हनुमानगढ़। टाउन के दशहरा ग्राउंड में वैदिक कायाकल्प परिवार के तत्वावधान में 100 कुण्डीय श्रीगणेश पंचायतन महायज्ञ के चलते बुधवार को नियमित क्रियाओं के तहत मानव शरीर को योगी, निरोगी और मानवता के लिए उपयोगी बनाने के उद्देश्य से विशिष्ट चिकित्सा शिविर लगाया गया। शिविर में स्वामी भक्ति प्रकाश ने शाश्सवत, मर्म और कर्ण चिकित्सा के बारे में बताया। उन्होने यजमानों को भारतीय प्राचीन संस्कृति व चिकित्सा पद्धति के माध्यम से लोगों को निरोगी रहने और असाध्य बीमारियों से बचाव के उपाय दिए। ज्ञात रहे कि 100 कुण्डीय श्रीगणेश पंचायतन महायज्ञ में तीन यज्ञशालाएं तैयार हुई है, जिसमें नवग्रह और राज राजेश्वरी यज्ञशाला 41 गुणा 41 वर्गफुट और 100 कुंडीय गणेश पंचायतन यज्ञशाला 90 गुणा 90 वर्गफुट साइज में बनाई हैं।
नोखा के कारीगरों की ओर से महज 20 दिनों में तैयार की गई यह यज्ञशालाएं सरकंडा, बांस और बल्ली से तैयार की गई हैं जिनमें एक भी लोहे की कील का इस्तेमाल नहीं किया गया। वहीं, 120 गुणा 160 साइज में कथा पंडाल बनाया गया है जिसमें प्रतिदिन भागवत कथा का वाचन होता है। आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य मानव शरीर को योगी, निरोगी और मानवता के लिए उपयोगी बनाना है। इस तरह का धार्मिक आयोजन पहली बार हनुमानगढ़ की पावन धरा पर हो रहा है, आयोजन के तहत प्रतिदिन सुबह हवन यज्ञ, दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक श्रीमद्भागवत कथा, शाम 5 से 7 बजे तक संत सम्मेलन, शाम 7 बजे भव्य आरती और रात्रि 8 बजे से कोलकाता मंडल की विभित्र लीलाएं हों रही है।
शहर की अनेकों सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं इस आयोजन में सहयोग कर रही हैं। बुधवार को आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में कथावाचक वृंदावन के ऋषि महाराज ने बताया कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे है वहां आपका, अपने इष्ट या अपने गुरु का अपमान हो। यदि ऐसा होने की आशंका हो तो उस स्थान पर जाना नहीं चाहिए। चाहे वह स्थान अपने जन्म दाता पिता का ही घर क्यों हो। कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा। कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है।
भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाया और बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की।
ताजा अपडेट्स के लिए आप पञ्चदूत मोबाइल ऐप डाउनलोड कर सकते हैं, ऐप को इंस्टॉल करने के लिए यहां क्लिक करें.. इसके अलावा आप हमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्ट्राग्राम और यूट्यूब चैनल पर फॉलो कर सकते हैं।