सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दर्ज हुई है जिसमें कहा गया है कि देश में रोमियो-जूलियट कानून (Romeo-Juliet Law) बनाना चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट ने कानून के आवेदन पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। दरअसल, लगातार कम उम्र के लड़के-लड़कियों के बीच सहमति से यौन संबंध बनना, लड़की का गर्भवती होना जैसे मामले पर अभिभावकों द्वारा लड़के पर बलात्कार या अन्य रुप से दोषी बना दिया जाता है। जोकि ठीक नहीं है।
याचिका कहती है कि 18 साल के उम्र के किशोर, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तौर पर इतने सक्षम हो जाते हैं कि इस फैसले को लेने के जोखिम को समझ सके, सोच-समझ कर आजादी से फैसला ले सकें और यह समझ सकें कि वह अपने शरीर के साथ क्या करना चाहते हैं।
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क्या कहती है पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुए मामलों की रिपोर्ट
साल 2022 के नवंबर महीने में विश्व बैंक में डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) कार्यक्रम से पॉक्सो एक्ट को लेकर कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। भारत में पॉक्सो (POCSO) एक्ट लगाए जाने के 10 साल बाद एक स्वतंत्र थिंक टैंक ने देशभर की ई-कोर्ट्स का विश्लेषण किया। इसमें पाया गया कि इस एक्ट के तहत दर्ज मुकदमों में 43.44% मामले दोषी बरी कर दिए जाते हैं और सिर्फ 14.03 फीसदी मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाता है।
ये बातें विश्व बैंक की डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) संस्था के सहयोग से विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी कार्यक्रम में जस्टिस, एक्सेस एंड लोअरिंग डिलेज इन इंडिया (JALDI) इनिशिएटिव की ओर से ‘ए डिकेट ऑफ पॉक्सो’ शीर्षक से किए गए विश्लेषण से सामने आईं।
विश्लेषण में साल 2012 से लेकर साल 2021 तक 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 486 जिलों में स्थित ई-कोर्ट के 2,30,730 मामलों का रिसर्च किया गया। इस कानून को और विस्तार से समझने के लिए इसके तहत दर्ज 138 मामलों का विस्तार से अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि 22.9 प्रतिशत मामलों में आरोपी और पीड़ित एक-दूसरे को जानते थे। रिपोर्ट के अनुसार 3.7 फीसदी मामले में पीड़ित और आरोपी परिवार के सदस्य मिले होते हैं। वहीं 18 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जहां पीड़ित और आरोपी के बीच फिजिकल रिलेशनशिप बनाने से पहले प्रेम-संबंध होने की बात सामने आई, जबकि 44% मामलों में आरोपी और पीड़ित दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह से अपरिचित थे।
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क्या है रोमियो जूलियट कानून
आसान भाषा में समझे तो अगर यौन संबंध बनाए गए दोनों के बीच आपसी सहमति हो और लड़का-लड़की के बीच बहुत ज्यादा उम्र का अंतर ना हो तो ऐसी स्थिति में उसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा. कई विदेशी देशों में पहले से ही रोमियो-जूलियट कानून लागू है। इसके तहत वैधानिक दुष्कर्म के आरोप किशोर यौन संबंध के मामलों में सिर्फ तभी लागू हो सकते हैं, जब लड़की नाबालिग हो और लड़का वयस्क हो। साल 2007 के बाद से, कई देशों ने रोमियो-जूलियट कानून को अपनाया है, जो लड़कों को गिरफ्तारी से बचाता है।
अब नजरें सरकार पर
अब केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार है। उनकी प्रतिक्रिया बलात्कार से जुड़े कानून की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी। केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया ही तय करेगा कि सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर नाबालिगों की क्षमताओं को स्वीकार करते हुए कानून में फेरबदल होगा या नहीं। रोमियो जूलियट कानून को लागू करने की याचिका पर बेंच ने कहा, “यह कानून का धुंधला हिस्सा है, एक शून्य, इसे दिशा-निर्देशों से भरने की जरूरत है कि कैसे 16 साल से ज्यादा और 18 से कम उम्र वालों के मामले में बलात्कार के कानून लागू होंगे, जिनके बीच सहमति है।
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