एक और बैंकिंग घोटाला, सामने आया पंजाब के मुख्यमंत्री के दमाद का नाम

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नई दिल्ली: पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और रोटोमैक के बाद लगातार दो बड़े घोटाले और सामने आए। ताज़ा घोटाला देश की सबसे बड़ी चीनी मिलों में से एक हापुड़ की सिम्भाऔली शुगर्स लिमिटेड से जुड़ा है। सीबीआई ने हापुड़ की एक शुगर मिल और उसके अधिकारियों के खिलाफ करीब 110 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का केस कर्ज किया है।

खबरों के अनुसार कैप्टन के दमाद के ऊपर आरोप है कि चीनी मिल ने 2012 में 5700 गन्ना किसानों को पैसे देने के नाम पर ओरिएंटल बैंक से 150 करोड़ रुपये का लोन लिया, लेकिन इस पैसे को किसानों को देने की बजाय निजी इस्तेमाल में खर्च किया। फिर मार्च 2015 में ये लोन एनपीए में बदल गया। उसके बाद भी बैंक ने इस मिल को 109 करोड़ का कॉरपोरेट लोन भी मंजूर कर दिया, जो पिछला बकाया चुकाने के लिए लिया गया। बाद में लोन की ये रकम भी एनपीए में बदल गई।

कौन है आरोपी- 
सीबीआई की एफआईआर में सिंभावली शुगर मिल- हापुड़, गुरमीत सिंह मान- चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, गुरपाल सिंह- डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर,  जीएससी- सीईओ, संजय टपरिया- सीएफओ, गुरसिमरन कौर मान- एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर- कमर्शियल, 5 नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और अन्य के  खिलाफ केस दर्ज किया है। सीबीआई ने ये मुकदमा ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शिकायत पर दर्ज किया है। सीबीआई की एफआईआर में कंपनी के डिप्टी डायरेक्टर और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के दामाद गुरपाल सिंह का नाम भी है।

क्‍या है शिकायत में 
ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने सिंभावली शुगर्स को गन्ना किसानों को ईख की खेती करने के लिए कर्ज देने की मंजूरी दी थी। बीएसई में सूचीबद्ध ये चीनी मिल, शुद्ध चीनी, सफेद चीनी, क्रिस्टल चीनी और विशेष चीनी का उत्पादन करती है। भारतीय रिजर्व बैंक (जुलाई 2011) द्वारा जारी किए गए एक परिपत्र के आधार पर साल 2012 में बैंक ने इस लोन को स्वीकृति दे दी गई।

NDTV की खबर के अनुसार, 8 नवंबर, 2011 को कंपनी द्वारा ओबीसी बैंक को एक प्रस्ताव पेश किया गया था। जिसमे कहा गया था कि शुगर मिल ने बैंक को बताया था कि इस लोन से हर किसान एक स्कीम के तहत शुगर मिल से ही अच्छी पैदावार के लिए बीज, उर्वरक और खाद खरीदेगा। शुगर मिल ने 5762 परिवारों की एक सूची बैंक में जमा की। इस लोन की सीमा प्रति किसान 3 लाख रुपये रखी गई और कंपनी कुल निवेश 159 करोड़ रुपये से अधिक नहीं हो सकता था।  इस योजना के अनुमोदन के बाद, कंपनी ने किसानों के नाम के साथ उनकी जमीन के दस्तावेज और रिकॉर्ड भी बैंक को मुहैया कराए थे। साथ ही कंपनी को KYC फॉर्म भी जमा करने थे।

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25 जनवरी 2012 से 13 मार्च 2012 के दौरान 5762 किसानों को ऋण दे दिया गया और करीब 148.59 करोड़ रुपये का कुल ऋण की राशि का भुगतान किया गया था। पूरे 5762 खाते खोले गए और लोन ट्रांसफर किया गया लेकिन ये पूरी राशि कुछ दिन बाद वापस कंपनी के एकाउंट में चली गयी और कंपनी ने इसे किसी दूसरे बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया। हालांकि, करीब 60 करोड़ रुपये कंपनी ने किश्तों के जरिये बैंक को लौटा दिए थे लेकिन बाकी 90 करोड़ वापस नही किया गया। जिसका ब्याज लगाकर कुल बकाया करीब 110 करोड़ रुपये का हो गया।

उसके बाद बैंक द्वारा की गई जांच से पता चला (ए) कंपनी ने किसानों के नाम पर गलत केवाईसी प्रमाण पत्र जारी किया। (बी) कंपनी ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के खाते से दूसरे बैंकों को धन हस्तांतरित कर दिया है, इसलिए धनराशि का दुरूपयोग हुआ(सी) प्राप्त ऋण पहले से आपूर्ति की गई गन्ने के बकाया का भुगतान करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। शिकायत में ओबीसी बैंक का कहना है कि एसबीआई की अगुवाई में कई बैंको के समूह द्वारा 110 करोड़ रुपए का कॉरपोरेट लोन कंपनी द्वारा किश्तों का भुगतान न करने के कारण 29 नवंबर 2015 को एनपीए (Non performing assets) में आ गया था।

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