इजराइल-हमास जंग पर सोनिया गांधी ने ऐसा क्या सच लिख डाला की आर्टिकल हुआ वायरल?

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वर्षों से लगातार इस पर कायम है यह दृढ़ विश्वास है कि फिलिस्तीनियों और इजराइलियों दोनों को न्यायपूर्ण शांति से रहने का अधिकार है।

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Israel Hamas War News: इजराइल-हमास जंग के बीच पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 24-25 दिन बाद एक आर्टिकल लिखा है। इस आर्टिकल को अंग्रेजी अखबार द हिंदू में प्रकाशित किया गया है। उन्होंने अपने आर्टिकल की शुरुआत करते हुआ लिखा- कांग्रेस का विश्वास है कि सभ्य दुनिया में हिंसा की कोई जगह नहीं है।

उन्होंने आगे लिखा- इजराइल-हमास का मामला गाजा में इजराइली सेना के अंधाधुंध अभियानों के चलते और गंभीर हो गया है। इसकी वजह से बड़ी संख्या में निर्दोष बच्चों, महिलाओं और पुरुषों सहित हजारों लोगों की मौत हो गई है।इजराइल अब पूरी ताकत से उस आबादी से बदला लेने पर उतारू है जो काफी हद तक असहाय होने के साथ-साथ निर्दोष भी है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली हथियारों का इस्तेमाल बच्चों, महिलाओं और पुरुषों पर किया जा रहा है। जिनका हमास के हमले में कोई वास्ता नहीं था।

इजरायल की अमानवीय भाषा चौंकाने वाली
यह न सिर्फ अमानवीय है बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन भी है। बहुत कम गाजावासी हिंसा से अछूते हैं। एक छोटे से इलाके में कैद गाजा की बड़ी आबादी के पास फिर से खड़े होने के लिए कुछ नहीं बचा है। अब, तो वेस्ट बैंक में भी संघर्ष बढ़ रहा है। भविष्य को लेकर लगाई जा रही अटकलें भी अच्छी नहीं हैं। सीनियर इजराइली अधिकारियों ने गाजा के बड़े हिस्से को नष्ट करने और आबादी खत्म करने की बात कही है। इजराइली रक्षा मंत्री ने फिलिस्तीनियों को “मानव के भेष में जानवर” कहा है। यह अमानवीय भाषा चौंकाने वाली है जो उन लोगों के वंशजों से आ रही है जो स्वयं नरसंहार के शिकार थे।

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गाजा में मानवता की परीक्षा
गाजा में मानवता की परीक्षा ली जा रही है। इजराइल पर हुए क्रूर हमलों से इंसानियत कमजोर पड़ी थी। अब इजराइल की असंगत और समान रूप से क्रूर प्रतिक्रिया से हम और कमजोर हो गए हैं। हमारी सामूहिक चेतना के जागने से पहले न जानें कितनी जानें जाएंगी।

इजराइली सरकार हमास के कामों की तुलना फिलिस्तीनी लोगों से करके बड़ी गलती कर रही है। हमास को नष्ट करने के अपने दृढ़ संकल्प में, इसने गाजा के आम लोगों के खिलाफ अंधाधुंध मौत और विनाश को अंजाम दिया है। यदि फिलिस्तीनियों की पीड़ा के लंबे इतिहास को नजरअंदाज भी कर दिया जाए, तो किस तर्क से कुछ लोगों के काम के लिए पूरी आबादी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

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इस पागलपन को ख़त्म करने के लिए दोनों तरफ से आवाजें उठ रही हैं। आतंकी हमलों में दोस्तों और परिवार को खोने के बाद भी कई इजराइली मानते हैं कि फिलिस्तीनियों के साथ बातचीत ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। कई फ़िलिस्तीनी स्वीकार करते हैं कि हिंसा से केवल और अधिक पीड़ा होगी और यह उन्हें उनके सम्मान का जीवन के सपने से और भी दूर ले जाएगी।

इस इलाके में तभी शांति आ सकती है, जब दुनिया के प्रभावशाली देश दो देशों के कॉन्सेप्ट को फिर से लागू करने की प्रक्रिया को शुरू कर सके। इसे वास्तविकता बना सकें।

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वर्षों से लगातार इस पर कायम है यह दृढ़ विश्वास है कि फिलिस्तीनियों और इजराइलियों दोनों को न्यायपूर्ण शांति से रहने का अधिकार है। हम इजराइल के लोगों के साथ अपनी दोस्ती को महत्व देते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी यादों से फिलिस्तीनियों के सदियों से उनकी मातृभूमि से जबरन बेदखल करने के दर्दनाक इतिहास को मिटा दें।

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