कोर्ट: तीन तलाक असंवैधानिक है, पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं

0
333

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक फैसला सुनाते हुए कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक है और कोई पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। कोर्ट ने कहा, ‘तीन तलाक असंवैधानिक है, यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है। संविधान से ऊपर कोई पर्सनल लॉ बोर्ड नहीं है।’

बता दें, कुछ महिलाओं और केंद्र सरकार ने तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती की है। इनका कहना है कि तीन तलाक लैंगिक न्याय, समानता और संविधान के खिलाफ है। हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तीन तलाक का समर्थन करता है। पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि महिला को मारने की बजाय तलाक देना सही है। धर्म द्वारा दिए गए अधिकारों पर कोर्ट में सवाल नहीं उठाए जा सकते।

क्या होगा इस फैसले का असर

इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद तीन तलाक का मुद्दा एक बार फिर गरमा जाएगा. बीते दिनों इसे लेकर मुस्लिम समाज के एक वर्ग ने तीन तलाक में किसी तरह के बदलाव का जमकर विरोध किया था। मुस्लिम समाज के उलेमाओं का कहना है कि तीन तलाक उनकी शरीयत का हिस्सा है और इसमें बदलाव का हक किसी को नहीं है।

क्या तीन तलाक पर पाबंदी शरीअत से छेड़छाड़ है?

आपको बता दें कि इस्लामी शरीअत (कानून) कुरआन और हदीस (पैगंबर मोहम्मद की कहीं बातें और किए गए काम) नहीं है। कुरआन और हदीस से छेड़छाड़ नहीं हो सकती, लेकिन शरीअत से छेड़छाड़ हो सकती है और बीते 1450 साल के इस्लामी इतिहास में इसकी भरपूर मिसालें भरी पड़ी हैं। समझने की बात ये है कि कुरआन में सिर्फ 83 जगहों पर कानून की बातें कही गई हैं। यानि शरीअत रफ्ता-रफ्ता बना है और इसके बनाने में कुरआन, हदीस के साथ-साथ इंसानी अक्ल को भी शामिल किया गया है।  इस्लाम में इंसान को ग़लती का पुतला कहा गया है यानी सीधी बात ये है कि जब शरीअत बनाने में इंसानी अक्ल लगाया गया है तो इसमें ग़लती से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब हुआ कि शरीअत का रिव्यू किया जा सकता है। और सच्चाई ये है कि लगातार शरीअत का रिव्यू किया जाता रहा है और मौके-मौके पर इसमें तब्दीली भी की जाती रही है।

सुप्रीम कोर्ट में भी केस-

तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी केस चल रहे हैं। दूसरी तरफ विधि आयोग ने भी जिन 11 सवालों पर आम लोगों की राय मांगी है उनमें तीन तलाक का भी सवाल दर्ज है। विधि आयोग के इस सवालनामे के बाद ही मुस्लिम समाज ने तीन तलाक का घोर विरोध किया था।

ग़ौरतलब है कि तीन तलाक का मामला मुसलमानों के बीच बहुत संवेदनशील मुद्दा है। अतीत में भी इसे मुद्दे पर मुस्लिम समाज का भारी विरोध सामने आया है, लेकिन इस बार स्थिति इसलिए भी बदली हुई है कि क्योंकि कुछ महिला संगठनों में भी तीन तलाक का विरोध किया है।