कहाँ मांग की थी तुम ने संस्कारो की
तुम तो दहेज के भिखारी थे
तुम्हें तो चाह थीं सारे ऐश-आरामों की
धन मे तौला था तुम ने रिश्तों को
कीमत अदा करवाई थी तुम ने रिश्तेदारों की
तो फिर क्यों बात करते हो अब संस्कारों की
तुमनें न जानी उस बाप की पीढा़
जिसनें अपनी बेटी ब्याही थीं
तुमनें तो अपने मान के खातिर
उसकी नाक भी रगड़वाई थीं।
बेटा को तुमने अपने इंजीनियरिंग करवाई हैं
और कीमत उस पढाई की बेटी के बाप से चुकवाई है।
आज जब वो जुबान खोलती हैं तो
फिर क्यों उम्मीद करते हो उससे संस्कारो की