साल पहले लाहौर में डेंगू से करीब 350 लोगों को मौत हो गई थी और हजारों प्रभावित हुए थे। इस मौसमी महामारी से भारत भी परेशान है।

एक रिपोर्ट के अनुसार अब तक 28,702 केस अस्पतालों की पंलग पर आ चुके हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि क्या डेंगू से निपटने में टेक्नोलॉजी कोई मदद कर सकती है? जवाब है हां, दरअसल पाकिस्तान में डेंगू के खिलाफ लड़ाई मोबाइल फोन्स के जरिये लड़ी जा रही है और पिछले चार सालों के आंकड़े बताते हैं कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इसमें एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है।

डेंगू ट्रैकिंग नामक इस मोबाइल एप्लिकेशन को बनाने वाले पंजाब इन्फ़ार्मेशन टेक्नोलॉजी के चेयरमैन डॉ उमर सैफ कहते हैं कि डेंगू के बारे में चेतावनी ही इस एप्लीकेशन का अहम फ़ीचर है। उनके मुताबिक, “आंकड़ों का विश्लेषण कर हम बता सकते हैं कि ये बीमारी अब महामारी का रूप लेने वाली है. इस तरह के डाटा से इस तरह का अनुमान लगाना एक अहम बात है।”

एंड्रॉयड स्मार्टफोन्स की मदद
साल 2011 में पाकिस्तान का लाहौर शहर बुरी तरह डेंगू की चपेट में था। 16,000 मरीज डेंगू की चपेट में थे और 352 की मौत हो चुकी थी। सरकार और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? इसके बाद शोधकर्ताओं ने सरकार के साथ मिलकर एक ‘एपिडेमिक डिटेक्शन सिस्टम’ खड़ा किया।

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गूगल के शोधकर्ताओं और मेडिकल प्रशासन ने डेंगू पीड़ित इलाको की पहचान के लिए डेढ़ हजार स्मार्टफोंस की मदद ली। इन फोनों को सरकारी कर्मचारी अपने साथ ले जाते थे। डेंगू के प्रमाणित मामले मिलने पर वह उनमें स्थान और समय दर्ज करते थे। डेंगू लार्वा पाए जाने पर वह फोन ही उसे लाल रंग से ग्रस्त दिखा देते थे। हर केस के साथ समय और स्थान जरूर दर्ज किया जाता था। इसके बाद गूगल ने डेंगू का अपना मैप लॉन्च किया।

गूगल मैप ऐसे बना वरदान
प्रशासन ने एक ‘हॉटलाइन’ खड़ी की और टेलीविजन, रेडियो और दूसरे माध्यमों से इसे प्रचारित किया गया। पीड़ित कॉल करके सूचनाएं देते थे तो उनके नाम-पते और बीमारी के लक्षणों का डेटा रखा जाता था। हेल्थ एक्सपर्ट्स मरीजों से बीमारी के लक्षणों की जानकारी ले लेते थे। सबसे ज़्यादा कॉल आने वाले इलाकों की पहचान की गई। वहां नजदीकी सरकारी अस्पतालों को अलर्ट किया गया ताकि वो डेंगू मरीजों की देखभाल कर सकें।

इन आंकड़ों और जानकारी की बदौलत ‘डिजिटल मैप’ बना। इससे डेंगू के क्षेत्रों में दवा का छिड़काव और सफाई कराने में काफी मदद मिली। इस मामले में पाकिस्तान में तब पंजाब सूचना प्रौद्योगिकी बोर्ड अध्यक्ष और कंप्यूटर साइंटिस्ट उमर सैफ ने बेहद अहम भूमिका निभाई। बाद में ‘साइंस एडवांसेज़’ में इस पर एक रिसर्च पेपर भी छपा। डेंगू लार्वा और मरीजों का डेटा इकट्ठा हो जाने का फायदा यह हुआ कि इससे प्रशासन को उन इलाकों की सफाई कराने में आसानी होने लगी। इससे मच्छरों का प्रजनन रोका जा सका और 2012 में लौहार लगभग डेंगू मुक्त हो चुका था। हालांकि 234 केस फिर भी मिले पर एक भी मरीज की मौत नहीं हुई।

भारत में हो सकता है प्रयोग?
हाल ही में डायरेक्टरेट ऑफ नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (एनवीबीडीसीपी) की रिपोर्ट में बताया गया है पिछले साल के मुकाबले इस साल देशभर में डेंगू के मामले बढ़े हैं। दिल्ली में 500 से ज्यादा डेंगू के मामले आ चुके हैं और आंकड़ा बढ़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में डेंगू की वजह से 15 लोगों की मौत हुई है।

डेंगू का सबसे ज्यादा प्रकोप केरल में है। यहां डेंगू के 13913 मामले सामने आए हैं। वहीं, तमिलनाडु में 5474, कर्नाटक में 4186, आंध्र प्रदेश में 798, पश्चिम बंगाल में 571 और महाराष्ट्र में 460 मामले सामने आए हैं। केरल में इस साल डेंगू से 23 लोगों की मौत हुई है। एनवीबीडीसीपी के मुताबिक 2016 जुलाई तक देशभर में डेंगू के 16,870 मामले दर्ज हुए थे। इस साल ये संख्या 28,702 पहुंच गई। ऐसे में अगर केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो पाकिस्तान के लाहौर शहर की तर्ज पर ‘गूगल’ की मदद से डेंगू के रोकथाम को लेकर सकारात्मक कदम उठा सकती हैं।

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