तीन तलाक और समान नागरिक संहिता का मसला गरमाया, मोदी सरकार पर बरसा मुस्लिम संगठन

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गुरुवार को आॅल इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जहां समान नागरिक संहिता का विरोध किया, वहीं भारतीय सेना की ओर से की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एक प्रेस कांफ्रेंस में पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम संगठनों ने विधि आयोग की प्रश्नावली का विरोध किया और सरकार पर उनके समुदाय के खिलाफ ‘युद्ध’ छेड़ने का आरोप लगाया। आॅल इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देश के कुछ दूसरे प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार करने का फैसला किया।

मुस्लिम संगठनों ने दावा किया कि अगर समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया जाता है तो यह सभी लोगों को ‘एक रंग’ में रंग देने जैसा होगा, जो देश के बहुलतावाद और विविधता के लिए खतरनाक होगा। पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव वली रहमानी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी, आॅल इंडिया मिल्ली काउंसिल के प्रमुख मंजूर आलम, जमात-ए-इस्लामी हिंद के पदाधिकारी  मोहम्मद जफर, आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी और कुछ अन्य संगठनों के पदाधिकारियों ने तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सरकार को घेरा।

एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के रुख को खारिज करते हुए इन संगठनों ने दावा किया कि उनके समुदाय में अन्य समुदायों की तुलना में, खासतौर पर हिंदू समुदाय की तुलना में तलाक के मामले कहीं कम हैं। रहमानी ने कहा कि बोर्ड और दूसरे मुस्लिम संगठन इन मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय को जागरूक करने के लिए पूरे देश में अभियान चलाएंगे और इसकी शुरुआत लखनऊ से होगी।

उन्होंने कहा कि विधि आयोग का कहना है कि समाज के निचले तबके के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है, जबकि यह हकीकत नहीं है। यह कोशिश पूरे देश को एक रंग में रंगने की है जो देश की बहुलतावाद और विविधता के लिए खतरनाक है।

बोर्ड के महासचिव रहमानी ने कहा कि सरकार अपनी नाकामियों से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश में है। उन्हें यह कहना पड़ रहा है कि वह इस समुदाय के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहती है। बोर्ड उसकी कोशिश का पुरजोर विरोध करेगा। बोर्ड के पदाधिकारियों ने यह माना कि पर्सनल लॉ में कुछ ‘खामियां’ हैं और उनको दूर किया जा रहा है।

जमीयत प्रमुख अरशद मदनी ने कहा कि देश के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। सीमा पर तनाव है। निर्दोष लोगों की हत्याएं हो रही हैं। सरकार को समान नागरिक संहिता पर लोगों की राय लेने की बजाय, इन चुनौतियों पर ध्यान देना चाहिए।

यह पूछे जाने पर कि मुसलिम समुदाय के कुछ लोगों ने ही एक साथ तीन तलाक के मुद्दे पर पर्सनल लॉ बोर्ड के रुख का विरोध किया है तो रहमानी ने कहा कि लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा हक हासिल है। हाल ही में केंद्र सरकार ने एक साथ तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बोर्ड के रुख का विरोध किया और कहा कि यह प्रथा इस्लाम में अनिवार्य नहीं हैं।

बोर्ड की महिला सदस्य असमा जेहरा ने कहा कि पर्सनल लॉ में किसी सुधार की जरूरत नहीं है। एक साथ तीन तलाक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और समान नागरिक संहिता थोपने की दिशा में सरकार का कदम लोगों की धार्मिक आजादी को छीनना है। यही वजह है कि वे लोग संघर्ष कर रहे हैं।

विधि आयोग ने सात अक्तूबर को जनता से राय मांगी कि क्या तीन तलाक की प्रथा को खत्म किया जाए और देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाए। बोर्ड का कहना है कि वह मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लेकर विभिन्न अदालतों में चल रहे मुकदमों को लेकर कानून के विशेषज्ञों की सलाह लेगी। बोर्ड का कहना है कि शरीयत में एक शब्द का भी बदलाव नहीं हो सकता है। बोर्ड का कहना है कि वह देशभर में मुसलिम हकों को लेकर आंदोलन छेड़ेगी और उनका समर्थन जुटाएगी।

बोर्ड का कहना है कि केंद्र सरकार और लॉ कमीशन को मानना होगा कि मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड देशभर के मुसलमानों की आवाज है और वह अपने निजी कानूनों में किसी भी तरह की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा। बोर्ड ने देशभर के मुसलमानों से लॉ कमीशन की किसी भी प्रश्नावली में शामिल नहीं होने की अपील भी की है।