माँ, मैं बड़ी हो गई हूँ,
क्योंकि, वो घूरते हैं मुझे..
माँ, मुझे डर लगता है,
क्योंकि, वो छेड़ते हैं मुझे..
माँ, मुझे फ़िर से अपनी गुड़िया बना दो,
क्योंकि, मैं भी तितलियों सी उड़ना चाहती हूँ…
माँ, मुझे वो परियों वाला फ्रॉक पहना दो,
क्योंकि, मैं भी आज़ाद गगन को बाहों में समेटना चाहती हूँ…
माँ, मुझे आँचल में छुपा लो,
क्योंकि, थक चुकी हूँ लड़ते-लड़ते, अब मैं सोना चाहती हूँ…
©मनीष