गुजरात: सूरत की लाजपोर जेल में पिछले 7 साल से हत्या के मामले में बंद 40 वर्षीय वीरेंद्र वैष्णव ने जेल के अपने अनुभवों पर लाइफ बिहाइंड बार्स नामक किताब लिखी। इस किताब को 25 मई 2017 को लंदन के ओलंपिया पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया। अब तक 60 देशों में इस किताब की 7 लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं।
उसके बाद वीरेंद्र ने जेल में ही एक अन्य किताब प्रिजन प्रिजनर्स पैन एंड आई लिखी। इस किताब को चेन्नई के नोशन प्रेस ने 16 दिसंबर 2017 को 150 देशों में प्रकाशित किया। यह किताब 30 हजार बुक स्टॉल और लायब्रेरी में बिक्री के लिए रखी गई है। प्रिजन प्रिजनर्स पैन एंड आई में वीरेंद्र वैष्णव द्वारा लिखी गई कविता को पोएट्री बुक-2018 में शामिल किया गया है।
वीरेंद्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वह पेंटिंग भी करते हैं। उनकी पेंटिंग को 2015 में राष्ट्रीय स्तर का तिनका तिनका अवॉर्ड मिला था। वीरेंद्र लगातार तीन साल, 2015 से 2017 तक तिनका तिनका अवॉर्ड हासिल करने में सफल रहे।
क्यों की हत्या?
वीरेंद्रवैष्णव 2010 में सूरत में एक व्यक्ति की हत्या के मामले में जेल में बंद हैं। उन्होंने हत्या क्यों की? उनकी बेटी खुशी ने कहा कि मेरे पापा ने तो प्रेम संबंध में और ही अन्य मामले में हत्या की। उन्हें फंसाया गया है। जेल प्रशासन ने भी इस बारे में जानकारी देने से मना कर दिया।
जेल में दूसरे साल से लिखने लगे किताब-
2010 में जेल जाने के दूसरे साल से ही वीरेंद्र वैष्णव अपने अनुभवों को शब्दों में पिरोने लगे थे। जेल में उन्होंने जो देखा और जो भुगता उसे अपनी कलम और पेंटिंग के जरिए बाहर लाया। जेल में बंद कैदियों की मनोदशा, उनके अनुभव, उनकी पीड़ा को वीरेंद्र ने अपनी कलम से कागज पर उतारा। जेल में रहने पर व्यक्तित्व में आए परिवर्तन को दोनों किताबों में बखूबी अंकित किया है।
बेटी ने दिलाई पिता को पहचान-
वीरेंद्र की बेटी खुशी ने उनकी कला को पूरी दुनिया में पहुंचाने के लिए अपने पापा के नाम का फेसबुक पेज, ट्विटर हैंडल और गूगल प्ले में ऐप भी बनाया है। 16 साल की खुशी ने इंटरनेट पर हजारों वेब पेज खंगाल डाले। अंतरराष्ट्रीय पब्लिशर से संपर्क किए और अपने पिता के द्वारा लिखी किताब को पब्लिश्ड करने वाली कंपनी तक पहुंच गई। सूरत के रायन इंटरनेशनल स्कूल में 11वी कक्षा में पढ़ रही खुशी अपने पिता से किताबों पर घंटों चर्चा किया करती थी।
घर वालों को जेल से बाहर आने का इंतजार-
खुशीका कहना है कि उसके पिता निर्दोष हैं और वह एक दिन बाइज्जत बरी होकर घर जाएंगे। खुशी का छोटा भाई श्लोक भी अपने पापा की इस ख्याति से खुश है। वीरेंद्र वैष्णव के के घर वाले उनके जेल से हमेशा के लिए बाहर आने का इंतजार कर रहे हैं।
वीरेंद्र को मिला है तिनका-तिनका अवॉर्ड-
तिनका-तिनका अवॉर्ड उन लोगों को मिलता है जो जेल में रहकर कोई बड़ा काम जैसे किताब लिखना, चित्रकारी करना जिसको लोगों द्वारा बाहर ज्यादा से ज्यादा पसंद किया जाता है। तब ये अवॉर्ड कैदी को दिया जाता है। वीरेंद्र वैष्णव भी इस अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं।
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