”डर का साया”

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ये कैसा डर का साया,
एक लड़की को सताता है।
माँ की कोख में पलते वक्त ही,
जिसे ये जमाना मारना चाहता है।
क्या कोई जवाब है इसका ,
क्यों ये पाप किया जाता है।
आँख खुलने से पहले ही,
एक चिड़िया को अँधेरा दिखाया जाता है।
ये कैसा डर का साया ,एक लड़की को सताता है।
किस्मत से अगर को जन्म ले जाती है,
तो क्यों जमाने को,
ये बात रास नही आती है।
बोझ कह कर उसकी आत्मा को,
छन्नी किया जाता है।
क्या कोई जवाब है इसका,
क्यों उसके आत्म सम्मान को मिट्टी किया जाता है।
ये कैसा डर का साया,एक लड़की को सताता है।
हर जहर का घुट पीकर,
जब वो बड़ी हो जाती है।
तो क्यू वो जमाने के लिए,
खुली तिज़ोरी हो जाती है।
कांधे से पल्ला सरक जाने पर,
उसे बूरी नजर से देखा जाता है।
क्या कोई जवाब है इसका ,
क्यों उसे जीते जी मारा जाता है।
ये कैसा डर का साया ,एक लड़की को सताता है।
हर विपदा से लड़ कर ,
जब वो पराये घर जाती है।
तो क्यू उसे माँ बाप के संस्कारों की,
दुहाइयाँ दी जाती है।
लज्जा हीनता का लांछन लगा कर,
मर्यादा का घूँघट पहनाया जाता है।
कोमल ह्रदय शालिनी को पत्थर दिल बनाया जाता है,
क्या कोई जवाब है इसका,
क्यों एक लड़की को जिंदगी भर,
डर के साये में जलाया जाता है।
ममता मालवीय
मध्यप्रदेश