भारतीय महिलाओं को लेकर डिजिटल दुनिया की कड़वी हकीकत

21% भारतीयों को उनके धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। जबकि 20% भारतीयों को राजनीतिक सोच नहीं मिलने के कारण ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा।

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अनेकों कानूनों के बावजूद महिलाओं को लेकर अपराध न केवल जारी हैं बल्कि बढ़ें हैं। हर साल आने वाले आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर तीन मिनट पर महिला के खिलाफ हिंसा से संबंधित एक मामला दर्ज होता है। हर रोज दहेज से संबंधित 50 मामले सामने आते हैं तथा हर 29 वें मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार होता है। वैश्विक स्तर पर हर 10 महिलाओं में एक महिला अपने जीवन में कभी न कभी शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होती है। ये ही हाल महिलाओं को लेकर विश्व के अन्य कोने में भी है बस भारत आंकड़ा थोड़ा ज्यादा है। दरअसल हमारे यहां महिला के जन्म लेने के साथ ही उसके खिलाफ हिंसा चक्र शुरू हो जाता है। महिला जहां घर में बालिका भ्रूण हत्या से लेकर ऑनर किलिंग, दहेज हिंसा, पति और परिवार के अन्य सदस्यों के बुरे बर्ताव तथा अन्य घरेलू हिंसा का शिकार होती है। वहीं घर के बाहर भी उन्हें एसिड अटैक, छेड़छाड़, ऑफिस में दुर्व्यवहार और ऑनलाइन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 18 से 55 साल की 504 महिलाओं पर साइबर प्रताड़ना यानी सोशल मीडिया पर गाली-गलौच, नफरत भरा आचरण से संबंधित एक ऑनलाइन सर्वे किया। सर्वे में पाया गया कि हर पांच में से एक महिला सोशल मीडिया पर प्रताड़ना से प्रभावित है। वहीं, 18-24 साल की उम्र की महिलाएं ज्यादा साइबर प्रताड़ना का शिकार होती हैं। ये ही नहीं इस सर्वे में निकलकर आया कि 27% गाली-गलौच, अपशब्द का इस्तेमाल करने वाले यूजर्स महिला के परिचित ही होते हैं।

बढ़ती तकनीकी बढ़ते अपराध-
हम जैसे-जैसे हम तकनीकी के क्षेत्र में बढ़ रहे हैं वैसे ही हम अपराध क्षेत्र और ज्यादा सक्रिय होते जा रहे हैं। पहले हिंसा घरों, सड़कों पर थी जिससे किसी न किसी तरह से काबू पाया जा सकता था। लेकिन इंटरनेट की दुनिया पर काबू पाना नामुमकिन है। महिलाओं के खिलाफ होने वाली ऑनलाइन हिंसा और उत्पीड़न एक बड़ी समस्या बनती जा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े पहले ही बता चुके है कि यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामलों में ज्यादातर अभियुक्त परिचित या रिश्तेदार ही होते हैं। अब ऑनलाइन एब्यूज पर किया गया सर्वे भी बता रहा है कि महिलाओं को एब्यूज करने वाले सबसे ज्यादा उनके अपने जानकार ही होते हैं।

सहमति के बिना आपकी निजता का हनन करना-
विमेंस ऐड ने एक सर्वे किया जिसमें पाया कि 307 डोमेस्टिक वायलेंस सर्वाइवर्स में से 48% महिलाएं, रिलेशनशिप खत्‍म होने के बाद, उनके पूर्व साथी के द्वारा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हुई। इसी सर्वे में 38% को ऑनलाइन स्‍टॉक यानी पीछा किया गया। जबकि 45% मामलों में महिलाएं रिलेशनशिप में रहते हुए अपने पार्टनर्स द्वारा दुर्व्यवहार का शिकार हुई है। इस सर्वे के आंकड़े काफी ये बताने के लिए कि महिलाओं के पूर्व साथी ऑनलाइन दुर्व्यवहार और साइबर बुलिंग में आगे हैं। दरअसल, पार्टनर्स के पास रिलेशनशिप के दौरान एक दूसरे के ढेर सारे डिजिटल फुलप्रिंट रह जाते हैं। या पुरानी चैट। जिसमें संवेदनशील जानकारी शामिल होती है। बस इसी का इस्तेमाल का पूर्व साथी महिलाओं को परेशान करते हैं। उन्हें धमकाया जाता है कि वह उनकी निजी जानकारियों को सार्वजनिक कर देंगे। इस तरह के केसों में महिलाओं को सबसे ज्यादा अपने परिचित लोगों द्वारा हानि पहुंचाई जाती है। इस सर्वे में महिलाओं ने बताया कि जब हिम्मत करके पुलिस से मदद भी मांगने जाती हैं तो कई बार पुलिस को भी नहीं पता कि इस तरह की समस्या से कैसे निपटा जाए। 12% महिलाओं ने पुलिस को रिपोर्ट किया, लेकिन उनकी कोई मदद नहीं की गई।

