11 दिसंबर के बाद, किसका होगा राजस्थान?

क्या जनता इतनी भी समझदार नही है कि क्या सही है क्या गलत है कि पहचान सके? लेकिन राजस्थान का चुनाव हमेशा जाति पर ही लड़ा जाएगा धर्म पर ही लड़ा जाएगा। क्योंकि वोट इसी से ही मिलते है विकास के मुद्दे पर लड़ेगी तो कोई समर्थन नही करेगा

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देश के चौथे स्तम्भ मीडिया की एक खास बात है कि यह हर खबर को रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए नमक मिर्च का इस्तेमाल करता है। इसी कड़ी में देश का राष्ट्रीय मीडिया उत्तर प्रदेश के चुनाव से ही हर चुनाव को 2019 के आम चुनाव का सेमी फाइनल बता रहा है। किन्तु उन्हें यह समझना होगा कि विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में अंतर होता है। चेहरे अलग होते है ,मुद्दे अलग होते है,राज्य में सत्ता विरोधी लहर भी हो सकती है। अतः मेरे हिसाब से राज्यों के चुनाव को सेमी फाइनल कहना सर्वथा अनुचित है। अस्तु, चुनाव आयोग ने मतदान की घोषणा कर दी है। इसमें एक बात रोचक है और विस्मय कर देने वाली भी की, राजस्थान के चुनाव तारीख अन्य राज्यों के मुकाबले काफी बाद है। यह रोचक इसीलिए है क्योंकि राजस्थान मैं मुकाबला अत्यंत कड़ा है,यहां की जनता 5 साल बाद सत्ता बदल देती है अतएव सत्ताधीशों द्वारा बाकी राज्यों के प्रचार खत्म होने के बाद फोकस सिर्फ राजस्थान पर रखने के लिए यह कदम उठाया गया है और यहीं चुनाव आयोग के फैसले से प्रतीत होता है।

चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर प्रश्न चिह्न उसी समय लग गया जब अजमेर में माननीय की रैली के कारण ई.सी.(चुनाव आयोग) की पीसी (प्रेस कॉफ्रेंस) टल गई थी। अस्तु, जो भी हो अब चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। पार्टियां अपना पूरा जोर आजमाने की तैयारी मे है। जनता की उम्मीदें होती है सरकार से परन्तु सरकार प्रतिबद्ध नही है। आज भारत के युवा अवसादग्रस्त है नौकरी की कमी से,वह सरकार से नौकरी मांग रहा है। आज किसान अवसादग्रस्त है वो समय पर बिजली,कर्ज़ से मुक्ति और अपनी मेहनत का पूरा दाम मांग रहा हैI वणिक वर्ग जीएसटी नामक अबूझ पहेली का उत्तर और समाधान मांग रहा है। आज मध्यम वर्ग मंहगाई पेट्रोल डीजल के दामों मे कमी चाहता है। वह सरकारी विद्यालयों शिक्षा में उन्नति चाहता है वह सरकारी चिकित्सालयों में उन्नति चाहता है। वह रेलों की व्यवस्थाओं में उन्नति चाहता है पर कौनसी सरकार ऐसा चाहती है? हमें आरोप नही, समाधान चाहिए। उसने 60 वर्षों में क्या किया या उसने 5 वर्षो में क्या किया वह नही सुनना , हमें समाधान चाहिए। पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ रहे है, सरकार जिम्मेदार है मान लिया, पर आप क्या समाधान निकलोगे? मैं एक किसान का बेटा हूँ। हमें हमेशा हाशिये पर रख गया। आज कोई किसान नही चाहता कि उसका बेटा किसान बनें। क्या कृषि प्रधान देश के सत्ताधीशों का यह कर्तव्य नहीं बनता की वह किसानों की समस्याओं को सुनें। डीजल 60 के पार गया तो क्या एक किसान यह व्यय ढो पायेगा जबकि उसकी पहले से ही कमर टूटी है।कर्ज़ माफ किया वर्तमान सरकार ने आभार  उनका पर उनका क्या जिन्होने प्राइवेट बैंकों से या साहूकारों से कर्ज लिया है। गरीब अधिकतर साहूकारों से ही तो कर्ज़ लेता है बैंक तो उसे कर्ज़ नही देता।बैंक सिर्फ अमीर लोगों जैसे माल्या नीरव को ही कर्ज़ देता है सूट बूट वालों को।

