सुप्रीम कोर्ट में जीती भारतीयों की निजता, तो ये बन गया नया मौलिक अधिकार

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) पर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। संविधान पीठ के नौ जजों की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि प्राइवेसी भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार है। खास बात यह है कि इस फैसले पर सभी नौ जज एकमत हैं। इसका सीधा असर आधार पर पड़ सकता है।

बता दें कि सरकार ने 92 से ज्यादा स्कीम्स में आधार को जरूरी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील आरके कपूर ने कहा कि इस फैसले का आधार पर बड़ा इंपेक्ट पड़ेगा। आधार कार्ड के तहत जो प्राइवेसी की जानकारी ली जा रही है। उसे देने से कोई शख्स मना कर सकता है।

आठ जजों की बेंच पहले कह चुकी थी कि राइट टू प्राइवेसी फंडामेंटल राइट नहीं है। लेकिन नौ जजों की बेंच ने इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यह फंडामेंटल राइट है। 3 हफ्ते की सुनवाई के बाद 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

प्राइवेसी का मुद्दा क्यों उठा?
राइट टू प्राइवेसी का मुद्दा तब उठा, जब सोशल वेलफेयर स्कीम्स का फायदा उठाने के लिए आधार को केंद्र ने जरूरी कर दिया और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशंस दायर की गईं। इन पिटीशंस में आधार स्कीम की कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी को यह कहकर चैलेंज किया गया कि ये प्राइवेसी के बुनियादी हक के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक हक है। सीनियर वकील प्रशांत भूषण ने कहा- सभी जजों ने कहा, आर्टिकल 21 के तहत के तहत यह मौलिक अधिकार है। आधार कार्ड पर फैसला बाद में आएगा। सरकार ने दलील दी थी कि मौलिक अधिकार नहीं है, इसलिए यह सरकार के लिए झटका है।
क्या थी कोर्ट की दलील
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में जजों ने कहा कि अगर मैं अपनी पत्नी के साथ बेडरूम में हूं तो यह ‘प्राइवेसी’ का हिस्सा है। ऐसे में पुलिस मेरे बेडरूम में नहीं घुस सकती। हालांकि अगर मैं बच्चों को स्कूल भेजता हूं तो ये ‘प्राइवेसी’ के तहत नहीं आता है, क्योंकि यह ‘राइट टु एजूकेशन’ का मामला है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आप बैंक को अपनी जानकारी देते हैं। मेडिकल इंशोयरेंस और लोन के लिए अपना डाटा देते हैं। यह सब कानून द्वारा संचालित होता है। यहां बात अधिकार की नहीं है। आज डिजिटल जमाने में डाटा प्रोटेक्शन बड़ा मुद्दा है। सरकार को डाटा प्रोटेक्शन के लिए कानून लाने का अधिकार है। सरकार द्वारा गोपनीयता भंग करना एक बात है, लेकिन उदाहरण के तौर पर टैक्सी एग्रीगेटर द्वारा आपका दिया डाटा आपके ही खिलाफ इस्तेमाल कर ले प्राइसिंग आदि में वो उतना ही खतरनाक है।
क्या है आर्टिकल 21

संविधान की धारा 21 नागरिकों के जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है। इसके मुताबिक किसी भी नागरिक को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।

कहां असर पड़ेगा फैसले का

एक न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, उसका असर वॉट्स ऐप से जुड़े मामले पर हो सकता है। दिल्ली हाईकार्ट ने सितंबर 2016 में वॉट्स ऐप को नई प्राइवेसी पॉलिसी लाने की मंजूरी दी थी। लेकिन उसे फेसबुक या किसी अन्य कंपनी के साथ यूजर्स का डाटा शेयर करने से रोक दिया था। हाईकोर्ट के इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है

आधार कार्ड पर क्या होगा?

आधार कार्ड वैध है या अवैध है, इस पर अभी कोर्ट ने कुछ नहीं बोला है। आधार कार्ड के संबंध में मामला छोटी खंडपीठ के पास जाएगा। प्रशांत भूषण ने बताया कि इस फैसले का मतलब ये है कि अगर रेलवे, एयरलाइन जैसे रिजर्वेशन के लिए जानकारी मांगी जाती है, तो ऐसी स्थिति में नागरिक अपने अधिकार के तहत उससे इनकार कर सकेगा।

किन चीजों पर पड़ेगा असर?
आधार के अलावा समलैंगिक संबंधों को गैरकानूनी बनाने वाली धारा 377 पर भी इस फैसले का असर पड़ सकता है। दो वयस्क व्यक्ति यदि आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं तो यह उनकी प्राइवेसी का मुद्दा है। अब चूंकि निजता एक फंडामेंटल राइट है तो धारा 377 को एक बार फिर चुनौती दी जा सकती है। वहीं टेलीमार्केटिंग कंपनियों और बैंकों द्वारा नागरिकों के व्यक्तिगत डाटा शेयर करने पर भी रोक लग सकती है।

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