भारत बचाओ

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हमें अपने इस प्यारे भारत को बचाना है,
उसे अपना वही पुराना स्थान दिलाना है,
चलो अभी यह प्रण हम करें, सब मिलकर,
कि बस अब और नहीं, अब और नहीं।
बहुत हुआ जो अब तक हम चुप-चाप सहते रहे,
अपने सीने पर सौ-सौ खंज़र हम सहते रहे,
अब हमें यह दुनियाँ को दिखलाना है,
कि भारत क्या था और क्या हमें फिर से होना है।
यही अब सही वक्त है मेरे देश वालों,
जागो और कमान को अपने हाथ में ले लो,
बहुत हमने सह लिया अब और नहीं,
यही पैग़ाम अब गण-गण तक पहुँचाना है।
बहुत सो लिए हम कुम्भ करण की नींद में,
अब खुद को और सब को ज़गाना है,
चाहे जितने भी प्रयत्न हमें करने पड़े,
अब दुनियाँ को हमें जाग कर दिखाना है।
देखो कितनी सुहानी सुबह है,
चारों ओर मदं-मंद हवा बह रही है,
ज़िन्दगी की सुबह भी होने को है,
उठ्ठो, जागो, मुँह हाथ धोऔ।
और मेरे साथ सैर करने चलो,
सैर करेंगे और अपने जैसे,
और लोगों से भी मिलेंगे,
ठण्डी और ताज़ी हवा को पियेंगे।
उसे महसूस करेंगे और तरोताज़ा होगें,
सबके साथ मिलके, कुछ ब्यायाम करेंगे,
क्योंकि कुछ भी करने से पहले,
खुद को तन्दरुस्त करना होगा।
तभी तन और मन एक साथ होगा,
जब अपना-अपना तन और मन एक सथ होगा,
तभी हम अपने प्यारे भारत देश के लिए,
जो चाहते हैं, कर पाएंगे, कुछ बन पाएंगे।
इसके लिए सुवह-सुवह, सूर्य जागने से पहले उठना,
उतना ही ज़रुरी है, जितना कि शरीर को खाना,
हाँ शुरु-शुरू में तुम्हे थोड़ी तकलीफ ज़रुर होगी,
पर जब काम भारत बचाओ और निर्माण का हो।
और मन में, इस काम को करने की इच्छा जग जाए,
तो यह सब करना, इतना आसान हो जाएगा,
कि तुमको पता भी नहीं चलेगा,
सुव्ह सात-आठ बजे उठने वाला, भोर में ही उठ जाएगा।
अपने आस पास बालों और दोस्तों को भी उठाएगा,
और उपर लिखे सभी काम बखूबी करेगा,
अपने काम पे जाएगा, बहाँ खुशी-खुशी दिन भर काम करेगा,
और प्रसन्न मन से, खुशी-खुशी घर लौट के आएगा।
जो आज होती है थकान, वो हमेशा के लिए,
उसे इस क़दर भूल जाएगा,
जैसे आज इसी देश के कुछ लोग,
यह भूल गए हैं कि भारत क्या था?
उन्हे तो अपनी गुलामी के वो 200 साल भी याद नहीं,
और यह भी वो जानता नहीं कि हम आज़ाद कैसे हुए,
चलो कोई बात नहीं, वो कहते हैं और ठीक ही कहते हैं,
कि जब जागो तभी सबेरा, आखिर जागे तो।
नहीं तो पता नहीं कब तक सोते रहोगे,
और इसी तरह भारत को सोता हुआ देखते रहोगे,
यही सोचकर कि यही हमारि नियति है,
पर यह बिलकुल भी सही नहीं है।
तुम्हे अगर पता नहीं तो किसी जानकर से पूछ लो,
यह वो भारत है, जिसे लोग सोने की चिड़िया कहते थे,
और गिद्द की तरह ही इसे खाने को लपके थे,
बो तो खा ही जाते इसे, पर चिड़िया की अपनी किस्मत है।
और इसके भगत सिंह, गाँधी जैसे लाल हैं,
कोई लाख
बुरा चाहे तो क्या होता है,
वही होता है जो मंज़ूरे खुदा होता है,
यह सिर्फ शब्द नहीं सच्चाई है।
आज फिर से एक नई सुव्ह आई है,
इस देश को इसके दुश्मनों से बचाने के लिए,
और यह काम हम सब को ही करना है,
हमीं आज के भगत सिंह और गांधी हैं,
हमीं में से कोई लाजपतराय, कोई बल्लभ भाई पटेल हैं,
कोई सुभाष बोस है तो कोई सरोजिनी नायडू है,
कोई हमीद है, कोई राम है, सीता भी हम में से ही है,
और लक्ष्मण भी हम में से ही कोई है।
कृष्ण, बलराम और बजरंग वली भी हम ही हैं,
भोला बाबा और ब्रहमा, विष्णु भी हममें ही समाएं हैं,
तो फिर यह चारों ओर घबराहट कयों,
क्यों चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा है।
अन्धेरा इतना गहरा है कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता,
क्या यह सच नहीं है, फ़िजुल की बातें हैं?
