जानिए कैसे ‘इंडिया’ ने ‘भारत’ को जकड़ा है

‘भारत’ को ‘इंडिया’ ने इस कदर अपने कब्जे में कर रखा है कि नैतिकता- अनैतिकता, पाप-पुण्य, परिवार-पड़ोसी और समाज-सम्बन्धो का समीकरण एकदम उलटता जा रहा है।

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भारत का एक समृद्ध  विरासत वाला देश है। भारत की वैश्विक राष्ट्रों के बीच एक अद्वितीय पहचान है। हम विविध परम्पराओं और बहु ​​संस्कृतियों वाले देश हैं।  भारत के समृद्ध इतिहास, उन्नत संस्कृति, उन्नत तकनीक और विज्ञान पर हर किसी को गर्व है। यह दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक रहा है। अधिकांश अन्य प्राचीन सभ्यताएं जब “पाषाण युग” में थीं, तब भारतीय लोगों की सोच,  सभ्यता, प्रौद्योगिकी और प्रणालियां उन्नत स्तर पर थीं। कहने की जरूरत नहीं कि भारतीय बड़े-बड़े  जहाजों का निर्माण करने, उन्नत जल निकासी प्रणालियों का निर्माण करने, बड़े पैमाने पर सूत की खेती करने, सीजेरियन करने और यहां तक ​​कि आसानी से पीतल से जस्ता निकालने में सक्षम थे। सामाजिक संस्कृति की बात की जाए तो भारत की पहचान उच्च सार्वभौमिक उद्देश्य के लिए रही है जो अपने कर्तव्य का दृढ़तापूर्वक पालन कराती है। आज भी भारतीयों में अभी तक जीवित परम्पराओं के विशेषाधिकार का बोध है। भारतीय संस्कृति में आस्था से जुड़े लोक देवता हैं। रामलीलाएं, दुर्गापूजा उत्सव आयोजन, सरस्वती पूजा आयोजन जगह-जगह होते थे और होते रहेंगे लेकिन बदलते दौर के साथ अब ये मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं हैं। सवाल उठ खड़ा होता है कि ऐसा क्यों?

इंडियाने  ‘भारतको जकड़ा
प्राचीन भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति जो भी है, वह अब अंतिम सांसें लेती दिखती है। इसकी सीधी वजह यह है क्योंकि हम संस्कृति को नुमायशी और बिकाऊ बनाने की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं । आज अपनी संस्कृति को हम इस रूप में पेश कर रहे हैं कि वह पाश्चात्य संस्कृति के रूप में परिवर्तित होती जा रही है और आय कमाने का साधन बनकर रह गई है। भारत भी दूसरे देशों की तरह ही ‘खाओ-पियो-मौज करो’ वाला एक आम देश बनता जा रहा है। वर्तमान समय में संस्कृति का औद्योगिकीकरण हो चुका है। संस्कृति अपसंस्कृति बन चुकी है।  ‘भारत’ को ‘इंडिया’ ने इस कदर अपने कब्जे में कर रखा है कि नैतिकता- अनैतिकता, पाप-पुण्य, परिवार-पड़ोसी और समाज-सम्बन्धो का समीकरण एकदम उलटता जा रहा है। दूसरी और यह भी एक सच है कि वेदों और वैदिक धर्म में करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास आज भी उतना ही है, जितना हजारों वर्ष पूर्व था। गीता और उपनिषदों के सन्देश जो हजारों साल से हमारी प्रेरणा और कर्म का आधार रहे हैं, आज भी उतनी ही कर्मठता से हमारे साथ जुड़े हुए हैं।

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ऐसा संकट पहले कभी नहीं रहा
सत्यम, शिवम सुंदरम की भारतीय अवधारणा अब मिस्टर इंडिया, सौंदर्य प्रतियोगिता तक आ गई है। इससे भारतीय संस्कृति के सामने अब तक का सबसे अभूतपूर्व संकट उत्पन्न हुआ है। पश्चिमी संस्कृति के अपना मजबूत आधार स्थापित करने के चलते धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति मिट रही है। यह संस्कृति मेट्रो शहरों में तो पहले से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है और अब यह धीरे-धीरे भारत के अन्य हिस्सों की तरफ बढ़ रही है। पश्चिमीकरण ने हमारी
परंपराओं, रीति-रिवाजों, परिवार और दूसरों के प्रति सम्मान और प्यार को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। संयुक्त परिवारों की अवधारणा तेजी से घट रही है, हर कोई दूसरों से अलग रहना चाहता है। यह चलन हमारी भारतीय संस्कृति के लिए पूरी तरह से विरोधाभासी है।  धीरे-धीरे हमारे सभी मूल्य, जिन पर भारत को नाज था और है, वह गायब हो रहा है। लोग पश्चिमी संस्कृति का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं। एकल परिवार होने से विवाह तेजी से टूट रहे हैं और सहिष्णुता और धैर्य ने हमारा साथ छोड़ दिया है। अधिकांश मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से दूर रहना पसंद करते हैं जो बहुत
दुर्भाग्यपूर्ण है।

