राजस्थान प्रदेश की सरकारी स्कूलों में मिलने वाली शिक्षा किसी कम्पनी द्वारा दी जाने वाली “फ्री ऑफर्स” जैसी ही हैं। जिस प्रकार कोई कम्पनी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अलग अलग “फ्री ऑफर्स” देती हैं वैसे ही हमारे प्रदेश की सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को भी कई लुभावने ऑफर्स दिये जाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा छात्र एवं छात्राएं सरकारी स्कूलों में दाखिला लेते रहे।
सरकारी स्कूलों में जहाँ छात्राओं के लिए शिक्षा बिल्कुल मुफ़्त हैं वहीं छात्रों के लिए भी फीस न के बराबर ही हैं। ऐस-टी/ ऐस-सी विद्यार्थियों के लिए मुफ़्त शिक्षा तो हैं ही साथ ही उन्हें स्कॉलरशिप भी मिलती हैं। सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को मुफ़्त में मीड डे मील भी कराया जाता हैं। साथ ही साथ स्कूल युनिफोर्म एवं किताबें भी मुफ़्त में उपलब्ध कराई जाती हैं। लाखों छात्राओं को हर साल मुफ़्त में साइकिलें बाटी जाती हैं। अच्छे अंकों से पास होने वाले लाखों विद्यार्थियों को हर साल मुफ़्त लैपटॉप बाटें जाते हैं।
यही नहीं प्रतिदिन विद्यार्थियों को स्कूल आने जाने के लिए वाउचर्स दिये जाते हैं जिसका खर्च भी खुद सरकार ही वहन करती हैं। जहाँ सरकारी छात्रावासो में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए रहना, खाना-पीना तो मुफ़्त हैं ही उनकी ट्यूशन फीस भी सरकार ही देती हैं। जून 2014 में एक सेमिनार में स्वयं राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे सिन्धिया ने कहा था कि हर वर्ष 65 लाख छात्रों पर सरकार द्वारा 16,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों की शिक्षा में कोई विशेष सुधार नहीं हो रहा हैं। और सरकारी स्कूलों में शिक्षा के रूप में मिलने वाले इतने “फ्री ऑफर्स” के बावजूद भी प्रतिवर्ष सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या में भारी कमी हो रही हैं।
हालांकि निजी स्कूलों के अध्यापकों को सरकारी स्कूलों के अध्यापकों की तुलना में बहुत कम वेतन मिलता हैं फिर भी निजी स्कूल बेहतर परिणाम देते हैं और सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को ज्यादा वेतन मिलने के बावजूद भी सरकारी स्कूलों का परिणाम बहुत ही दयनीय हैं। और इसकी सबसे बड़ी वजह ये हैं कि लगभग किसी भी नेता, सरकारी अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, यहां तक की स्वयं सरकारी अध्यापकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में अध्ययन नहीं करते।
जबकि इसमें एक बड़ा विरोधाभास ये हैं कि ज्यादातर लोग चाहते तो सरकारी नौकरी पाना हैं मगर कोई भी अपने बच्चों या छोटे भाई बहनों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहता हैं। जब खुद सरकारी महकमे के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे तो उन्हें सरकारी स्कूलों का दर्द कैसे महसूस होगा। इसलिए जरूरी हैं कि सरकारी महकमे के लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाए तो ही सरकारी स्कूलों की शिक्षा में सुधार हो पाएगा। इसे सफल बनाने के लिए जरूरी हैं कि सरकार एक ऐसा कानून पारित करें जिससे सरकारी महकमे के लोगों के लिए ये अनिवार्य किया जाए कि वे उनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाए।
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# 1 – हमें समझना होगा कि हम सिर्फ और सिर्फ इंसान हैं…
# 2 – जब मोदी गले मिलते हैं तो क्यों उड़ने लगते हैं चीन-पाकिस्तान के तोते….
# 3 – सोचो तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा?
# 4 – ये जो विचार हैं, जो आपके विचार हैं !!