कन्या को देवी कहते हो
देवी को लूट भी लेते हो?
औरत को लक्ष्मी कहते हो
लक्ष्मी को बेच भी देते हो?
मन्दिर में शीश झुकाते हो
भक्ति का स्वांग रचाते हो
इतना कैसे गिर जाते हो?
पांच साल के जिस्म
तुम्हारे पौरुष को उकसाते है
पुष्प से कोमल बचपन को
तुम तहस नहस कर जाते हो
तुम नशे को ढाल बनाते हो
चीखों को न सुन पाते हो
इतना कैसे गिर जाते हो?
एक आँचल से अमृत पीकर
एक आँचल को निर्वस्त्र करो
एक कोख के आभारी होकर
एक भावी कोख को ध्वस्त करो
बल से निर्बल एक काया को,
अपना पुरूषार्थ दिखाते हो
इतना कैसे गिर जाते हो?
आंखों से धारा रिसती होगी
भय से वो कंपती होगी
स्वयं से घृणित तनमन की
अग्नि में वो तपती होगी
एक सुखद सुनहरे जीवन को
जीते जी नर्क बनाते हो
इतना कैसे गिर जाते हो?
तुम्हें धरा पर लाने वाली
मां भी पछताती होगी,
रक्त से तुमको सींचा क्यों
वो शर्म से गढ़ जाती होगी,
कैसे तुम उस जननी की
आखों से आंख मिलाते हो
इतना कैसे गिर जाते हो?
रिया_प्रहेलिका
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