संवाददाता भीलवाड़ा। आसींद राग व द्वेष कर्मो के बंधन के बीज है । इन बीजों को क्रोध, मान, माया, लोभ इन चार कषायों का संचन मिलता है जिसके कारण एक दिन यह वट वृक्ष का रूप ले लेता है। जीवन मे जिसने भी अभिमान किया है वो नष्ट हुआ है। कषायों के कारण ही आत्मा इधर उधर भटकती रहती है। कषायों को कैसे बन्द किया जाये इस पर सभी को चिंतन मनन करना चाहिए। उक्त विचार तपाचार्य साध्वी जयमाला की सुशिष्या साध्वी चंदनबाला ने धर्मसभा में व्यक्त किये। साध्वी ने कहा कि आज खनन कार्य युद्ध स्तर पर करने एवं पेड़ो की कटाई करने से बरसात काफी प्रभावित हुई है। पूर्व में साधु संत पेड़ो के नीचे प्रवचन देते थे। पेड़ से पता जैसे ही अलग होता है उसमें जीव नष्ट हो जाता है। जैन आगम में तीन वनस्पतिकाय बताये गए है , वनस्पतिकाय के जीव भी मोक्ष में जाने वाले है।कषायों से मुक्त हो गए तो आत्मा को भी मुक्ति मिल जाती है। साध्वी आनन्दप्रभा ने कहा कि जिनवाणी सुनना तभी सार्थक होगा जब उसको सुनकर अपने मन मे परिवर्तन लावे। जिन्होंने मन को साध लिया उनके नरक रूपी के ताले लग गए और वो मोक्ष की तरफ अग्रसर हो गए। हम काम अगर नरक के करेंगे और आशा स्वर्ग की रखते है तो यह अंसभव है। में कौन हूं? यह जानना आवश्यक है। नवकार महामन्त्र टाइम्स द्वारा जो तपस्वी भाई – बहिनो का सम्मान किया जा रहा है वह काफी अनुकरणीय है इससे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। बाहर से आये श्रावक – श्राविकाओं का संघ द्वारा सम्मान किया गया।
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