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महिलाओं में बढ़ा डर-
साइबर बुलिंग किसी महिला को न सिर्फ मानसिक रूप से तोड़ सकती है, बल्कि उसे शारीरिक और आर्थिक नुकसान भी पहुंचा सकती है। इस बारे में किए गए सर्वे का नतीजा है कि एब्यूज की वजह से महिलाओं के हावभाव में भी काफी अंतर आया है। एमनस्टी के सर्वे में तो एक-तिहाई महिलाओं ने बताया कि साइबर बुलिंग के कारण वे अपनी सुरक्षा को खतरा महसूस करती हैं। आधी से अधिक महिलाओं ने तनाव, मानसिक अवसाद और अचानक चौंक जाने जैसी समस्याओं का जिक्र किया। लगभग दो-तिहाई महिलाओं ने नींद न आने की शिकायत की। सर्वे में शामिल हर पांच में से एक महिला को लगता है कि इस वजह से उनकी नौकरी पर बुरा असर पड़ा है।

पिछले दिनों डॉक्टर पायल ताडवी का केस काफी चर्चा में था हालांकि इस केस को रैगिंग में लिया गया लेकिन पायल के परिवार का कहना है कि उन्हें व्हाट्सऐप मैसेज द्वारा उनकी जाति को लेकर मानसिक प्रताड़ना दी जाती थी। जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली। यह केवल एक मामला नहीं है। पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या पर निखिल दाधीच  का ‘कुतिया’ लिखना। जिससे खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फॉलो करते हैं। जिसकी पिछले साल खूब आलोचना हुई लेकिन प्रधानमंत्री ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।  ऐसा आए दिन हम सोशल मीडिया पर देख सकते हैं। जहां किसी भी महिला को ट्रोल किया जाता है। उन्हें भद्दी गालियां, नफरत भरे शब्द, अश्लील सिम्बल्स, अश्लील नाम, जातिसूचक चीजों इत्यादि का इस्तेमाल कर ट्रोल किया जाता है। इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट का मानना है कि अगर कोई महिला अपने या समाज के मुद्दे पर लिखती-बोलती है या मुस्लिम या किसी वंचित समाज से या अगर कोई एलजीबीटी है, तो उसे इंटरनेट पर ज्यादा गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है. जिसमें स्वरा भास्कर, स्मृति ईरानी, अलका लम्बा, कंगना रनौत, सोनम कपूर, बरखा दत्त, राना अय्यूब, प्रियंका चोपड़ा, यशोदा बेन, बरखा दत्त, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी इत्यादि महिलाओं के खिलाफ आए दिन अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। ‘कॉम्बैटिंग ऑनलाइन वायलेंस अगेंस्ट वुमन एंड गर्ल्स : अ वर्ल्ड वाइड वेक–अप’ नाम की रिपोर्ट बताती है कि भारत में केवल 35 फीसद महिलाओं ने साइबर अपराध की शिकायत की, जबकि 46.7 फीसद पीड़ित महिलाओं ने शिकायत ही नहीं की। वहीं 18.3 फीसद महिलाओं को इस बात का अंदाजा ही नहीं था की वे साइबर अपराध की शिकार हो रही हैं और किस तरह इन अपराधों के लिए शिकायत की जाती है। फेसबुक, ट्विटर पर आपका बेहिसाब तरिके से शिकार किया जाता लेकिन साल 2017 में इंस्ट्राग्राम पर आई एक रिपोर्ट बताती है कि इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अब ट्विटर के मुकाबले ज्यादा बढ़ रहा है। 42% लोग यहां आसानी से डराए-धमकाए जाने के अलावा उनका मजाक बनाया जा रहा है।

