स्वास्थ्य मानव समाज, समुदाय एवं राष्ट्र का आधार स्तंभ है। स्वास्थ्य केवल रोग की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि अपने में विस्तृत अर्थ समेटे है। दैहिक ,मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णता स्वस्थ रहना ही स्वास्थ्य है। जीवन में आने वाली सभी सामाजिक, शारीरिक एवं भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन सफलतापूर्वक करना ही उत्तम स्वास्थ्य को परिभाषित करता है। स्वस्थ होने का वास्तविक अर्थ अपने आप पर ध्यान केंद्रित रखते हुए जीवन जीने के स्वस्थ तरीका है। किसी भी देश में जनता विशेषकर महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य वहां की सरकार के एजेंडे में प्रमुख रूप से होता है। यह बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब मातृत्व स्वास्थ्य की बात हो। महिलाएं किसी भी समाज का मजबूत स्तंभ होती हैं जब महिलाओं और बच्चों की समग्र देखभाल होती है तभी देश का सतत विकास संभव है। मां बनना प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान है ।गर्भावस्था महिलाओं के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चरण है। नारी को सृजनकारी इसीलिए कहा गया है। 9 महीने तक अपने गर्भ में रखकर एक नए जीव का सृजन करती है।
चुनौतियां-
प्रत्येक वर्ष प्रसव के दौरान हजारों की संख्या में महिलाएं अपनी जान गवाँ देती हैं या नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है। अशिक्षा, जानकारी की कमी, समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव ,कुपोषण, कम उम्र में विवाह, बिना शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हुए गर्भधारण करना महिलाओं के लिए जोखिम भरा होता है। प्रसव मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में कमी तो आई आई है, पर यह पर्याप्त नहीं है। अधिकतर मातृ मृत्यु दर की वजह जन्म देते समय अत्यधिक रक्तस्राव के कारण होती है। इसके अतिरिक्त संक्रमण और असुरक्षित गर्भपात भी अहम कारण है । दूरदराज क्षेत्रों में आपात सहायता ना उपलब्ध होने के कारण या बिना डॉक्टर की मदद से प्रसव कराने के दौरान भी मौत हो जाती हैं।
गर्भावस्था माता के जीवन का महत्वपूर्ण समय होता है। इस समय केवल गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिये ही नहीं ,बल्कि बाद में नवजात शिशु और बढ़ते हुए बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये मां का स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में आवश्यक है कि माता के मानसिक स्वास्थ्य की भी देखभाल की जाये। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में अभी बहुत जागरूकता नहीं है । मानसिक रूप से स्वस्थ मां का बच्चा भी मानसिक रूप से स्वस्थ होगा । जन्म के समय कम वजन ,समय से पूर्व प्रसव आदि गर्भवती माँ के मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।
यदि माता बहुत दबाव में है तो भी समस्या आती है। कम वजन का अर्थ है, बच्चे का गर्भ में बेहतर विकास नहीं हुआ है और इसके परिणाम दीर्घगामी और भयावह हो सकते हैं ।जन्मजात मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों के होने का एक कारण ये भी है ।
मातृत्व की चुनौतियों में सामाजिक कारणों के अलावा पर्यावरणीय कारकों की भी प्रमुख भूमिका है । छोटे और पृथक आबादी वाले क्षेत्रों में अभी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। आदिवासी और दलित समुदाय का स्वास्थ्य सेवा केंद्र तक पहुंचने की संभावना कम होती है। इन सबके साथ सबसे बड़ी चुनौती है पोषण की कमी,स्वच्छ पानी और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध न होना।
इन चुनौतियों से निबटने के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई गयीं है। विश्व भर में आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित करने वाला ,भारत दुनिया का पहला देश है। प्रत्येक वर्ष कस्तूरबा गांधी के जन्म दिवस 11 अप्रैल को सम्मान के रूप में सुरक्षित मातृत्व दिवस घोषित किया गया है।
