लेखक- नीतू शर्मा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को फटकार लगाते हुए पेड़ो की कटाई पर चिंता जताई. इस मसले पर गंभीरता दिखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधिक से अधिक पेड़ लगाने के आदेश भी जारी किये. ऐसा ही एक और मामला उत्तराखंड से भी सामने आया जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेजा. ऐसा नहीं है की जंगल में आग लगने की ये पहली घटना है बल्कि ऐसी तीस से ज्यादा घटनाएं सामने आयी है जिससे उत्तराखंड में आग से लगभग 33.3 हेक्टेयर वन भूमि नष्ट हो गई है. इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जग मोहन रेड्डी ने अपना महल बनाने के लिए कितने पेड़ों का सफाया कर दिया.
पर्यावरण से खिलवाड़ के विपरीत प्रभाव
ऐसा लगता है विकास के नाम पर जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ हो रहा है, उसका नतीजा हम देख रहे है. कभी जंगलों में लगी आग के रूप में तो कभी भू स्खलन के रूप में. ऐसा अनुमान है की आने वाले 15 सालों में हमें और भी भयानक मंजर हमें देखने को मिल सकता है. पेड़ों की कटाई से वर्षा होने की संभावना दिन पर दिन काम होती जाएगी .ऐसा होने पर पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा. इस समस्या से तो हम अब भी जूझ रहे है. विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन सबसे बड़े जोखिमों में से एक होगा.
बेखौफ लकड़ी माफिआ
हाल ही में बिहार के मुजफ्फपुर से एक घटना सामने आयी जिसमे लकड़ी माफिआ ने वन विभाग के अधिकारी को ट्रक से रौंद दिया. बिहार में बालू, पत्थर की आड़ में लकड़ी का कारोबार अवैध रूप से फल फूल रहा है. लकड़ी माफिआ को वन अधिकारियो का भी कोई दर नहीं रहा. कानून को जेब में लेकर चलने वाले ये लकड़ी माफिआ खुले आम वनों की कटाई कर रहे है. इंदौर का चोरल वन क्षेत्र जहां सागवान के पेड़ बहुत अधिक मात्रा में है. ऐसे में वह लकड़ी माफिआ का सक्रिय होना आम बात है. हाल ही में इस क्षेत्र में 30 से अधिक पेड़ों की कटाई का मामला सामने आया था. इस मामले को दबाने के लिए लकड़ी माफिआ ने आग लगा दी थी.
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वृक्षारोपण पर हो रहा करोड़ों का खर्च
पेड़ों की वृद्धि करने के लिए सरकार कई तरह की योजनाए चलती रहती है. हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान की शुरुआत की. इस अभियान के तहत 7 करोड़ पेड़ लगाए जाएंगे. इस दिशा में केरला राज्य ने पर्यावरण बजट को एक अलग दस्तावेज के रूप में पेश किया है. जिसके अंतर्गत बजट में पर्यावरण संबंधी योजनाओं का कुल परिव्यय 2024-25 के लिए लगभग ₹668.88 करोड़ है। 2024-25 के वित्तीय वर्ष के अंतरिम बजट में, सरकार ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयको लगभग 3,265 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
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पेड़ों की कटाई भी जुर्म की श्रेणी में
वन विभाग की कड़ाई के बावजूद भी पेड़ों की कटाई में दिन पर दिन इजाफा होता जा रहा है. ऐसे में इसे वन विभाग की नाकामी कहे या फिर क़ानून का कम होता डर. इस तरह पर्यावरण को नुक्सान पहुंचने वाले इस कृत्य को भी सरकार को गंभीर जुर्म की श्रेणी में रखना चाहिए. सिर्फ करोड़ों का निवेश करने से ही पेड़ों की कटाई नहीं रोकी जा सकती है. जब तक इस अपराध के लिए कोई गंभीर सजा नहीं होगी तब तक यह अपराध नहीं रुकेगा. पर्यावरण को दूषित करने में आम आदमी से लेकर नेता अभिनेता सभी लिप्त है. ऐसे में जरुरी है की इसके लिए कठोर कदम उठाये जाये और हर इंसान अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी समझकर पेड़ जरूर लगाए.
पेड़ों की कटाई ..पर्यावरण के लिए चुनौती
विश्व में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश के रूप में भारत को निवासियों की वृद्धि की भरपाई करनी पड़ी है – इसकी कीमत वनों की कटाई के रूप में चुकानी पड़ी है.” डेटा एग्रीगेटर आवर वर्ल्ड इन डेटा के 1990 से 2000 और 2015 से 2020 के आंकड़ों की मदद से पिछले 30 वर्षों में 98 देशों में वनों की कटाई के रुझान का विश्लेषण किया गया है. भारत में 1990 से 2000 के बीच 384,000 हेक्टेयर वन नष्ट हुए, जबकि 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 668,400 हेक्टेयर हो गया.
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