इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (isro docking mission) सोमवार रात 10 बजे SpaDeX मिशन लॉन्च करेगा। इसरो इस मिशन के जरिए अंतरिक्ष यान को डॉक या अनडॉक करने की क्षमता को परखेगा। डॉकिंग की प्रक्रिया 6 से 10 जनवरी के बीच होगीयह इसरो का साल का अंतिम मिशन है। आइए जानते हैं क्या करेगा SpaDeX मिशन, क्या है डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया, जिसकी क्षमता को समझने के लिए इसरो इसे लॉन्च कर रहा है।
SpaDeX मिशन को पीएसएलवी-सी60 के जरिए लॉन्च किया जाएगा। इसरो के यूट्यूब चैनल पर रात 09.30 बजे से इसकी लाइव स्ट्रीमिंग होगी। मिशन सफल रहा तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
क्या है SpaDeX मिशन
SpaDeX का मतलब है, स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट। इस मिशन में पीएसएलवी-सी60 से छोड़े जाने वाले दो छोटे अंतरिक्षयान की डॉकिंग की जाएगी। डॉकिंग का मतलब होता है स्पेस में दो अंतरिक्षयानों या सैटेलाइट को जोड़ना और अनडॉकिंग का मतलब है अंतरिक्ष में रहते हुए इन दोनों को अलग करना। इसरो अपने मिशन से ऐसा करने की तकनीक का प्रदर्शन करेगा। इस मिशन की कामयाबी इसरो के लिए बहुत महत्वूपूर्ण साबित होगी।
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कैसे होगी डॉकिंग की प्रक्रिया?
- मिशन में दो छोटे स्पेसक्राफ्ट टारगेट और चेजर शामिल है। इन्हें PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर अलग कक्षाओं में लॉन्च किया जाएगा।
- डिप्लॉयमेंट के बाद, स्पेसक्राफ्ट्स की रफ्तार करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे होगी। ये रफ्तार कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट की रफ्तार से 36 गुना और बुलेट की स्पीड से 10 गुना ज्यादा है।
- अब टारगेट और चेजर स्पेसक्राफ्ट फार-रेंज रेंडेजवस फेज शुरू करेंगे। इस फेज में, दोनों स्पेसक्राफ्ट्स के बीच सीधा कम्युनिकेशन लिंक नहीं होगा। इन्हें जमीन से गाइड किया जाएगा।
- स्पेसक्राफ्ट करीब आते जाएंगे। 5 किमी से 0.25 किमी के बीच की दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर का उपयोग करेगा। 300 मीटर से 1 मीटर की रेंज के लिए डॉकिंग कैमरे का इस्तेमाल होगा। वहीं 1 मीटर से 0 मीटर तक की दूरी पर विजुअल कैमरा उपयोग में आएगा।
- सक्सेसफुल डॉकिंग के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर को डेमोंस्ट्रेट किया जाएगा। फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग होगी और ये दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे। करीब दो साल तक ये इससे वैल्यूएबल डेटा मिलता रहेगा।
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इसरो क्यों करना चाहता है डॉकिंग
इसरो का कहना है, जब अंतरिक्ष में कई आब्जेक्ट होते हैं तो उन्हें एक साथ लाने के लिए डॉकिंग की जरूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया के जरिए अंतरिक्ष में दो ऑब्जेक्ट आकर जुड़ते हैं। हालांकि, ऐसा करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। डॉकिंग की प्रक्रिया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे मौके भी आते हैं जब स्पेस मिशन में कई तरह के रॉकेट को लॉन्च करने की जरूरत पड़ती है. यही वजह है कि इसरो खुद को इसके लिए तैयार करने की कोशिश में है।
भारत के इन मिशनों के लिए जरुरी है डॉकिंग तकनीक
- टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चंद्रयान-4 मिशन में होगा जिसमें चंद्रमा से सैंपल वापस पृथ्वी पर लाए जाएंगे।
- स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने के लिए भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी।
- सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए ये टेक्नोलॉजी जरूरी है।
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भारत के लिए फिर इतिहास रचने का मौका
इसरो अगर आज अपने इस मिशन में कामयाब हो जाता है, तो अमेरिका, चीन और रूस के बाद इस उपलब्धि को हासिल करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा। इसके अलावा, इसरो के लिए ये मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस मिशन के लिए किसी भी देश ने अपनी टेक्नोलॉजी हमसे शेयर नहीं की और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी अपने दम पर इस उपलब्धि को हासिल करने जा रही है। लिहाजा, ये पूरे देश के लिए गर्व करने की बात है।
🎉 Launch Day is Here! 🚀
Tonight at precisely 10:00:15 PM, PSLV-C60 with SpaDeX and innovative payloads are set for liftoff.
SpaDeX (Space Docking Experiment) is a pioneering mission to establish India’s capability in orbital docking, a key technology for future human… pic.twitter.com/147ywcLP0f
— ISRO (@isro) December 30, 2024
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