व्यक्ति के जीवन में धार्मिक भावनायें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। धार्मिक आधार पर ब्रैनवॉश कर लोगों को मानव बंम तक बना दिया जाता है। जिसके अन्तर्गत लोग स्वयं के प्राण भी न्यौछावर कर देते हैं। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार प्रतीत होता है सत्ता पाकर इतने दर्प में आ गई थी कि उसे लगता था वे जो भी करेंगे सभी विधायक आंख बंद करके उनका समर्थन करते रहेंगे। सरकार गठन के कुछ दिनों बाद से ही उद्धव सरकार अपने मूल उद्देश्य को तिलांजलि देकर अपनी सहयोगी पार्टियों को खुश करने और देश में अपनी दबंगई दिखाने के फार्मूले पर काम करती नजर आई। विगत ढाई वर्षों में कई ऐसे कार्य व वर्ताव किये जो विधायकों को क्या थोड़े से समझदार व्यक्ति तक को रास नहीं आये।
सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा द्वारा मातोश्री के आगे हनुमान चालीसा की मात्र घोषणा करने भर से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दायर किया जाना तो शिवसेना के ही मूल कैडर के गले नहीं उतरा। हिन्दू धार्मिकों के लिए हनुमान चालीसा बहुत महत्व रखता है। जब उन पर कोई संकट आता है तो सर्व प्रथम हनुमान चालीसा का स्मरण या पाठ करते हैं। हिन्दुओं की गहन आस्था पर कुठाराघात शिवसेना के विधायकों को ही आहत कर गया और लगता है इसी हनुमान चालीसा पर आघात ने शिवसेना के चालीस विधायकों को विचलित किया और पार्टी में बगावत करने पर मजबूर कर दिया। जिसकी परिणति देश देख रहा है।
चालीसा प्रकरण से पूर्व कंगना रनावत से ट्वीटर संवाद पर शिवसेना के संजय राउत ने उन्हें मुंबई पहुंचने का चेलेंज दिया, फिर कंगना की गैर मौजूदगी में सितंबर 2020 को एक दिन के शार्ट नोटिस पर उसके दफ्तर पर बीएमसी का बुल्डोजर चलवा दिया। तब कंगना रनावत ने कहा था- ‘उद्धव ठाकरे! ये बक्त का पहिया है, हमेशा एक सा नहीं रहता। आज मेरा घर टूटा है, कल तेरा घमण्ड टूटेगा।’ लगता है कंगना की पौने दो वर्ष पूर्व कीं वे पंक्तियां सार्थक हो रहीं हैं।
महाराष्ट्र सरकार का बिहार की पुलिस के साथ कैदियों जैसा वर्तात लोग भूले नहीं हैं। वह वीडियो क्लिप देखकर तो लोगों के रोंगटे खड़े हो गये थे, जिसमें पालघर में साधु जो महाराष्ट्र पुलिस के आरक्षक का हाथ पकड़े था, उसका बचाव न करके आरक्षकों के सामने उसकी हत्या होने दी गई। वहां पुलिस के सामने निहत्थे दो साधुओं सहित तीन लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। उस प्रकरण को उठाने वाले पत्रकार को जेल में डाल दिया गया था। दोषी मंत्री का बचाव आदि भी शिवसेना विधायकों की बगावत की पृष्ठभूमि में होंगे।
किन्तु बगावत की असली बजह अपनी पीड़ा के रूप में शिन्दे गुट के शिवसेना विधायक संजय शिरसाट ने चिट्ठी के रूप में लिखा- ‘कल वर्षा बंगले के दरवाजे सचमुच जनता के लिए खोल दिए गए। बंगले पर भीड़ देखकर खुशी हुई। पिछले ढाई साल से शिवसेना विधायक के तौर पर हमारे लिए ये दरवाजे बंद थे। हम उद्धव से मिलकर अपनी बात कहना चाहते थे। हमें क्यों कुछ कहने का मौका नहीं मिला। वर्षा बंगले पर सिर्फ एनसीपी-कांग्रेस के विधायकों को ही प्रवेश मिलता था’।
अजीत पवार के समर्थन से बीजेपी की एक दिन की सरकान बनी थी। उस समय बीजेपी की बहुत किरकिरी हुई थी। उसे देखते हुए इस बार बीजेपी बहुत सतर्क है और फूक-फूक कर कदम रख रही है। अन्दरखाने बागियों से संवाद और सहयोग जो आवश्यक होगा दिया जा रहा होगा किन्तु बीजेपी। का कोई बड़ा प्रवक्ता शिवसेना के बगावत के मसले पर कुछ नहीं बोल रहा। अजीत पवारने भी प्रमाणित किया है कि बीजेपी का इसमें कोई हाथ नहीं है, यह शिवसेना का अंदरूनी मामला है। बीजेपी के महाराष्ट्र के नेताओं का केन्द्रीय पदाधिकारियों से विचार-विमर्श आंतरिक रूप से चल रहा है, बैठके हो रहीं हैं, अनमें सभी पहलुओं पर विचार चल रहा होगा। इसबार बीजेपी कोई त्रुटि नहीं करना चाहती, उसे कोई हड़बड़ी नहीं है, न किसी तरह का दवाव है। बल्कि बीजेपी इस बार अपनी शर्तों पर सरकार बनाने की स्थिति में है।
लेखक- डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
शहर- इंदौर (मध्यप्रदेश)
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