गरीब का खाता खोल दिया गया पर रिज़र्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक 235 करोड़ लगभग रुपये न्यूनतम राशि न होने पर खातों से दंड लिया गया।यह राशि गरीबों की ही कटी है क्योंकि अमीरों के अधिकतम होने की समस्या है न्यूनतम की नही। कहने का तात्पर्य यह है कि किसान गरीब मजदूर आज भी वहीं है जहां से पूर्ववर्ती सरकार ने उसे छोड़ा था।अतः आपको बताना है आपने किया क्या है और कांग्रेस भी यह बताये की हम क्या करेंगे। पर पार्टियां हमेशा ही हिन्दू मुसलमान करेगी वह जाति धर्म के नाम पर समाज को बांटेगी और शर्मनाक बात यह है कि जनता बंट भी जाएगी। अब यह कहा जायेगा कि अल्पसंख्यक सुरक्षित नही है जबकि भारत जितना सुरक्षित देश अल्पसंख्यक के लिए नही है।उनके मन मे खौप पैदा करेगी कि सरकार आपके समर्थन में नही है। बहुसंख्यक समुदाय को कहेगी कि सरकार आपके साथ धोखा कर रही है। आखिर कब तक यह खेल चलेगा? क्या जनता इतनी भी समझदार नही है कि क्या सही है क्या गलत है कि पहचान सके? लेकिन राजस्थान का चुनाव हमेशा जाति पर ही लड़ा जाएगा धर्म पर ही लड़ा जाएगा। क्योंकि वोट इसी से ही मिलते है विकास के मुद्दे पर लड़ेगी तो कोई समर्थन नही करेगा क्योंकि विकास से जनता को मतलब ही नही रहता। अगर कोई भी हिन्दू-मुसलमान करेगा मंदिर-मस्जिद जाएगा तो जनता की सहानुभूति प्राप्त कर लेगा,यह कमजोरी है जनता की।अगर उम्मीदवार समान जाति का होगा तो  उसी को वोट देंगे और इसी वजह से कई दल जाति धर्म के नाम पर खड़े हो रहे है और जीत भी रहे है क्योंकि उन्हें पता है कि जनता बंटेगी। आज अरबों रुपयों का घोटाला करने वाला भी सहानुभूति पा रहा है एक मृत अपराधी समाज का आदर्श बन रहा है।जब उत्तरप्रदेश के चुनाव हुए तो प्रधानमंत्री जी शुरुआत में विकास के मुद्दे पर लड़ रहे थे और जब उन्हें लगा कि जनता विकास के नाम पर वोट नही चाहती तो वे भी हिन्दू मुसलमान करने लगे ,यह वास्तविकता है।

आज साक्षरता भले ही 70 प्रतिशत से ऊपर हो पर मानसिकता में बदलाव नही आया है।पर मैं समस्त देश की जनता से आव्हान करता हूँ कि कृपया आप जाति धर्म से ऊपर उठे।जनप्रतिनिधियो से पूछे कि हम आपको वोट क्यो दे? आप हमारे लिए क्या विकास कार्य करोगे? क्योंकि अब हम आजादी की 75 वी वर्षगांठ मनाने वाले है।और देश के आजादी हेतु  हुए समस्त क्रांतिकारियों के स्वप्न को साकार रूप यदि हमें देना है तो हमें एक जागरूक मतदाता बनना है।आगे आने वाले प्रत्येक उम्मीदवार से सवाल पूछे क्योंकि ये आपका अधिकार है, आपका कर्तव्य है। विधायक से काम का ब्यौरा ले किसी की जाति धर्म देखकर नही उसके कार्य क्षमता उसके पुरुषार्थ देखकर वोट देवे और हां वोट जरूर दे क्योंकि चौरासी लाख

और उम्र के अठारह वर्ष की तपस्या के बाद वोट देने का अधिकार मिलता है इसे न गवाएं।किसी कवि की कहि बात है कि-

न जाने कब कौनसी बात नजीर हो जाये
न जाने कब दूध फटकर पनीर हो जाये
इन गुंडे मवालियों से बच के ही रह करो
न जाने कौन कब सत्ता का वजीर हो जाये

आशा करता हूँ कि अब ऐसी स्थिति नही आएगी। विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है और मंदिर हमेशा पवित्र ही रहना चाहिए ।

– रामनिवास भाम्बू

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