तो फिर आज आदमी, आदमी को पह्चानता क्यों नहीं?
क्यों एक दूसरे का दुख देखकर भी हमारे आंसू नहीं आते?
यहाँ तक कि हम दुख से कराह रहे हैं,
पर यह आँसू हैं कि सूख रहे हैं,
यह इन आँसूओं का दोष नहीं है,
जब कोई भरोसा देने बाला ही न हो, यह बेचारे क्या करेंगे।
अगर किसी के दुख को महसूस करोगे,
तभी तो वो भी आप्के दुख में शामिल होगा,
तभी तो आँसूओं की शीतल बरसात होगी,
तभी नए भारत की, नई ज़िन्दगी की शुरुआत होगी।
देखिये हम कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए,
बात भारत को बचाने से शुरु हुई थी,
किन-किन रास्तों से गुजर कर, आँसूओं तक पहुँच गई,
यही जीवन की असली सच्चाई है।
अगर हम एक-दूसरे का दुख-दर्द महसूस करेंगे,
तो और ज्यादा हमें कुछ करना ही नहीं पड़ेगा,
और हमें पता भी नहीं चलेगा, कि कब यह आज का भारत,
अपनी मंज़िल को पाने के लिए आगे की ओर बढ़ने लगेगा।
और दर-ब-दर आगे बढ़ते हुए, वो इतना आगे निकल जाएगा,
कि पुराना भारत तो क्या यह और आगे बढ़ जाएगा,
आखिर इतना समय जो खोया है, उसका हिसाब भी तो होगा,
और देश अपने-आप नई-नई उच्चाईयों को छुएगा।
विश्व गुरु वो पहले भी था, फिर से बन जाएगा,
पहले तो सिर्फ एक राम, एक कृष्ण या कि,
एक ही भगत सिंह और गांधी हुए थे,
अब कम से कम 120 करोड़ एसे लोग होंगे।
कोई राम बनेगा तो कोई लक्ष्मण, कोई भरत तो कोई ईशु,
कोई कृष्ण होगा, कोई नानक,
कोई रावण भी इसमें होगा,
पर उसका हश्र भी रामायण जैसा ही होगा
कोई बुद्द होगा, किसी को महावीर भाएगा,
कोई खुदा, कोई मोह्म्मद बन जाएगा,
पहले तो सब एक-एक ही थे,
पर अब इन सबकी भरमार होगी।
कभी सोचा है कि अगर एसा हो जाएगा,
तो भारत कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगा,
न आज का कोई रोना पीटना होगा,
न कोई नेता और कर्मचारी भर्ष्ट होगा।
हर ओर राम-राज्य सी व्यवस्था होगी,
न कोई फिर से नागासाकी या कि हिरोशिमा होगी,
न ही वियतनाम, ईराक या कि अफगानिस्तान होगा,
दुनिया का  हर देश यह समझ जाएगा।
कि शांति और भलाई लड़ने में नहीं
तो क्या यह दुनिया किसी स्वर्ग से कम होगी।
चलो अब मुझे छोड़ दो, मुझे जाना है,
मेरे कधें भी मेरा साथ छोड़ने को आतुर हैं,
इन्ही इच्छाओं के साथ विदा लेता हूँ,
कि इन बातों पर विचार जरुर करोगे,
अपने आप को और सारे समाज को धन्य धान्य करोगे।
अच्छा चलता हूँ, सिर्फ अभी के लिए चलता हूँ।
©मनीष

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