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धर्म और जाति के नाम पर सबसे ज्यादा ट्रोलिंग-
आफ्टर एक्सेस- आईसीटी एक्सेस एंड यूज इन इंडिया एंड द ग्लोबल साऊथ 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑनलाइन उत्पीड़न का सामना करने के बाद 28% यूजर्स ने अपना अकाउंट बंद कर दिया है वहीं बुरे अनुभव से गुजरने के बाद 48% यूजर्स ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल पहले की तरह ही कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 21% भारतीय को लैंगिक कारणों से उत्पीड़ना झेलनी पड़ी वहीं 21% भारतीयों को उनके धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। जबकि 20% भारतीयों को राजनीतिक सोच नहीं मिलने के कारण ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा। ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होनेवाले तकरीबन एक तिहाई लोगों का कहना था कि इंटरनेट के जरिए चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति से वे पहले ऑफलाइन मिल चुके हैं, एक तिहाई का कहना था कि चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति से उनका संपर्क ऑनलाइन ही हुआ और उससे उनकी ऑफलाइन मुलाकात नहीं हुई है जबकि 33 प्रतिशत का कहना था कि चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति के साथ ऑनलाइन या ऑफलाइन उनका कभी संपर्क नहीं रहा है। इस रिपोर्ट में दिलचस्प तथ्य सामने आया जिसमें बताया गया कि शहरी इलाके की तुलना में ग्रामीण इलाके के इंटरनेट उपभोक्ता ज्यादा संख्या में ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार हुए। ऑनलाइन उत्पीड़न के शिकार शहरी इलाके के इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 17% रही जबकि ग्रामीण इलाके के इंटरनेट उपभोक्ताओं के लिए यह तादाद रिपोर्ट में 20% दर्ज की गई।

साइबर दुनिया में किए जाने वाले अपराध-

साइबर स्टाकिंग: इंटरनेट की दुनिया में पीछा करना या पीछे से हमला करना। जिसमें किसी शख्स द्वारा आपको बार-बार टेक्स्ट मैसेज भेजना, फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना, स्टेटस अपडेट पर नजर रखना और इंटरनेट मॉनिटरिंग इसी अपराध की श्रेणी में आते हैं। आईपीसी की धारा 354 डी के तहत यह दंडनीय अपराध है।

साइबर बुलिंग: कई बार आपने अनुभव किया होगा कि सोशल मीडिया पर कुछ लोग आपसे जल्दी दोस्ती बनाने की कोशिश करते हैं। नजदीकियां बढ़ाते हैं, फोटो की मांग करते हैं। इस तरह की मामले साइबर बुलिंग की श्रेणी में आते हैं। बता दें, भारत में साइबर बुलिंग के मामले सबसे अधिक होते हैं। साइबर अपराधी इसके लिए कम उम्र की लड़कियों या कम जानकार महिलाओं को शिकार बनाते हैं। इसके बाद उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है और कई बार तो रेप की घटनाएं भी सामने आती है।

साइबर स्पाइंग: जब कोई ऐसी घटना सामने आती हैं जहां गुप्त कैमरे लगाए जाते हैं और महिलाओं की रिकॉर्डिंग की जाती है। वह सभी अपराध स्पाइंग की श्रेणी में आते हैं। जिसमें चैंजिंग रूम, लेडिज वॉशरूम, होटल रूम्स और बाथरूम्स आदि स्थानों पर रिकॉर्डिंग डिवाइस लगाए जाते हैं। ये सभी अपराध आईटी एक्ट की धारा 66 ई के अंतर्गत दर्ज किए जाते हैं।

साइबर पॉर्नोग्राफी: इसके तहत महिलाओं के अश्लील फोटो या वीडियो का इस्तेमाल कर या उनकी फोटो और वीडियो के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें इंटरनेट पर सार्वजनिक करने की धमकी दी जाती है वह सभी अपराध पॉर्नोग्राफी में आते हैं। इस तरह के अपराधों में आईटी एक्ट की धारा 67 और 67ए के अंतर्गत आते हैं।

