जिला संवाददाता भीलवाड़ा। अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासनश्री ध्यान साधक मुनि सुरेश कुमार हरनावां सहवर्ती मुनि संबोध कुमार मेधांश के सानिध्य में शनिवार को लाड़ स्वाध्याय भवन में प्रेक्षा ध्यान का उद्घाटन हुआ। मुनि संबोध कुमार मेधांश ने नमस्कार महामंत्र से कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ के महत्वपूर्ण अवदान प्रेक्षा ध्यान के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि अगर सुख शांति से जीना चाहते हो तो अपनी सोच बदलनी होगी, चंचलता को कम करना होगा, अपना परिष्कार करना होगा।
उन्होंने प्रेक्षाध्यान के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि जैसे ब्लड प्रेशर की गोली रोज लेते हैं वैसे ही प्रेक्षा ध्यान की गोली भी रोज लेनी होगी। उन्होंने प्रेक्षाध्यान के विशिष्ट प्रयोग भी करवाए। प्रेक्षा गीत के माध्यम से मंगलाचरण किया।उन्हांेने प्रायोगिक तरीके से ध्यान कराते हुए कहा-कि ध्यान भारतीय संस्कृति की आत्मा है। ध्यान स्वभाव परिवर्तन की प्रक्रिया है। ध्यान से व्यक्ति शारीरिक मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य को प्राप्त होता है। ध्यान ज्योति की, प्रकाश की, निवृत्ति की साधना है। ध्यान के समान कोई पाप कर्म का शोधन करने वाला नहीं है। मन वचन काय की स्थिरता का नाम ध्यान है। ध्यान की साधना जागरूकता की साधना है। आत्मा में रहना ही ध्यान है।
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