ये सोच कौन बदलेगा ? इस बात से परेशान हूँ मैं !

जागो हमको अधिकार है सर उठाकर जीने का, आगे आना ही होगा हमको अपनो के खिलाफ, इस जंग में । तभी इस बने कानून का मोल है वरना ये भी गोदाम में पड़े अनाज की तरह सड़ जाएगा।

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अधिकार तो हमको ( महिलाओं को )बहुत से मिल गये है
परन्तु
हम उसका कितना उपयोग कर पाए हैं?
आज भी हर महिला कहीं न कहीं घुट रही हैं।
समझ नही आता
कि
किससे लड़े लड़ाई।
दर्द भी तो अपने ही दे रहें है।
हिम्मत नही जुटा पाते हम
आज भी उसके खिलाफ ख़ड़े होने को।
बेबस हूँ मैं,
हर घर में हो रहे है अत्याचार,
कानून बहुत  बन गये  है,
बस कोई उसका उपयोग करना भी सीखा दे।
हर रोज कोई ना कोई जल रहा आग में,
वो कोई और नही, हमारे अपने ही हैं।
दहेज के लोभी कोई और नही हम ही है
जो उकसा रहे अपने ही खून को।
हम कहते भी है कि गलत हैं
पर तब
जब अपनी बेटी की बात आती हैं ।
ये सोच कौन बदलेगा ?
इस बात से परेशान हूँ मैं ।
हम जकड़ गये है अपनी सोच से
क्योंकि
हमारी परवरिश  में ही ऐसी बात थी।
गुजारिश है कि पहले एक ऐसा कानून बना दो
जो हमारी इस सोच को बदले,
नही तो हर औरत की यही दुर्दशा रहेगी।
एक कानून ऐसा बना दो पहले
कि
कैसे करे अपनो से तकरार ?
नही तो हम घुट तो रहे और घुटा भी हम ही रहे हैं ।
आज हम है पाबंदी में
कल हम ही लगाते है,अपनो पर पाबंदी।
हम नही जानते अपने कानून
कि हम ख़ुद क्या कर सकते हैं।
जगाओ पहले ख़ुद को

तब कही देश के बदलने की शुरुआत होगी ।

बहोत घुट रही हूँ

पर
मुझे किसी ने जगाया ही नहीं
कैसे करूँ मैं अपने अधिकार का उपयोग ?
किसी ने मुझे सीखाया ही नहीं ।
जिसने मुझे उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
उसी ने हम पर अत्याचार का कहर बरपाया ।
कैद हूँ मैं अपनों की चार दिवारी में,
तड़प रही उड़ान भरने को ।
कौन है जो देगा मेरा साथ ?
एक आहत सी होती हैं
कि
कोई तो हवा दो इसको
सुलग रही  है मेरी रूह,
अब तो कोई राहत दो।
चाहत है कि उड़ जाउ,
छू लू इस आसमान को,
मुझमे इतनी ताकत दो,
जो बदल सकु जमाने को,
अब बस इंसाफ करो
हम पर एक उपकर करो।
आज मुझे शायद एक मौका मिला हैं अपनी बात से सभी को जगाने के लिए मेरी ये कोशिश हैं कि मैं हर उस सोच को बदल सकु जो हर रोज जल रही, उस घुटन के कारण मर रही हैं ।  हमको ही उठना होगा अपने अधिकारों  के लिए तभी हम इस समाज को सुन्दर बना सकते हैं अगर हम नहीं जागेंगे तो किसी कानून से उत्पीडन नही खत्म होगा हमको ही हिम्मत से आगे आकर अपना हक लेना होगा।
जागो हमको अधिकार है सर उठाकर जीने का, आगे आना ही होगा हमको अपनो के खिलाफ, इस जंग में । तभी इस बने कानून का मोल है वरना ये भी गोदाम में पड़े अनाज की तरह सड़ जाएगा।
लेखिका – बानी 
यह विचार हम को मिराकी (MIRAKEE) पर चलायें गए कैंपेन “मेरी कलम से” के तहत बानी ने भेजा हैं ।
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