भारत पाक युद्ध 1965 की अनसुनी कहानी युद्ध के जांबाज रामेश्वर लाल त्रिपाठी की ज़ुबानी

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संवाददाता भीलवाड़ा। एक सैनिक के जीवन का सबसे सुनहरा मातृभूमि की रक्षा के लिए आए बुलावे का होता हैं।जब वह अपना सर्वस्व छोड़ कर माँ भारती की रक्षा के लिए निकल पड़े।कस्बे के पूर्व सैनिक रामेश्वर लाल त्रिपाठी उस समय 18 बटालियन के साथ जम्मू कश्मीर के पुँछ क्षेत्र में तैनात थे।24 अगस्त 1965 को रात्रि में अचानक आसमान में हुई आतिशबाज़ी का नज़ारा देखकर भारतीय सैनिकों को समझने में देर नहीं लगी कि ये पाकिस्तानी सेना की ओर से की गई गोलाबारी थी। भारत माता के जयकारों के साथ आगे बढ़ते सैनिक पाकिस्तानियों को खदेड़ने लगे। त्रिपाठी कहते हैं कि जान की परवाह की होती तो सैनिक कहा कहलाते।त्रिपाठी बताते हैं कि युद्ध के समय उन्होंने अपने घायल सैनिक साथियों को सुरक्षित बंकर में ले जाने के लिए अपने प्राणों की परवाह भी नहीं की थी।दुश्मन की गोली जब उनके दाएँ पैर को चीरते हुए निकली तब घायल त्रिपाठी को लगा की शायद अब वो अपने घायल साथियों को सुरक्षित स्थान पर नहीं पहुँचा पाएँगे पर उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से दुश्मनों की गोलियों को चकमा देकर तक़रीबन 15 साथियों को सुरक्षित बंकरो तक पहुंचाया।इसी प्रकार उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई।त्रिपाठी के इसी अदम्य साहस के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री ने युद्धभूमि में उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा कि देश को भारत माता के वीर जवानों पर आज नाज़ है।यह युद्ध 23 सितंबर 1965 को भारत की विजय के साथ खत्म हुआ।युद्ध मे सैंकड़ों वीर योद्धाओ ने अपनी शहादत दी।वर्ष 2015 में 1965 भारत पाक युद्ध की स्वर्ण जयंती के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी ने उन्हें भी उन्हें पदक देकर सम्मानित करते हुए कहा था कि हमें आप पर गर्व है।

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