संवाददाता भीलवाड़ा। भीतर के मन को एकाग्र करने के लिए पुरुषार्थ की जरूरत पड़ती है। मोह को समाप्त करने के लिए आत्मा को समझने की जरूरत है। भीतर के तनावों को मिटाना है तो मुस्कुराना सीखिए, हँसना और मुस्कुराना केवल हम इंसानों के भाग्य में लिखा हुआ है। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी आनंद प्रभा ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि खुशी पाने का एक ही तरीका है, जो है, जैसा है, जितना है उसे अपने लिए बहुत समझ लो। खुश रहना चिंता और तनाव मुक्त जीवन जीने का सबसे सुनहरा सूत्र है। हम अपने मन मे पलने वाले क्रोध को कंट्रोल करना सीखें। क्रोध को जीतने की कला सीखें। क्रोध हमारे जीवन का प्रबल मानसिक विकार है।जब भी क्रोध आये तो उसके परिणामो के बारे में अवश्य सोचिये। क्रोध का समापन हमेशा प्रायश्चित में होता है। जुबान से क्रोध न करना और आँख को निर्विकार रखना जीवन का सबसे उत्तम गुण हैं।
साध्वी चंदनबाला ने कहा कि संसार रूपी सागर से तरने के लिए आज भी जैन आगम मौजूद है। जैन आगम में 2700 वर्ष पहले ही भगवान महावीर ने लिख दिया था कि कब क्या होने वाला है। हम सदैव अहिंसा के मार्ग पर चले। धर्म सभा मे आज भी उपाध्याय प्रवर मूलमुनि के स्वस्थ होने के लिए नवकार महामन्त्र का सामूहिक जाप किया गया।
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