नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court )ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले काे पलटते हुए अविवाहित महिला को 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दे दिया। जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि महिला शादीशुदा नहीं है, केवल इस वजह से उसे गर्भपात करवाने से नहीं रोका जा सकता।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट से फैसला अपने पक्ष में न मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसने कोर्ट को बताया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता किसान हैं। परिवार के पास आजीविका चलाने के साधन भी नहीं हैं। ऐसे में वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी।
हालांकि कोर्ट ने 22 जुलाई तक दिल्ली एम्स के डायरेक्शन में एक पैनल बनाने और अबॉर्शन से जुड़ी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी दिया है। अगर महिला के जीवन को खतरा नहीं होगा तो ये अबॉर्शन होगा और एम्स में होगा।
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2021 में MTP एक्ट में संशोधन हुआ था
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2021 में संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में धारा 3 के स्पष्टीकरण में पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है। कोर्ट ने ऑर्डर जारी करते हुए यह भी कहा कि हमारा इरादा वैवाहिक संबंधों से उपजी परिस्थितियों को सीमित करने का नहीं है, लेकिन किसी भी अविवाहित महिला को ऐसे हालात में कानूनी सुरक्षा प्रदान की जा सके, इसलिए कानून का हवाला देकर उसे गर्भपात करवाने से रोकना सही नहीं है।
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क्या था पूरा मामला?
मामला दिल्ली हाईकोर्ट में था, जहां 15 जुलाई को कोर्ट ने अबॉर्शन पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) रूल्स, 2003 के तहत अबॉर्शन नहीं करवा सकती। सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि इस स्तर पर अबॉर्शन बच्चे की हत्या के समान होगा।
वहीं दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अगुआई वाली बेंच ने बच्चे को गोद लेने के लिए उसे जन्म देने का सुझाव दिया था। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने कहा था “तुम बच्चे को क्यों मार रही हो? बच्चे को गोद लेने वालों की एक बड़ी कतार मौजूद है।”
इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और कहा कि हाईकोर्ट ने MTP के प्रावधानों को लेकर रोक लगाने में गलत दृष्टिकोण अपनाया था। एक विवाहित और अविवाहित महिला के बीच के अंतर के कारण कानून में मिलने वाली छूट से कोई संबंध नहीं है।
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