अभी हाल में ही 2017-18 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के भारत में बेरोजगारी के भयावह आंकड़े सामने आए हैं। आंकड़ों में बेरोजगारी में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दिखाई गई है। श्रम अर्थशास्त्रियों, नौकरी चाहने वालों और श्रमिकों के अनुसार जमीनी हकीकत का यह सत्यापन ही है। एनएसएसओ के आंकड़े आश्चर्यजनक ही नहीं हैं, खतरनाक भी हैं। बढ़ती बेरोजगारी का रुझान तो पहले से ही दिखाई दे रहा था, अब इस पर मुहर लग गई है। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि बेरोजगारी में वृद्धि हुई है और श्रम बल की भागीदारी दर में गिरावट आई है। एनएसएसओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल बेरोजगारी 45 साल की ऊंचाई पर है जिसमें 15 से 29 वर्ष की आयु के युवाओं में दूसरों की तुलना में बेरोजगारी की उच्च दर है। पिछले कुछ वर्षों में शिक्षित युवाओं में गुस्सा बढ़ा है। नोटबंदी के बाद हमने देखा है कि श्रम बल अपने आप सिकुड़ गया है। शहरी महिलाएं जो 27% तक बेरोजगारी की दर का सामना कर रही हैं, सबसे बुरी तरह से प्रभावित हैं। भारत की ही बात की जाए तो आर्थिक विकास की प्रमुख बाधा हमेशा से ही बेरोजगारी और गरीबी रही हैं। बेरोजगारी ने समय-समय पर भारतीय अर्थव्यवस्था को पंगु सा बना दिया है। अत्यधिक जनसंख्या एक और बड़ी समस्या है। इस संदर्भ में क्षेत्रीय असमानता भी महत्वपूर्ण है। ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पलायन भारत में बेरोजगारी और गरीबी की समस्याओं को बढ़ा रहा है। कम जीडीपी उच्च बेरोजगारी की ओर ही इंगित करती है और साथ ही यह भी कि अर्थव्यवस्था अपनी पूर्ण क्षमता से नीचे चल रही है। 1930 के दशक में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी सामाजिक अशांति का कारण बनी थी। जर्मनी में, हिटलर और नाजी पार्टी के उदय में 6 मिलियन की बेरोजगारी दर एक महत्वपूर्ण कारक थी। साथ ही यह भी कि, भारत में बेरोजगार कर्ज के दलदल में फंसता जा रहा है।
केंद्रीय ब्याज सब्सिडी योजना के आंकड़े से बताते हैं कि लोन लेने वाले छात्रों की कुल संख्या का करीब 88 फीसदी चार लाख रुपये तक का लोन लेते हैं। 80 फीसदी लोन अंडरग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए लिया जाता है। करीब 69 फीसदी लोन इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए लिए जाते हैं। इनमें से भी 61 फीसदी से ज्यादा छात्र इंजीनियरिंग के हैं। यही कारण है कि देश में प्रोफेशनल डिग्रीधारियों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उसी अनुपात में बेरोजगार भी बढ़ते जा रहे हैं।
बेरोजगारी गंभीर चिंता और चेतावनी
भारत सबसे जवान देश है इसलिए सबसे ज्यादा बेरोजगारी के शिकार भी यहीं हैं। हाल ही अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2018. इस रिपोर्ट का कहना है कि बेरोजगारों में 16 % जवान लोग हैं। बेरोजगारी का आंकलन वर्किंग एज की आबादी यानी 15 से 64 साल के लोगों के बीच किया जाता है जिनके पास रोजगार है, उनकी आमदनी काफी कम है। 82 % मर्द 92 % औरतें 10 हजार रुपए प्रति माह से भी कम पर गुजारा करते हैं। आने वाले समय में भारत के नौजावनों के सामने बेरोजगारी गंभीर चिंता और चेतावनी बनकर उभरेगी।