वर्तमान केंद्र सरकार की सुरक्षित मातृत्व के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं हैं जिसमें प्रमुख है
प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान-
राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के तहत प्रत्येक मास की 9वीं तारीख को ,सभी गर्भवती महिलाओं को सुनिश्चित ,व्यापक एवं उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सभी स्वास्थ्य केंद्र पर प्रदान की जाती है।
जननी सुरक्षा योजना-
भारत सरकार के स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रायोजित योजना है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को संस्थागत प्रसूति कराने के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराना है आशा अथवा कोई अन्य सुनिश्चित संपर्क कार्यकर्ता द्वारा एएनएम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी की देखरेख में प्रसव की व्यवस्था की जाती है।
प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना-
इस योजना के अंतर्गत पहली बार गर्भवती होने वाली महिलाओं को कुपोषण से निबटने के लिए 5000 रुपये के आर्थिक सहायता के प्रावधान पर विचार विमर्श चल रहा है।
मातृत्व अवकाश प्रोत्साहन योजना-
कुछ कार्यक्षेत्रों में वेतन सहित प्रसूति अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह का कर दिया गया है। प्रसव के 8 सप्ताह पूर्व से प्रसव के बाद 18 सप्ताह तक कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त इस अवधि के बाद नियोक्ता की सहमति से घर से भी कार्य करने की सुविधा का प्रावधान है । जिस कार्यालय में 50 से अधिक नियोजित करने वाले कार्यालय को शिशु गृह भी उपलब्ध कराना है, और माँ को दिन में चार बार वहाँ जाने की सुविधा दी गयी है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ-
इस योजना में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,स्वास्थ्य मंत्रालय एवं मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा एक संयुक्त पहल के रूप में शुरू की गई है। बालिका और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये एक सामाजिक आंदोलन और समान मूल्य को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान है। इस योजना का उद्देश्य पक्षपाती लिंग चुनाव की प्रक्रिया का उन्मूलन करना , बालिकाओं का अस्तित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना, उनकी शिक्षा पर ध्यान देना , उन्हें शोषण से बचाना और सही गलत के बारे में बताना है।
सुकन्या समृद्धि योजना-
बेटियों के लिए केंद्र सरकार की एक छोटी बचत योजना है ,जिसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्कीम के तहत लॉन्च किया गया है ।10 साल से कम उम्र की बच्ची के लिए उच्च शिक्षा और शादी के लिए बचत करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार की यह एक अच्छी निवेश योजना है। इसमें सिर्फ 250 से खाता खोला जा सकता है। यह योजना उन परिवारों को ध्यान में रखकर शुरू की गई है जो छोटी-छोटी बचत के जरिए बच्चे की शादी या उच्च शिक्षा के लिए रकम जमा करना चाहते हैं ।एस एस वाई खाता बच्चे के माता पिता या कानूनी अभिभावक द्वारा गर्ल चाइल्ड के नाम से उसके 10 साल की उम्र से पहले खोला जा सकता है । एक बच्ची के लिए दो खाता नहीं खोला जा सकता है।
भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा रहा है लेकिन बाल विवाह जैसी कुरीति यहां आज भी जिंदा है ।यह ऐसी कुरीति है जिसमें दो अपरिपक्व लोग जो आपस में बिल्कुल अनजान है उन्हें जबरन जिंदगी भर साथ रहने के लिए एक बंधन में बांध दिया जाता है। बाल विवाह के दुष्परिणाम में सबसे घातक शिशु और माता की मृत्यु दर में वृद्धि , एचआईवी यौन संक्रमण का खतरा और जिम्मेदारियों का पूर्णरूपेण निर्वहन ना कर पाना है। यूनिसेफ 18 वर्ष की उम्र से पहले के विवाह को बाल विवाह के रूप में परिभाषित करता है । इसको रोकने के लिए कड़े कानून बनायें गयें हैं । इसमें शामिल होने या प्रोत्साहन देने के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान है।
