संवाददाता भीलवाड़ा। राग का मतलब मोह, प्रेम, प्यार है। राग सोने की जंजीर के समान है इसे तोड़ना चाहे तो काफी मुश्किल भरा होता है। जिस मनुष्य के प्रति अथाह प्रेम भाव है वो अगर छोड़कर चला जाता है तो हम उसी में खोए रह जाते है। द्वेष लोहे की जंजीर के समान है जिसे तोड़ने में समय नही लगता है। गौतम स्वामी का भगवान महावीर के प्रति अपार मोह था जिसके चलते गौतम स्वामी ने मोक्ष को ठुकरा दिया। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी विनितरूप प्रज्ञा ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि हम जन्म के साथ ही पाप और पुण्य साथ लेकर आते है और दुनिया से विदा होते समय भी पाप और पुण्य को साथ लेकर जाते है। तपस्या सदैव शुद्ध भाव से करनी चाहिए कपट से की गई तपस्या से अगले जन्म में स्त्रीलिंग में जन्म होता है। आज शहरों में जितने भी व्रद्ध आश्रम बने हुए है उसमें अमीरों के मा बाप ही मिलेंगे, गरीबो के नही। हमारी भावना सदैव यह रहे कि जब भी हमारा अंतिम समय आवे हम प्रभु का स्मरण करते हुए जावे।
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