4 फरवरी पर जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी की जयंती पर विशेष लेख- गोपाल वैष्णव

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संवाददाता भीलवाड़ा। वैष्णव धर्म की स्थापना के साथ-साथ जगतगुरु रामानन्दाचार्य ने सभी धर्मों के अनुयाइयों को दिक्षित कर हिन्दू धर्म की रक्षा, गौ रक्षा के लिए प्रेरित किया । देश भर में चार सम्प्रदाय बा व न द्वारा पीठों की स्थापना की जो आज भी हिन्दू धर्म की रक्षा, गौ सेवा, वेद शास्त्रो, योग विध्या ,ज्योतिष विज्ञान कर्म के लिए कार्य कर रहे । आज यदि हिन्दू धर्म जीवित है तो जगत् गुरु रामानन्दाचार्य जी की ही देन है । हिंदू धर्म का प्रचार प्रसार भारत ही नहीं विदेशों में हुआ और पुरे विश्व में फैल गया। जगत गुरु रामानन्दाचर्य जी का जन्म ही मानव जीवन के कल्याण के लिए हुवा है । रामानंदाचार्य जी का जन्म माघ कृष्ण सप्तमी विक्रम संवत 1356 में त्रिवेणी नदी तट पर प्रयाग में कान्यकुब्ज ब्राह्मण पुण्य सदन जी शर्मा की धर्मपत्नी सुशीला देवी के गर्भ से हुवा । पुण्य सदन जी एवं सुशीला देवी जी निरंतर भगवत ज्ञान में और ध्यान में लगे रहते थे 45 वर्ष की आयु में परमात्मा कृपा से रामानंद जी का जन्म हुआ। ज्योतिषियों ने रामानंद जी की जन्म कुंडली देखकर बताया कि यह बालक कोई साधारण पुरुष नहीं होगा जिन ग्रह नक्षत्र में रामानंद जी का जन्म हुआ था उन ग्रह नक्षत्र की ज्योतिषीय गणना में यह बताया गया कि यह बालक योगी विद्वान दिव्य बलशाली और ऐश्वर्यवान लोक कल्याण के काम करते हुए संपूर्ण राष्ट्र को दासता की बेड़ियों से मुक्ति दिलाएगा तथा दिग्विजय सम्राट होगा इनका युगों युगों तक लोग गुणों का बखान करते रहेंगे ।
जगत गुरु रामानंद जी के जन्म की उद्घोषणा वैश्वानर संहिता और अगस्त संहिता में जन्म से पहले ही की जा चुकी थी।

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