लेबर पार्टिसिपेशन रेट दिखाती आईना
देश के हालात ये हैं कि लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद खत्म होती जा रही है इसलिए वो नौकरी मांगने मार्केट में आ ही नहीं रहे हैं। लोगों के जॉब मार्केट में आने को ही लेबर पार्टिसिपेशन रेट कहते हैं। कई सर्वों ने दावा किया है ऐसा सबसे कारण नोटबंदी रहा है। इसका सबसे बड़ा असर केवल महिलाओं पर पड़ा है। वो नौकरी मांगने आ ही नहीं रही हैं। सर्वे में इस दावे की पुष्ठि में कहा कि देश में बेरोजगारी चरम सीमा पर है इसका अंदाजा कुछ महीनों पहले निकले रेलवे की 1.2 लाख नौकरियों के लिए 2.37 करोड़ लोग लाइन में लगे रहने से लगाया जा सकता है कि मार्केट जॉब क्राइसिस कितना है।
लेबर पार्टिसिपेशन रेट को लेकर जाने-माने अर्थशास्त्री महेश व्यास ने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि, लेबर पार्टिसिपेशन रेट आज 43 परसेंट है। क्योंकि अगर घर के बाहर एक ठेला लगा कर पकौड़े तले जा रहे हों तब भी हम उसे रोजगार ही मानते हैं। अगर कोई अपने खेत में काम कर रहा है या कोई और ऐसा काम कर रहा है जो फॉर्मल नौकरी नहीं है तब भी हम उसे नौकरी का हिस्सा, लेबर मार्केट का हिस्सा मानते हैं। लेबर मार्केट में हम उन लोगों को हिस्सा नहीं मानते हैं जो लोग ये कहते हैं कि हम नौकरी नहीं करना चाहते या हम अभी नौकरी ढूंढ नहीं रहे हैं। इस आंकड़े को 50 परसेंट के आस-पास होना चाहिए। वर्ल्ड में ये आंकड़ा 65 परसेंट के आस-पास रहता है। हमारा ये नंबर 45 परसेंट से भी कम है। इसके बाद आता है बेरोजगारी दर, जो अभी बढ़ता जा रहा है। अभी ये रेट 6.7 परसेंट के आस-पास है। इन दोनों आंकड़ों को देखना जरुरी है। 43 परसेंट लोग नौकरी ढूंढने आ रहे हैं और उनमें से 7 परसेंट लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है।
कर्ज न बन जाए मर्ज
शिक्षा का खर्च बढ़ रहा है और उच्च शिक्षा के लिए अब छात्र अब शैक्षिक ऋण लेना पसंद करने लगे हैं। लेकिन कई छात्र ऐसे हैं जो महंगी शिक्षा हासिल करने के बाद भी रोजगार हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाते हैं। साल 2017 के आंकड़ो के मुताबिक बैंकों का बकाया शिक्षा ऋण बहुत ज्यादा बढ़ा है। कहने की बात नहीं कि कर्ज के चलते युवाओं को अपना मनोबल बनाए रखना कठिन होता जा रहा है। उसकी खीज तब दिखती है जब उसे कोई चीज खरीदनी होती है और उसके पास पैसे नहीं होते हैं। जब कोई युवा पैसे और नौकरी के लिए इतना उतावला रहेगा तो आप उससे कैसे शांत रहने की उम्मीद कर सकते हैं?” नई पीढ़ी का सामना कर्ज और बेरोजगारी के चौंका देने वाले स्तरों से हो रहा है। यह हालत बहुत ही कठिन स्थिति वाले और बेहद तनावपूर्ण होते हैं। बेरोजगार के लिए चीजों से निपटना बहुत मुश्किल हो सकता है। बेरोजगारी के चलते पूरे परिवार की वित्तीय हालत तबाह हो सकती है। हालाँकि भारत के साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था भी पिछले दो दशकों में काफी विकसित हुई है लेकिन आर्थिक विकास से नौकरियां उस अनुपात में उत्पन्न नहीं हुई हैं, जितनी होनी चाहिए।
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