“मेरा वोट मेरा अधिकार, नोटा असरदार या बेअसर”

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। यहाँ समय-समय पर किसी न किसी प्रांत में चुनाव होते ही रहते हैं कभी सरपंच , कभी पार्षद , कभी विधायक, कभी सांसद।

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भारत अनेकता में एकता को संजोए, अनेक विविधताओं एवं सांस्कृतिक विरासत वाला राष्ट्र है। यहाँ के प्रत्येक प्रदेश की अपनी एक विरासत है, संस्कृति है, प्रत्येक प्रदेश की अपनी भाषा है इस प्रकार प्रत्येक लिहाज से राष्ट्र विविधताओं से परिपूर्ण है। भारत देश को त्यौहारों का देश भी बोला जाता है समय समय पर विभिन्न त्यौहारों का आयोजन किया जाता है लोग हंसी खुशी मिलकर त्यौहार मनाते है। इसी तरह यह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है जो विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में जाना जाता है। यहाँ समय-समय पर किसी न किसी प्रांत में चुनाव होते ही रहते हैं कभी सरपंच , कभी पार्षद , कभी विधायक, कभी सांसद। इस तरह भारत में चुनावों का अपूर्व रूप देखा जा सकता है, चुनावों को लोकतांत्रिक पर्वो की संज्ञा भी दी गई है। आम चुनाव जो सम्पूर्ण राष्ट्र में एक साथ सम्पन्न करवाए जाते हैं उनमें राजनेता और राजनैतिक पार्टियां तो उत्साहित होती ही है साथ ही समस्त नागरिकों का उत्साह भी देखते ही बनता है। वर्तमान में चुनाव आयुक्त द्वारा 4 प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हेतु गाइडलाइन जारी की गई है। इनमें हिंदी भाषी राज्य होने से राजनीतिक दलों में उठापटक तो तेज हुई ही है साथ ही जनसंपर्क भी बढ़ चुका है। आज देश का लगभग हर नागरिक चाय की थड़ी पे चाय की चुस्कियों के साथ अपने अनुभव एक दूसरे से साझा कर रहे हैं। विभिन्न ढेलों और दुकानों पर चर्चा का बाजार गर्म होने लगा है । राजनैतिक गलियारों की हलचल भी तेज होने लगी है । चूंकि 2019 के आरंभ में देश में आम चुनाव का आयोजन होना है,इन चुनावों को सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है जहाँ सभी अपनी अपनी धाक जमाने की फिराक में हो। तो चलिये बात करते हैं अपने प्रमुख मुद्दे पर । “मेरा वोट मेरा अधिकार ,,नोटा असरदार या बेकार “

जैसा कि किसी तथ्य को मानने या न मानने के पीछे सबके अपने अलग अलग मंतव्य होते हैं । यहाँ मैं नोटा के विपक्ष अर्थात् नोटा बेकार पर अपने तर्क प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। तो सबसे पहले जान लेते हैं नोटा क्या है? NOTA=  None Of The Above. अर्थात मुझे इनमें से एक भी उम्मीदवार पसंद नहीं है और मैं अपना वोट नोटा को देता हूँ। भारत निर्वाचन आयोग ने 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमे से कोई नहीं अर्थात नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाने के निर्देश दिये । यद्यपि नोटा पर दिये गये वोट कितने ही क्यों न हो तथापि सवार्धिक मत प्राप्त पार्टी ही विजयी होती हैं । इसी प्रकार चुनाव के माध्यम से जनता का किसी भी उम्मीदवार के साथ अविश्वसनीय , आयोग्य  अथवा नापसन्द होने का यह मत केवल यह संदेश मात्र होगा कि कितने प्रतिशत लोग किसी भी प्रत्याशी को नहीं चाहते हैं। हो सकता है कि संभावित नोटा किसी प्रत्याशी की हार – जीत की खाई पाटने का काम करें। इसी क्रम में बात करते हैं नोटा की सार्थकता पर। मेरे मतानुसार नोटा का प्रयोग मतदाता के मताधिकार का हनन है ।