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पश्चिमी होने का नाटक करने में गर्व का अनुभव
पश्चिम के देशों से अच्छी चीजें लेने में कोई नुकसान नहीं है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हमें इसे पूरी तरह से अपना लें। हम पश्चिमी होने का नाटक करने और अपनी पहचान को गलत तरीके से प्रस्तुत करने में गर्व महसूस करते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अब भारत हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में हमें सभी प्रांतों की संस्कृतियों और परम्पराओं को जानने की आवश्यकता है। हमें अपनी पहचान को संरक्षित करना जरूरी है। एक बात हमेशा ध्यान में रखी जानी चाहिए कि पश्चिमी दुनिया भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए हमारी ओर देख रही है। यह चौंकाने वाली बात है कि एक ओर भारतीय अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं और पश्चिम के लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए भारत की तरफ देख रहे हैं। वे यहां सच्ची शांति की  तलाश के लिए हमारे देश में आ रहे हैं। भारत ने योग और ध्यान के क्षेत्र
में एक अच्छी ख्याति अर्जित की है। पर भारतीय धन की ओर ताक रहे हैं और इसके लिए वे कुछ भी करते हैं, वह बहुत चौंकाने वाला है।

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गलती बच्चों की नहीं, माता-पिता की
यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज की पीढ़ी को अपनी संस्कृति, परम्पराओं और जड़ों के बारे में बहुत कम पता  है। यह उनकी गलती नहीं है बल्कि उनके माता-पिता की गलती है जो अपने बच्चों को अपनी ही समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, अपनी जड़ों के बारे में जानकारी नहीं देते हैं। विरोधाभास तो यह है कि एेसे माता-पिता अपने बच्चों को पश्चिमी संस्कार
देने में गर्व महसूस करते हैं। बच्चों को एेसे ही माहौल में ढाला जाता है। उन्हें भारतीय संस्कृति से मीलों दूर रखा जाता है। अन्य संस्कृतियों और परम्पराओं के बताने में कोई हानि नहीं है क्योंकि भारतीयों ने दुनिया के हर हिस्से में अपनी उपस्थिति बनाई है लेकिन यह भी बहुत जरूरी है कि हमें अपनी संस्कृति, परम्पराओं और भाषा का ज्ञान होना चाहिए। और इसके लिए जरूरी है कि माता-पिता को ही भारतीय संस्कृति और परम्पराओं से अच्छी तरह से अवगत होना चाहिए।

हम समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के रखवाले बनें
इस तथ्य में भी कोई संदेह नहीं है कि पश्चिमी संस्कृति बहुमुखी है और जिसमें खुद को आत्मनिर्भर होने के लिए बताया गया है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम अपनी संस्कृति को बिल्कुल ही भूल जाएं और आंखें बंदकर इसका पालन करने लगें।  हमें गर्व महसूस करना चाहिए कि हम भारतीय हैं। हमारे पास समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है जो बहुत दुर्लभ है और हमें इसे आगे ले जाना चाहिए। हमें इसका संरक्षक होना चाहिए जो हमारी ही पीढ़ी के लिए लाभकर होगा ।

भारतीय संस्कृति के विलुप्त होते जाने की मुख्य वजह
1. हर माता-पिता की बच्चों से यही उम्मीद कि वे शिक्षा पर ही ध्यान दें।
अन्य गतिविधियां उनके जीवन का हिस्सा नहीं हैं।
2. शिक्षा का आधार पश्चिम की शिक्षा पद्धति  (स्थानीय भाषा और सामाजिक
अध्ययन को छोड़कर)।
3. बच्चों की योग्यता को किसी का समर्थन, सहयोग नहीं।
4. वेद, पुराण, रामायण, गीता आदि को पढ़ना रुढ़िवादी शिक्षा।
5.गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों को हीन भावना से देखना
6.संस्कृति, परम्पराओं और जड़ों के बारे में जानकारी नहीं
7.लोक देवताओं को लेकर अभद्र टिप्पणियां
8.रामायण, महाभारत आदि को कल्पना मानना।
9.अपनी ही पहचान को गलत तरीके से पेश करने में गर्व की अनुभूति
10.पश्चिमी रीति-रिवाजों का अंधानुकरण।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्दों में…”सभ्यता वह है जो हमारे पास है, संस्कृति वह है जो हम हैं” – जॉर्ज बर्नाड शॉ के शब्दों में कहें तो भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। हम खुद को अप्राकृतिक मास्क से ढंक कर रखते हैं। भारत के चेहरे पर मौजूद हल्के निशान रचयिता के हाथों के निशान हैं। …..

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