सोशल मीडिया पर इतना गुस्सा क्यों-
सोशल मीडिया का प्रभाव कुछ सालों से ही लोगों पर इतना देखा जा रहा है। वरना एक समय ऐसा था जब साइबर दुनिया कुछ खास लोगों तक ही सिमटी हुई थी। जिस तरह से इंटरनेट साधन सस्ते हुए लोगों की यहां भीड़ लगनी शुरू हो गई है। ऑनलाइन दुनिया में लोग एक-दूसरे से अनजान हैं। एक दूसरे द्वारा पहचाने नहीं जाते। इसलिए अगर किसी बर्ताव की वजह से उन्हें शर्मिंदगी उठानी भी पड़े, तो वो असल जिंदगी की शर्मिंदगी जैसी नहीं होती और इसका नतीजा ये हैं कि इंटरनेट की दुनिया आक्रामक हो उठी है। यहां पहले से ज्यादा बुरा बर्ताव किया जाने लगा है। सोशल मीडिया फेसबुक और ट्विटर खोलते ही यहां आए दिन एक नई जंग लड़ते यूजर्स को देख सकते हैं। यहां मुद्दों पर गाली-गलौच, प्रताड़ित, नफरत फैलाने वाले आदि शब्दों का इस्तेमाल बिना किसी के डर के किया जाता है। ऑनलाइन दुनिया में एक बड़ा तबका ऐसे लोगों का समर्थक होता जो अपनी छवि की बिना परवाह किए इस जंग में शामिल होता है। जानकार बताते हैं कि सोशल मीडिया पर ऐसा इकोसिस्टम विकसित हो जाता है, जो किसी खास पक्ष को बढ़ाने या विरोध करने का काम मिल-जुलकर करने लगता है। ऐसा इसलिए होता है कि इसमें जरा भी जोखिम नहीं होता। अगर आप किसी गाली देने वाले या बुरी बात कहने वाले का विरोध करते हैं, तो बहुत से लोग आपको शाबाशी देने आगे आते हैं। सबसे बड़ा कारण यहां आपकी असली पहचान छुपी रहती है। इंटरनेट पर अफवाह और विरोध करने वाले लोग अक्सर फेक आईडी का इस्तेमाल करते हैं। वहीं मनोवैज्ञानिक का इस संदर्भ में कहना है कि जब से इंसान स्मार्टफोन की स्क्रीन में कैद हुआ तब से वह ज्यादा अकेला हो चुका है। ऐसे में उसके भीतर चलने वाला गुस्सा, एक वर्ग से खास परेशानी आदि सोशल मीडिया पर निकलती जिसका यहां उसे समर्थन देने वाले भी कई उसके जैसे ही हैं।

आई एम ट्रोल हेल्प मुहिम हुई फेल-
पूर्व महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने अपने कार्यकाल के दौरान #IamTrolledHelp सेवा लांच की थी। इस योजना के तहत उन्होंने महिलाओं से अपील की थी कि वो उन्हें ट्वीट और ई-मेल के जरिए सोशल मीडिया पर बद्तमीजी और छेड़छाड़ की शिकायत भेजें। #IamTrolledHelp की शुरूआत के बाद मंत्रालय को पहले छह महीने में 56 शिकायतें मिली। जिनमें से 29 को जांच के बाद बंद कर दिया गया। इनमें से कुछ में शिकायत करने वालों ने बाद में जांच में सहयोग नहीं किया, तो कुछ के सोशल मीडिया अकाउंट ही डिएक्टिवेट कर दिए। आपको बता दें #IamTrolledHelp सुविधा आज भी चल रही है लेकिन इसमें अब शिकायतें कम आती हैं। यानी सरकार द्वारा चलाई गई मुहिम खुद लोगों द्वारा फेल कर दी गई। इस विषय में जानकारों मानना है कि इंटरनेट का संसार बहुत बड़ा है और हर ट्रोल पर नजर रखना उनके विभाग के लिए संभव नहीं है।

कानून की पकड़ सख्त नहीं-
साइबर क्राइम को नए जमाने का अपराध है। हमारे यहां का प्रशासन यानी हमारी पुलिस, जांच एजेंसियां और न्यायिक संस्थाएं इनसे निपटने के लिए तैयार नहीं है। आईटी एक्ट की धारा तहत कई कार्रवाई की जा सकती है लेकिन हमारे यहां के कानून की पकड़ ऐसे अपराध के लिए सख्त नहीं है और दूसरा लोगों को अपने अधिकारों के बारें में जानकारियां नहीं है। ऐसे में साइबर क्राइम पर लगाम कसना काफी मुश्किल है।

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