यही तो ज़िन्दगी है कि जो आप सीख रहे हो…..

IAMANKYT - MERI KALAM SE

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अपना स्वेटर पहना और घुमतेे घुमते गाँव के रेलवे स्टेशन पर जा पहुँचा।। अक्सर यहाँ पर आया करता हूँ। दस-बारह लोग स्टेशन पर खड़े थे, कुछ लोग आये होंगे किसी को छोड़ने, कुछ आये होंगे किसी को लेने और कुछ अकेले खड़े होंगे रेल के इंतज़ार में। यही तीन चीज़े हमारी ज़िन्दगी में भी होती है, ज़िन्दगी के सफर में, कभी कोई हमारा साथ देता है, कभी हम किसी का साथ देते है और कभी-कभी अकेले ही चलना पड़ता है। खैर मैं आखिरी कोने में जाकर पेड़ के नीचे बनी पत्थरों की कुर्सी पर बैठ गया। कितनी ठण्ड है, पास ही में जंगल जो है, परिन्दों के झुण्ड शोर कर रहे है, शायद रात में सोने की जगह के लिये लड़ रहे है। कितना सही है इनका, अपने दोस्त, परिवार के साथ रोज़ घूमते है और साथ खाना ढूंढते है और रात में भी सब साथ ही रहते है। एक मैं हूँ, झूठी जिम्मेदारियों  पूरी करता हूँ, रात को घर जल्दी पहुंचना है वरना घर वाले चिंता करेंगे, दोस्त सोच समझकर बनाने है, पैसा इकठ्ठा करना है आने वाले परिवार के लिये,अपने बीवी बच्चों के लिये, जो अभी नहीं है फिर भी, जैसे बस इतनी सी ही ज़िन्दगी है।

ओह रेलगाड़ी आ गयी। सारे लोग स्टेशन पर तैनात हो गये, जैसे कोई फौज आयी हो बाहर दुसरे देश से लड़ने को। रेल रुकी नहीं अभी परन्तु भागा-दौड़ी शुरू ।  अरे रुको उस छोटे बच्चे का भी ध्यान करो, क्यों अपने स्वार्थ के पीछे उसे रौंद रहे हो ? क्या उसका ख्याल रखना सिर्फ उसके माँ बाप की ज़िम्मेदारी है ? अगर हाँ, तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा यह कहने में कि आप धरती पर रहने के लायक नहीं है। रेल रुकी, कुछ लोग उतरे, सबसे ज्यादा ख़ुशी इन्ही के चेहरे पर होती है, आज का इनका सफर खत्म जो हुआ और अगर इन्हें फिर कोई लेने आया है फिर क्या बात है, अपनी हंसी ढूंढने के लिये इन्हें आईने की ज़रूरत नहीं पड़ती है, लेने आये हुये ‘अपनो’ के चेहरे पर वो आसानी से मिल जाती है। कुछ रेल में से पानी भरने के लिये भी उतरे है, वैसे पानी भरना तो एक बहाना है, वो शायद बोर हो गये है, रेल में बैठे बैठे, दो मिनट के लिये ही स्टेशन पर घूमने से इन्हें सुकून बहोत मिलता है। मुझे ये लोग बहुत पसंद है, इनके पास जानकारी बहुत  होती है । सब स्टेशनो पर उतर कर ये अलग – अलग माहौल में जीते है, उनमें से नहीं जो सिर्फ रेल में बैठे रहते हैं । सफर करने का मतलब ये नहीं की मंज़िल को पहुँच जाओ, मतलब तब है जब आँखों को कहानियों से भर जाओ, ताकि जब मंज़िल पर पहुँचो और कोई आपसे पूछे की सफर कैसा रहा तो सिर्फ वो मुर्दा सा शब्द ‘बढ़िया’ कहकर बेज़ुबान ना होना पड़े, आप कुछ उन्हें रोचक बता सको ।

यही तो ज़िन्दगी है कि जो आप सीख रहे हो, जो आपने महसूस किया है, वो दूसरो के काम आये। ज़िन्दगी तभी तो आगे बढ़ेगी, सिर्फ साल बदलने का मतलब नहीं है ज़िन्दगी का बढ़ना।

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