सवाल एनकाउंटर पर क्यों, ISO 9001 प्रमाणित जेल की सुरक्षा पर क्यों नहीं?

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नई दिल्ली: बीते रविवार भोपाल सेंट्रल जेल से इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (सिमी) के 8 आतंकी गार्ड रमाशंकर यादव की हत्या करके फरार हो गए और 8 घंटे बाद पुलिस एनकाउंटर में मारे गए आतंकियों के मारे जाने की खबर देश में आग की तरह फैल गई और पुलिस की तारीफों के पुल बांधे जाने लगे।
हालांकि कुछ ही देर में यही तारीफें नफरत और फ़र्ज़ी में बदल गईं। देश के कई नेताओं ने सवाल उठाने शुरु कर दिए और सियासी घमासान का बिगुल फूंक दिया गया। पुलिस पर आरोप लगाए जाने लगे कि आतंकी सरेंडर करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने मौक़ा देने के बजाय उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
इस आरोप-प्रत्यारोप के दौर में असल सवाल को दरकिनार कर दिया, जिसका जवाब मिलना वाक़ई देश के लिए ज़रूरी था। सवाल था कि भोपाल का सेंट्रल जेल देश के सबसे सुरक्षित जेलों में से है। ऐसे जेल से आतंकी भागे कैसे? इसे देश में सबसे पहला आईएसओ 9001:2000 का प्रमाणपत्र भी मिला था। यह बात जेल की वेबसाईट पर साफ़ तौर पर लिखी भी गई है। अब सवाल यह है कि क्या यह प्रमाणपत्र वेबसाइट की शोभा बढ़ाने के लिए दिया गया था कि इतनी हाई सिक्योरिटी जेल से एक साथ 8 आतंकी आसानी से गार्ड की हत्या करके दीवार फांदकर फरार हो गए और किसी को भनक तक नहीं लगी।
वॉच टॉवर पर जिसकी ड्यूटी थी वह कहां था कि 32 फीट ऊँची दीवार (जिसपर जिन्दा तार लगे हैं) को फांदकर आतंकी भाग गए। गार्ड की हत्या हो गई, आतंकी फरार हो गए और जेल का अलार्म तक नहीं बजा। अब जिस जेल को देश के सबसे सुरक्षित जेल का प्रमाणपत्र हासिल है उसकी यह दशा है तो बाक़ी का क्या होगा यह आप भलीभाँती समझ गए होंगे।
 
कौंन है सिमी?
सिमी का पूरा नाम स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया है। इसका उदय 1977 अलीगढ़ मे हुआ। अमेरिकी राज्य इलिनोय के एक प्रोफ़ेसर मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीक़ी को इसका संस्थापक कहा जाता है। 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 अटैक के बाद भारत में इस संगठन पर पहला प्रतिबंध लगा दिया गया था। फिर दो बार भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित करने के अध्यादेश दिए। तब से यह संगठन भूमिगत कार्य करता है।
‘साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल’ के अनुसार शुरूआती दौर में इसे ‘जमात-ए-इस्लामी’ की छात्र इकाई के रूप में जाना जाता था लेकिन वर्ष 1981 में यह संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ से अलग हो गया। सिमी का मुख्य उद्देश्य इस्लाम का प्रचार प्रसार करना है।
लेख- प्रदीप पांडे (पत्रकार)
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