झारखंड: गोरखपुर नाम ही काफी है उस दर्दनाक दिन को याद करने के लिए जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और सरकार की पोल खो दी। गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 70 बच्चों की मौत के बाद अब जमशेदपुर में 30 दिन के अंदर लगभग 60 नवजातों की जान जा चुकी है। ऐसा हम नहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का झारखंड सरकार को भेजा नोटिस कह रहा है।
देश का ऐसा कोई सिस्टम नहीं जो सुचारू रूप कार्यरत हो, स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर सवालों के घेरे में है। गोरखपुर के बाद जमशेदपुर का महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल सुर्खियों में आया है। यहां मामला ऑक्सीजन सिलेंडर खत्म का नहीं बल्कि एस्फिक्सिया (जन्म के समय दम का घुटना) का है। इस बात की पुष्टि 25 अगस्त को रांची से स्वास्थ्य सेवा के निदेशक प्रमुख डॉ. सुमंत मिश्र के नेतृत्व में चार सदस्यीय टीम की रिपोर्ट में की।
इस दौरान बीते चार महीनों में कुल 164 बच्चों की मौत की जानकारी मिली। इनमें एनआइसीयू (न्यू बॉर्न इंटेसिव केयर यूनिट) में कुल 112, पीआइसीयू (पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) में 31 व वार्ड में कुल 21 शामिल हैं। एनआइसीयू में हुई मौत की मुख्य वजह बर्थ एस्फिक्सिया बताया गया। वहीं एनआई के अनुसार अस्पताल के अधीक्षक ने इन मौतों का कारण कुपोषण बताया है।
द टेलीग्राफ के मुताबिक राज्य स्तर की जांच में अस्पताल की ओर से किसी भी लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला है पर चिकित्सा कर्मचारियों ने इस बात का संकेत किया है कि शिशुओं की देखभाल ठीक तरह से नहीं की जा रही है। नेशनल रूरल हेल्थ मिशन के अनुसार देश में सबसे अधिक बच्चों की मौत जन्म के बाद पहले सप्ताह से लेकर चौथे सप्ताह के दौरान होती है। पहले सप्ताह में 74.1 फीसद, दूसरे सप्ताह में 12.6, तीसरे सप्ताह 10.00 व चौथे सप्ताह में 3.1 फीसद मौतों का आंकड़ा है। नवजात शिशु मृत्यु की मुख्य वजहों में संक्रमण, समय से पूर्व जन्म (प्री टर्न डिलेवरी) जैसी जटिलताओं के अलावा जन्म के समय ढाई किग्रा से कम वजन, बर्थ एस्फिक्सिया है। एमजीएम में भी पहले सप्ताह में सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई है।
क्या है बर्थ एस्फिक्सिया
बर्थ एस्फिक्सिया में नवजात शिशु न तो रो पाता है और न ही सांस ले पाता है। समस्या मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी के कारण होती है। मरीज को तत्काल वेंटीलेटर के साथ-साथ बेहतर चिकित्सा की आवश्यकता होती है। इसमें लापरवाही होने पर बच्चे के मंदबुद्धि हो जाने का या मौत का भी खतरा होता है।
पिछले चार सालों से नवजात शिशुओं को बचाने की दिशा में काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रेन के जीएम, स्टेट प्रोग्राम सुरोजित चटर्जी बताते है, ”लगभग 20 प्रातिशत शिशुओं की मौत सांस लेने में होने वाली समस्या से होती है। नवजात के लिए शुरूआती 28 दिनों तक का समय बहुत मुश्किल भरा होता है। जरा सी भी चूक होने पर बच्चों की मौत हो सकती है।”उनके आंकड़ों के अनुसार 28 दिन में सबसे ज्यादा बच्चे की बर्थ एस्फिक्सिया, वजन कम होने और संक्रमण के कारण मौत हो जाती है। अगर हम गाँव की बात करे, तो लोगों इस बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं होती। बर्थ एस्फिक्सिया इसमें सबसे बड़ी समस्या है।
गोरखपुर-जमशेदपुर किसकी चूक का नतीजा है, क्यों आज भी हम इन जानलेवा बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं। इतनी मौतों के बाद भी स्वास्थ्य विभाग जिम्मेदारी लेनी को तैयार नहीं।
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