सुप्रीम कोर्ट ने 26 साल पुराना फैसला पलटा, अब इन सांसदों पर चलेगा मुकदमा, जानें पूरा क्या है मामला?

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Supreme Court: रिश्वत लेकर सदन में वोट दिया या सवाल पूछा तो सांसदों या विधायकों को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को 26 साल पुराना फैसला पलट दिया। बेंच ने कहा- संविधान के आर्टिकल 105 और 194 सदन के अंदर बहस और विचार-विमर्श का माहौल बनाए रखने के लिए हैं। दोनों अनुच्छेद का मकसद तब बेइमानी हो जाता है, जब कोई सदस्य घूस लेकर सदन में वोट देने या खास तरीके से बोलने के लिए प्रेरित होता है। आर्टिकल 105 या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट हासिल नहीं है।

बेंच ने कहा कि रिश्वत लेने वाला आपराधिक काम में शामिल होता है। ऐसा करना सदन में वोट देने या भाषण देने के लिए जरूरत की श्रेणी में नहीं आता है। सांसदों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देती है। हमारा मानना है कि संसदीय विशेषाधिकारों के तहत रिश्वतखोरी को संरक्षण हासिल नहीं है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा- हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं हैं, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट दी गई थी।

1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस पर CJI ने कहा- अगर कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस स्वीकार करता है।

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इस फैलसे के बाद किस पर पड़ेगा असर
इस मसले पर 1993 से लेकर अब तक तकरीबन 30 बरस चली अदालती कार्रवाई के दौरान एक कॉमन कड़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिबू सोरेन का परिवार रहा.. 1993 मामले में सीबीआई ने शिबू सोरेन को रिश्वत कांड में आरोपी माना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट में हालिया सुनवाई उनकी बहू सीता सोरेन से जुड़े घूसकांड को लेकर हुई।

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शिबू सोरेन मामला और सुप्रीम कोर्ट
1991 का आम चुनाव हुआ। परिणामों में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी राजनीतिक दल के तौर पर उभरी। नरसिम्हा राव की सरकार बनी। पर जुलाई 1993 के मॉनसून सत्र के दौरान राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के चार सांसदों पर सनसनीखेज आरोप लगे कि उन्होंने रिश्वत लेकर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की।

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सीबीआई ने इन सांसदों के खिलाफ जांच शुरू की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत उन्हें कानूनी कार्रवाई से मिली छूट का हवाला देते हुए इस मामले ही को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा तब कहा कि अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) का मकसद ही ये है कि संसद और राज्य की विधानसभाओं के सदस्य बगैर किसी चिंता या डर के स्वतंत्र माहौल में भाषण या फिर वोट दे सकें।

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सीता सोरेन मामला और सुप्रीम कोर्ट
ये मामला 2012 राज्यसभा चुनाव का है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेनतब जामा सीट से विधायक थीं। सीता सोरेन पर आरोप लगा कि उन्होंने चुनाव में वोट देने के लिए रिश्वत ली। सीता सोरेन पर आपराधिक मामला दर्ज हुआ। उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामला रद्द करने की मांग की मगर उच्च न्यायालय ने उनकी अपील खारिज कर दी। 17 फरवरी, 2014 के आदेश में रांची हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। सीता सोरेन ने 1998 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह उनके ससुर को कानूनी कार्रवाई से छूट मिली थी, देश का संवैधानिक प्रावधान उन्हें भी सदन में हासिल विशेषाधिकार (प्रिविलेज) के तहत कानूनी कार्रवाई से छूट देती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज न सिर्फ सीता सोरेन के तर्कों को गलत माना बल्कि 1998 के पांच जजों के फैसले को भी पलट दिया। कोर्ट का 1998 के फैसले को पलट देना सीता सोरेन समेत और कई जनप्रतिनिधियों की राजनीतिक भविष्य पर असर डाल सकता है।

 

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