मेले को देखकर राजस्थान की संस्कृति पुन: जीवंत हो उठती है

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जिला संवाददाता भीलवाड़ा। राजस्थान में त्यौहारों, पर्वों एवं मेलों की अनूठी परम्परा एवं संस्कृति है वैसी देश में अन्यत्र कहीं मिलना कठिन है। यहां का प्रत्येक मेला एवं त्यौहार लोक जीवन की किसी किवदन्ती या किसी ऐतिहासिक कथानक से जुड़ा हुआ है। इसलिए इनके आयोजन में सम्पूर्ण लोक जीवन पूरी सक्रियता से भाग लेता है। इन मेलों में राजस्थान की लोक संस्कृति जीवन्त हो उठती है। इन मेलों के अपने गीत हैं, जिनके प्रति जन साधारण की गहरी आस्था दृष्टिगोचर होती है। इससे लोग एकता के सूत्र में बंधे रहते हैं। राजस्थान में अधिकांश मेले पर्व व त्यौहार के साथ जुड़े हुए हैं। राजस्थान की वस्त्र नगरी भीलवाड़ा शहर के फुलियाकला तहसील मिनी पुष्कर कहे जाने वाले धार्मिक आस्था से ओतपोट धानेश्वर तीर्थ पर कार्तिक पूर्णिमा पर मेले में लगाई श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी. मिनी पुष्कर के नाम से प्रसिद्व तीर्थ नगरी धानेश्वर मेंं शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला भरा।इसमें हजारों श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य कमाया।कार्तिक पूर्णिमा का आखिरी पंचतीर्थ महास्नान मिनी पुष्कर धाम धानेश्वर में खारी व मानसी नदी के सगंम पर मेला भरा। मेले में लोगों ने मिठाई की दुकानों, खिलौनों, आदि की जमकर खरीदारी की। 30 समाजों के बने मदिरों में दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। दीपदान किया। युवतियों ने भगवान शिव व पार्वती की पूजा अर्चना कर अच्छे वर की कामना की। लोगों ने झूलों व चकरी का लुत्फ उठाया। इस दौरान फुलियाकला थानाधिकारी रामपाल विश्नोई सहित जाप्ता सुरक्षा की दृष्टि से मौजूद रहा।हजारों से अधिक श्रद्धालुओं की आस्था की डुबकी के साथ छोटे पुष्कर धानेश्वर मेले का रंगारंग समापन.हुआ,लेकिन दिन भर बारिश से मेले के माहौल में बदलाव आया!रिमझिम बारिश की बूंदों के साथ तीर्थ स्थल धनेश्वर पर लोगो ने सभी मंदिरों के दर्शन किए,धानेश्वर में भरने वाले कार्तिक पूर्णिमा के मेले में आये लोगों ने मेले में लगे आकाशीय झूले, मौत का कुआं, चकरी, व आदि का आनंद लिया।

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