आत्मा की आलोचना व तप की अनुमोदना करने का पर्व है संवत्सरी- साध्वी चंदनबाला

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संवाददाता भीलवाड़ा। संवत्सरी महापर्व जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व है, यह पर्व उपवास करके आत्मा के निकट रहने का अवसर देता है, आत्मा की आलोचना करने एवं तपस्या की अनुमोदना करने वाला पर्व है। जिनसे हम नफरत करते है,जिनके घर आना -जाना नही है उनसे हम जरूर क्षमा याचना करे, उनके घर पर जावे यह पर्व जोड़ना सिखाता है, तोड़ना नही उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने विशाल धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने कहा कि क्षमा मांगने एवं क्षमा देने का पर्व है। राग, द्वेष, क्रोध, मोह माया की जो परत लगी हुई है उस परत को हटाने वाला पर्व है। प्रतिक्रमण से पूर्व हम सभी से मन, वचन, काया से क्षमा याचना करे। जैन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जो क्षमा को एक पर्व के रूप में मनाता है। साध्वी आनंद प्रभा ने कहा कि मन, वचन, काया से अगर साल भर में कोई बंधन बांधे है तो उन्हें समाप्त करने का अवसर है। समभाव से सभी को क्षमा करें। साध्वी विनीतरूप प्रज्ञा ने अन्तर्गढ़ दशांग सूत्र जो पिछले 7 दिनों से चल रहा था उसको आज पूरा करके सभी श्रावक- श्राविकाओं से क्षमा याचना की। तपस्या के क्रम में आज 9 उपवास के प्रत्याख्यान प्रेमदेवी रांका, दिव्या रांका 8 उपवास के ग्यारसी देवी मेहता, सुरभि मेहता, मनोज मेहता, अंशुल कोठारी, सुशीला कोठारी, भारती देरासरिया, पल्लवी देशरडा, 5 उपवास के आंकाक्षा दूनिवाल, 51 एकासन के पिस्ता बाई चौधरी,26 एकासन के लाड देवी कूकड़ा, 22 एकासन के तारा चंद रांका, आयम्बिल की अठाई के पूरण मल चौधरी, एकासन की अट्ठाई के दिव्यम कोठारी ने प्रत्याख्यान लिये। संघ द्वारा तपस्या करने वाले सभी श्रावक – श्राविकाओं का सम्मान किया गया। बाहर से आने वाले श्री संघो का स्थानीय संघ ने स्वागत किया।

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