कमियां:
इन सब कार्यक्रम के बाद भी मृत्यु दर को और कम करने की चुनौती सरकार और समाज के सामने हैं। इन योजनाओं के दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। निजी क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं की छटनी या गर्भवती स्त्री को इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
किसी भी योजना को कार्यान्वित करते समय कुछ कमियां तो रह जाती हैं लेकिन यदि ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो इन पर काबू पाया जा सकता है। दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में एएनएम ,आशा कार्यकर्ताओं को अधिक प्रोत्साहन और पैकेज देने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर उचित व्यवस्था , मूलभूत सुविधा और दवाईयों का प्रबंधन आवश्यक है ।
निचले तबके में बढ़ती हुई जनसंख्या भी एक प्रमुख कारण है। कई बार ये लोग योजनाओं का लाभ उठाते है और उचित देख रेख के अभाव और कुपोषण की वजह से महिलाएं शारिरीक रूप से गर्भ धारण के लिए अक्षम होती है और नतीजा मृत्यु दर में वृद्धि। इस विषय पर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
सुरक्षित प्रसव कराने के लिए सेफ डिलीवरी एप भी लाया गया है। इसमें गर्भावस्था एवं प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं के उपचार को सरल तरीके से बताया गया है। होम बेस्ड न्यूबोर्न केअर जैसी योजनाओं पर भी जोर दिया जा रहा है। इन सब सरकारी प्रयास के बाद परिजनों और महिला को स्वयं देख रेख करनी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान कुछ साधारण परेशानियां तो सभी को लगी रहती हैं फिर अपने आप ठीक हो जाती हैं जिसमें जी मिचलाना और उल्टी होना आम समस्या है ,परंतु अंतिम महीनों में यदि ये समस्या है तो डॉक्टर को तुरंत दिखाने की आवश्यकता है।
एसिडिटी ,पैरों में सूजन और कमर के निचले हिस्से में दर्द ये सब आम समस्या है और इनसे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होती ।परंतु लगातार उल्टी होना, अत्यधिक कमजोरी ,चेहरे पर सूजन सिर दर्द ,ये लक्षण खतरनाक हो सकते हैं।
पोषण:
भ्रूण के विकास के लिये पोषण उसे माँ के गर्भ से मिलता है अतः माँ को सामान्य रूप से अधिक पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिये ।रेशेदार पदार्थ और विटामिन युक्त भोजन का प्रयोग करना चाहिये । प्रत्येक महिला की आवश्यकता और स्वाद अलग अलग है ,इसलिए डॉक्टर की देखरेख में ही आयरन ,कैल्शियम और फोलिक एसिड की गोलियां लेनी चाहिये।
सुरक्षित मातृत्व के लिए टिटनेस के टीके भी चौथे से सातवें महीने में दो बार लगवाये जाते हैं।
भारी बोझ उठाने से बचना चाहिये। स्वच्छता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।
सबसे महत्वपूर्ण बात ग्रामीण इलाकों में परंपरागत प्रसव के तरीकों से बचना चाहिए। आपातकाल की स्थिति में मृत्यु की संभावना अधिक होती है। संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ।प्रसव के बाद नवजात शिशु स्वास्थ्य पर अति गंभीरता से कार्य करने की आवश्यकता है। बढ़ते हुए बच्चों को प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट और विटामिन की अत्यधिक आवश्यकता होती है । प्रोटीन से मस्तिष्क और मांसपेशियों का विकास होता है। इन पोषक तत्वों की कमी से गंभीर रोग होते हैं । सरकार के प्रयास और आशा कार्यकर्ताओं की सक्रियता से सुरक्षित प्रसव का रिकॉर्ड कायम हुआ है इन सबके साथ किशोर स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इन्हें नशे और गलत आदत से बचाने का भी प्रयास किया जा रहा है। शारीरिक ,मानसिक और नैतिक स्वास्थ्य से परिपूर्ण समाज ही विकास में अपना बहुमूल्य योगदान देकर, सभी बाधाओं को पार कर अपने राष्ट्र की उन्नति में सहायक है ।
अनिता सुधीर श्रीवास्तव
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य और व्यक्त किए गए विचार पञ्चदूत के नहीं हैं, तथा पञ्चदूत उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
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