असम: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे लंबे और एशिया के दूसरे सबसे लंबे रेल-रोड पुल बोगीबील ब्रिज का उद्घाटन किया।
आपको बता दें, इस पुल को मंजूरी 1997 में तत्कालीन एचडी देवेगौड़ा सरकार ने दी थी। लेकिन इसका निर्माण अप्रैल 2002 में शुरू हो पाया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रेल मंत्री नीतीश कुमार के साथ इसका शिलान्यास किया था।
इसके बाद ये पुल उस अटल सरकार के दोबारा सत्ता में नहीं आने के कारण रूका रहा। इसके बाद 10 साल तक कांग्रेस सरकार ने इस और ध्यान नहीं, वहीं मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसका निर्माण कार्य फिर शुरू हुआ। ब्रिज के उद्घाटन में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस पुल का निर्माण अटल जी के कारण शुरू हो पाया, 2004 में जब उनकी सरकार गई तो उनके प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। अगर अटल जी की सरकार को अवसर मिलता तो 2007-08 तक ये पुल पूरा हो जाता, यूपीए की सरकार जो केंद्र में रही उसने पुल पर ध्यान नहीं दिया।
2014 में जब हमारी सरकार आई तो उसके बाद से ही नॉर्थ ईस्ट पर विशेष ध्यान दिया गया है. 2014 से पहले हर साल करीब 100 किलोमीटर सड़कें बनती थी, लेकिन जबसे उनकी सरकार आई है तभी से हर साल 350 KM. सड़कें बन रही हैं। पीएम मोदी ने इस दौरान बीजेपी की अन्य योजनाओं की भी चर्चा की।
सेना को मिलेगा सबसे ज्यादा लाभ-
ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी और दक्षिणी तटों पर बनाया गया यह पुल असम के धीमाजी जिले को डिब्रूगढ़ से जोड़ता है। इस पुल का सैन्य महत्व भी है। क्योंकि इसके बन जाने से अरुणाचल प्रदेश से चीन की सीमा तक सड़क एवं रेल से पहुंचना एवं रसद भेजना आसान हो जाएगा। इस पुल पर सेना के भारी टैंक भी आसानी से ले जाया जा सकेंगे। पुल के निचले हिस्से में 2 रेलवे लाइनें बिछाई गई हैं और ऊपर 3 लेन की सड़क बनी है।
इस रूट के यात्रियों को मिलेगा फायदा
उद्घाटन किए जाने के बाद बोगीबील ब्रिज से पहली गाड़ी तिनसुकिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस गुजरी। 14 कोच की यह ट्रेन साढ़े पांच घंटे में अपना सफर पूरा करेगी। इससे असम के धीमाजी, लखीमपुर के अलावा अरुणाचल के लोगों को भी फायदा होगा। भविष्य में एक राजधानी एक्सप्रेस बोगीबील से धीमाजी होते हुए दिल्ली के लिए चलाई जा सकती है।
नई तकनीक का इस्तेमाल
-पुल के निर्माण में 80 हजार टन स्टील प्लेटों का इस्तेमाल हुआ।
-देश का पहला फुल्ली वेल्डेड पुल जिसमें यूरोपियन मानकों का पालन हुआ है।
-हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन ने मैग्नेटिक पार्टिकल टेस्टिंग, ड्राई पेनिट्रेशन टेस्टिंग तथा अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग जैसी आधुनिकतम तकनीकों का इस्तेमाल किया।
-बीम बनाने के लिए इटली से विशेष मशीन मंगाई गई।
-बीम को पिलर पर चढ़ाने के लिए 1000 टन के हाइड्रॉलिक और स्ट्रैंड जैक का इस्तेमाल किया गया।
-पुल के 120 साल चलने की आशा है।
लागत 5800 करोड़ रुपये
4.90 किलोमीटर लंबे बोगीबील पुल की अनुमानित लागत 5,800 करोड़ रुपये है। इस पुल का निर्माण अत्याधुनिक तकनीक से किया गया है। इसके बन जाने से ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी और उत्तरी किनारों पर मौजूद रेलवे लाइनें आपस में जुड़ जाएंगी। पुल के साथ ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी किनारे पर मौजूद धमाल गांव और तंगनी रेलवे स्टेशन भी तैयार हो चुके हैं।
अड़चनों के बाद पूरा हुआ पुल
पिछले 21 वर्षो में इस पुल को पूरा करने के लिए कई बार समय-सीमा तय की गई। लेकिन अपर्याप्त फंड और तकनीकी अड़चनों के कारण कार्य पूरा नहीं हो सका। कई बार विफल होने के बाद आखिरकार एक दिसंबर को पहली मालगाड़ी के इस पुल से गुजरने के साथ इसका निर्माण कार्य पूर्ण घोषित हुआ।
रेल, रोड की दूरी होगी कम
इस पुल के बनने से डिब्रूगढ़ और अरुणाचल प्रदेश के बीच रेल की 500 किलोमीटर की दूरी घटकर 400 किलोमीटर रह जाएगी। जबकि ईटानगर के लिए रोड की दूरी 150 किमी घटेगी। इस पुल के साथ कई संपर्क सड़कों तथा लिंक लाइनों का निर्माण भी किया गया है। इनमें ब्रह्मापुत्र के उत्तरी तट पर ट्रांस अरुणाचल हाईवे तथा मुख्य नदी और इसकी सहायक नदियों जैसे दिबांग, लोहित, सुबनसिरी और कामेंग पर नई सड़कों तथा रेल लिंक का निर्माण भी शामिल है।
पंजाब, हरियाणा के व्यापारियों के लिए सौगात
अभी असम से कोयला, उर्वरक और स्टोन चिप्स की रेल से सप्लाई उत्तर व शेष भारत को होती है। जबकि पंजाब, हरियाणा से यहां अनाज आता है। इस पुल के बनने से इनमें बढ़ोतरी के साथ रेलवे की आमदनी बढ़ने की संभावना है।
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