कहा जाता है कि यदि आप राजनीति में हिस्सा नहीं लेंगे तो अयोग्य लोग आप पर शासन करेंगे । इसका मतलब हमें भी इसमें शरीक होना चाहिए, हालाँकि सभी लोग भाग ले यह भी संभव नही है। इसके लिये दो चीजें या दो उपाय हो सकते हैं पहला प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना औऱ दूसरा परोक्ष रूप से। प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना अर्थात राजनेता या उम्मीदवार जो चुनाव लड़ रहे हैं और परोक्ष वे जो मतदान करते हैं । मतदाता अर्थात आम नागरिक, तो परोक्ष रूप से भी हम भाग ले सकते हैं। संगठित होकर नागरिक अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में मत देकर भी अपना योगदान कर सकते हैं । इस पर प्रत्याशी की जीत उन्ही जागरूक नागरिकों की बदौलत होती है तब उनके योगदान को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है । अब बात करते है कि नोटा को वोट क्यों नहीं देना ?? इस संदर्भ में एक ही कारण है _ लोग नोटा को वोट इसलिये देते है क्यूंकि उपर्युक्त में से कोई भी उम्मीदवार अच्छा नही है , जनता की उम्मीदों पर खरा नही उतर पायेगा इसलिये सब उसे नापसंद करते है और नोटा को वोट देते हैं ।

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चलो मान लेते हैं कि आप अपनी जगह सही है और सब उम्मीदवार निट्ठल्ले है, कोई काम के नही तो राजनीति में तो सब एक जैसे ही होते हैं। किसी गिने चुने को छोड़ कर सब एक सरीखे होते हैं, कोई दुध का धुला नही होता है, इस पर भी जनता को तो किसी एक को चुनना ही होता हैं। मगर यहाँ आम जनता को यह पता करना चाहिए कि दोनों में से अच्छा कौन कर सकता है ? हां माना कि सब के सब ही आपकी पसंद के नही है मगर हो सकता हैं उनमें से कोई एक दूसरे से बेह्तर हो तो बेझिझक होकर उसका चुनाव कर लेना चाहिए ।
अब इसके विपरीत यदि आपने नोटा को वोट दिया है तो हम यहाँ एक काल्पनिक अनुमान लगाते है – कुल उस पूरे क्षेत्र में 1.00.000 मत पड़े और 3 उम्मीदवार और एक नोटा मिलाकर 4 थे। पहले वाले को कुल मत मिले 21.000 ,, दूसरे को 19.000 ,, तीसरे को 25.000 और नोटा को मिले 35.000 । इस प्रकार सर्वाधिक वोट मिले नोटा को यानि नोटा जीत गया परन्तु नहीं । ऐसी स्थिति में जिस उम्मीदवार को ज्यादा मत मिले है उसी को उम्मीदवार घोषित करेंगे । इस तरह आपके नोटा का कोई मूल्य नही रह गया, इससे तो अच्छा  किसी उम्मीदवार को देते तो उसकी जीत में आपकी भी भागीदारी होती ।

इसलिये नोटा का मेरी दृष्टि में कोई औचित्य नहीं है। इतना ही नहीं, खेल तो तब भी जारी रहता है जब जीता हुआ प्रतिनिधि आपके क्षेत्र में आता है और आपको अपना कोई कार्य भी करवाना है तो एक बार हिचकिचाहट महसूस करोगे कि हमने तो नोटा को वोट दिया था तो किस हक से कहे कि यह कर दो/वो कर दो । इस प्रकार भारत सरकार और चुनाव आयोग ने भले ही इसे संवैधानिक करार दिया हो लेकिन आप अपने मत का उपयोग करे । सही, उचित, व योग्य व्यक्ति का चयन करें और लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें । अंत में इतना ही कहूंगा कि नोटा दबाने का कोई औचित्य नहीं है ।।

नरपत सिंह चारण
(स्वतंत्र विचारक)

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