संवाददाता भीलवाड़ा। जैन धर्म मे चार मूल सूत्र बताए गए है उत्तराध्ययन सूत्र, नंदी सूत्र, दसवेंकालिक सूत्र, अनुयोगद्वार सूत्र। सभी धर्मों में मूल सूत्रों में समानता है। जिनमे परिवर्तन होता है वो छेद सूत्र कहलाते है । जहाँ पर क्रोध होता है वहाँ पर प्रीत नही होती है उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्म सभा मे व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि आहार का जितना शुद्धिकरण होगा शरीर उतना ही स्वस्थ होगा। आहार शुद्ध है, विहार शुद्ध है तो आपके विचार भी शुद्ध होंगे। नकारात्मक विचारों का त्याग करके सकारात्मक विचार रखने चाहिए ताकि जीवन में अशांति का प्रवेश नही हो। साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि जब तक जिनवाणी का अनुसरण नही करेंगे तब तक आत्मा का कल्याण होने वाला नही है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आहार का सेवन कम करना चाहिए। सप्ताह में एक बार व्रत या उपवास जरूर कर लेना चाहिए जिससे शरीर का बैलेंस बराबर हो जावे और मन भी शुद्ध हो जावे। जब तक मन के भाव शुद्ध नही होंगे तब तक जीवन जीने का कोई मतलब नही है। हमे सदैव समभाव रखना चाहिए। बाहर से आये श्रावक – श्राविकाओं का संघ द्वारा शब्दो से स्वागत किया गया।
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